सरफ़राज़ की कहानी: ईंट-भट्ठे पर करता था मजदूरी; मोबाइल से पढ़ाई कर लिया MBBS में दाखिला
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सरफ़राज़ की कहानी: ईंट-भट्ठे पर करता था मजदूरी; मोबाइल से पढ़ाई कर लिया MBBS में दाखिला

Sarfaraz Journey of a bricks labourer to MBBS student: आज मोबाइल लोगों की ज़िन्दगी में ज़हर घोल रहा है. इसके फायदे से ज्यादा नुक्सान सामने आ रहे हैं, लेकिन कोलकाता से एक खबर आयी है, जिसमें ईंट-भट्ठे पर काम करने वाले एक मजदूर ने मोबाइल से पढाई कर MBBS में दाखिला लेकर लाखों स्टूडेट्स के लिए के नजीर पेश कर दिया है.. आइये जानते हैं सरफ़राज़ का मजदूर से एक MBBS स्टूडेंट बनने का कैसा रहा सफ़र? 

सरफ़राज़ (काले कपड़े में) फोटो सोर्स: फिजिक्सवाला इन्स्टाग्राम पेज

Sarfaraz Journey of a bricks labourer to MBBS student:  अगर आपको भी अपनी ज़िन्दगी से शिकायत है; जो मिला उससे गिला है. ऐसा लगता है कि किसी का साथ होता, सर पर किसी का हाथ होता और ज्यादा वसाएल होते तो ज़िन्दगी में आप किसी ऊंचे मुकाम पर होते. तो आपको यकीनन 21 साला नौजवान सरफ़राज़ से सबक हासिल करना चाहिए.

हम बात कर रहे हैं, मगरबी बंगाल में पूर्वी मेदिनीपुर जिले के एक गांव में रहने वाले सरफराज की, जो कभी तेज़ गर्मी और तपती धूप में रोज़ ईंटे ढोता था.    जब वह मजदूरी में मिले पैसे से रास्ते में राशन खरीदकर घर लौटता तो, उसके घर का चूल्हा जलता था. फिर घर के लोगों को दो वक़्त की रोटी नसीब होती.. सरफ़राज़ को ये सब इसलिए करना पड़ता था, क्यूंकि उसके परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी.. लेकिन उसने कभी किसी से शिकायत नहीं की..कहीं पर अपना रोना नहीं रोया.. बल्कि ख्वाबों को जिंदा रखा.. और उसके लिए जी तोड़ मेहनत की.. अब जब वह डॉक्टर वाला सफेद कोट पहनकर और गले में स्टेथोस्कोप लटका कर एयर कंडीशनड कमरे में डॉक्टरी की पढाई करता है, तो न सिर्फ उसके गरीब- माँ बाप और भाई बहन का कलेजा फख्र से चौड़ा हो जाता है, बल्कि अपने जैसे उन लाखों नौजवानों को उम्मीद की रौशनी से भर देता है, जो आर्थिक संसाधनों की वजह से अपनी पढाई छोड़ देते हैं.  

NEET एग्जाम में 720 में मिले 677 अंक
सरफराज ने  2024 की NEET एग्जाम में 720 में से 677 अंक हासिल किए है,  और अब वह पश्चिम बंगाल के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक कोलकाता के नील रतन सरकार मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले चुका है.  उनकी मेडिकल कक्षाएं शुरू हो गई हैं. सरफराज को यह कामयाबी तीसरी कोशिश में मिली है.  
2023 में NEET पास करने के बाद, सरफराज को डेंटल कॉलेज में दाखिला लेने का मौका मिला था, लेकिन खर्च वहन न कर पाने की वजह से उन्हें पीछे हटना पड़ा. फिर भी, सरफराज ने हार नहीं मानी. हार न मानते हुए, उन्होंने आखिरी बार NEET की तैयारी की और कामयाब होने का दृढ़ निश्चय किया. सरफराज ने  कहा, "मैंने एक आखिरी बार कोशिश करने का फैसला किया. मुझे लगा कि मैंने इतनी मेहनत की है, एक बार और कोशिश करता हूं." सरफराज ने कहा, " नीट में मेरा तीसरा प्रयास था. अगर मैं इस बार कामयाब नहीं होता, तो मुझे हार माननी पड़ती. मैं ऐसे परिवार से आता हूं, जहां यह एक सपने के सच होने जैसा है. ’’

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काले कपड़े में सरफ़राज़ साथ में उसकी माँ और पिता 
मोबाइल ने सरफराज की ज़न्दगी में लाया बदलाव 
सीमित साधनों वाले खानदान में पैदा हुए सरफराज का बचपन आर्थिक संघर्ष में गुजरा है. सरफराज तीन भाई-बहन हैं. बचपन से बेहतरीन तालीमी लियाक़त रखने वाले सरफराज राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में शामिल होना चाहते थे.  उन्होंने इस इम्तेहान का शुरुआती बाधा पार भी कर लिया था. लेकिन एक हादसे ने फाइनल एग्जाम में अहलियत हासिल करने की उनकी उम्मीदों को मस्मार कर दिया, और वो राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के रेस से हमेशा के लिए बहार हो गये.  कोविड-19 महामारी उनके लिए एक अहम् मोड़ साबित हुआ. सरकार से मिली माली मदद के बाद सरफराज ने एक स्मार्टफोन खरीदा और भारत की मेडिकल एग्जाम ‘नीट’ की तैयारी शुरू की. शुरुआत में, उन्होंने ऑनलाइन एड-टेक प्लेटफॉर्म द्वारा मुफ्त YouTube ट्यूटोरियल पर भरोसा कर उससे पढ़ाई की. फिर उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से एक ऑनलाइन एड-टेक प्लेटफॉर्म कोर्स में दाखिला लिया, जहाँ उन्हें फीस में काफी रियायत दी गयी. 

मजदूरी और पढ़ाई के बीच ऐसे बनाया बैलेंस 
सरफराज ने कहा, ‘‘मैं अपने मजदूर पिता के साथ सुबह से दोपहर तक मजदूर के तौर पर काम करता था. फिर मैं घर वापस जाता और लगातार 7 घंटे पढ़ाई करता. पिछले तीन सालों से यही मेरा रूटीन था. ’’ सरफराज 300 रुपये प्रतिदिन की दिहाड़ी पर रोज चिलचिलाती धूप में करीब 400 ईंटें ढो लेता था.  दिन में मजदूरी करता और  रात को मेडिकल की किताबों के पन्ने पलटा करता था. 

मेरी मां का सपना था कि मैं डॉक्टर बनूं
सरफराज की मां चाहती थीं कि उनका बेटा डॉक्टर बने और इस सपने को सच करने के लिए उसने जीतोड़ मेहनत की और एक दिन सरफराज ने अपने सपने को हकीकत में बदल लिया है.  उन्होंने कोलकाता के नील रतन सरकारी मेडिकल कॉलेज में अपनी कक्षाएं शुरू कर दी हैं। सरफराज ने कहा, ‘‘मेरी मां का सपना था कि मैं डॉक्टर बनूं, इसलिए मैंने उनके सपने को जीने का फैसला किया." सरफराज ने कहा, ‘‘जब मैं डॉक्टर बन जाऊंगा, तो मैं वापस आकर गरीबों के बीच काम करना चाहता हूं. उन्होंने मेरे सफ़र में मेरा साथ दिया है. अब, अपने गांव को कुछ वापस देने की बारी मेरी है.’’ सरफराज की कहानी उनके गांव में उम्मीद की किरण बन गई है. सरफराज अब गाँव के छोटे बच्चों को मार्गदर्शन दे रहे हैं. 

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