Delhi : 39 सालों से ‘ईयरबुक’ निकालने वाली सुमन चोपड़ा को भारतीय रेलवे से है इस बात की शिकायत
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Delhi : 39 सालों से ‘ईयरबुक’ निकालने वाली सुमन चोपड़ा को भारतीय रेलवे से है इस बात की शिकायत

Delhi: सुमन चोपड़ा ये एक ऐसा नाम है जो अपने बलबूते पर पिछले 39 वर्षों से रेलवे से जुड़ी जानकारी की अपेक्षा रखने वालों को हर साल ‘ईयरबुक’ उपलब्ध करवाती है. यह अब तक का सबसे व्यापक सालाना संग्रह है. जो किसी व्यक्ति या निजी संस्था द्वारा उपलब्ध करवाई जाती है.

Delhi : 39 सालों से ‘ईयरबुक’ निकालने वाली सुमन चोपड़ा को भारतीय रेलवे से है इस बात की शिकायत

Delhi: सुमन चोपड़ा ये एक ऐसा नाम है जो अपने बलबूते पर पिछले 39 वर्षों से रेलवे से जुड़ी जानकारी की अपेक्षा रखने वालों को हर साल ‘ईयरबुक’ उपलब्ध करवाती है. यह अब तक का सबसे व्यापक सालाना संग्रह है. जो किसी व्यक्ति या निजी संस्था द्वारा उपलब्ध करवाई जाती है. हर वर्ष सुमन चोपड़ा ‘ईयरबुक’ की लगभग 4,000 से 4,500 प्रतियां प्रकाशित करती हैं. जो  हर साल चमकदार पन्नों में विशेष विश्लेषण के साथ-साथ रेलवे से संबंधित हर चीज का सारांश होता है. अब तक रेलवे के 39 संस्करणों के माध्यम से पाठक रेलवे के इतिहास को पढ़कर जान सकते हैं. अभी तक किताब के संस्करणों में 1855 में निर्मित ‘फेयरी क्वीन’ से लेकर वंदे भारत एक्सप्रेस तक के चित्रों का समृद्ध संग्रह है.   

चोपड़ा ने कहा कि मेरे जीवन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर रेलवे अधिकारी की मेज पर मेरी वार्षिक किताब हो इसके  लिए मैं पिछले चार दशकों से इसपर काम कर रहीं हूं. और चोपड़ा कहती हैं की रेलवे के बारे में जानकारी को लेकर कुछ अंतराल है जिसे मैं अपने प्रकाशन के माध्यम से भरने की कोशिश करती हूं. लेकिन चोपड़ा कहती हैं कि यह किसी के सहयोग के बिना इस परंपरा को जारी रखना कठिन होता जा रहा है. और कहती हैं कि मुझे नहीं पता कि ताकत कहां से आती है. आगे इस सिलसिले को कायम रखना कठिन है. 

कोरोना काल में जब चोपड़ा 2021  में अपने बेटे को महामारी में खो दिया तब भी वह 300 पन्नों की  ईयरबुक प्रकाशित करने में सफल रहीं. चोपड़ कहती हैं कि मुझे रेलवे से सहयोग नहीं मिल रहा है. मैं अपने प्रयासों के लिए रेलवे से कुछ मान्यता चाहती हूं हालांकि कोई भी चीज चोपड़ा को अपने सपने को पूरा करने से नहीं रोक पाई.  इसे (ईयरबुक) रेलवे का इनसाइक्लोपीडिया कहते हैं. वह कहती हैं कि बह मेरा बच्चा था और यह  भी मेरा बच्चा है . मैं यह काम अपने  बेटे के याद  में करती हूं ताकि मेरे साथ साथ उसे भी खुशी हो और उसे ऐसा  लगे कि उसकी मां समाज के लिए कुछ कर रही है.  सुमन को  यह उम्मीद है कि उनकी सालान किताब के 40वें संस्करण वह जिसकी वहह हक़दार है. सुमन की पति विनोद ने कहा कि परिवार का ख्याल रखती और बच्चों की पढ़ाई पर भी खास ख्याल रखती है. 

अपनी इन जिम्मेदारी के साथ वार्षिकी पर काम भी करने के लिए समय निकालने में कामयाब रहीं. विनोद ने कहा कि शादी के दस साल बाद सुमन ने अपना व्ययवसाय शुरु किया. और मेहनत करके रेलवे पत्रिका निकाली. और उन्होंनं कहा कि 39 सालों से लगातार प्रराशित कर रही हैं. इसे अपने काम के प्रति  जुनून है कोई  लाभ नहीं बी हो रहा है तब भी. ये लगातार अपने कामों को करती हैं. और रेलवे बोर्ड के शीर्ष अधिकारियों और विभिन्न जोन और रेल कारखानों के महाप्रबंधकों और मंडल रेल प्रबंधकों को अपनी वार्षिक किताब भेजती हैं. इस काम को देखकर के उनके 12 साल पोते भी जिनकी विवान है. वह भी बहुत प्रभावित है. जो अपना जूता रीसाइक्लिंग का छोटा व्यवसाय करता है. विवान कहता है कि दादी अपना व्यवसाय चलाने की सलाह देती है. 

 

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