Saba Haidar: महिला शिक्षा का इस्लाम से कोई टकराव नहीं; पढ़ेंगी, तभी तो आगे बढ़ेंगी बेटियां
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Saba Haidar: महिला शिक्षा का इस्लाम से कोई टकराव नहीं; पढ़ेंगी, तभी तो आगे बढ़ेंगी बेटियां

Education has no conflict with Islam: अमेरिका में इस साल के चुनाव में मुस्लिम महिलाएं भी जीत हासिल की हैं, इनमें उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद की भी सबा हैदर नाम की एक मुस्लिम महिला शामिल है.. ये बदलाव अमेरिका ही नहीं बल्कि हिन्दुस्तान में भी साफ़ दिख रहा है.. 

 सबा हैदर, रशीदा तलीब और इल्हान उमर (बाएँ से दाएं)

विचार

अमेरिकी चुनाव परिणाम आने के बाद उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद,  बुलंदशहर के औरंगाबाद मोहल्ले और AMU में जश्न का माहौल है. काहे कि गाजियाबाद की बेटी, बुलंदशहर की बहू और AMU की पूर्व छात्रा सबा हैदर ने अमेरिका में ड्यूपेज काउंटी बोर्ड का चुनाव जीता लिया है. वो एक डेमोक्रेट उमीदवार थी और अपनी नजदीकी हरीफ रिपब्लिक पार्टी की पैटी गुस्टिन को 8,500 वोटों से हरा दिया है. पिछले चुनाव में सबा हैदर मात्र 1 हजार वोटों से इस उमीदवार से चुनाव हार गई थी. सबा हैदर अपने परिवार के साथ शिकागो के इलिनोइस स्टेट में रहती हैं. उनकी शादी बुलंदशहर के औरंगाबाद मोहल्ला सादात के रहने वाले अली काज़मी से हुई थी, जो पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं.  सबा ने AMU से  MSc की पढ़ाई की है. इस वजह से गाज़ियाबाद में सबा के नैयहर, ससुराल औरंगाबाद और  AMU के लोग खुश हैं. भारत के हिन्दू और मुसलमान दोनों इस बात से खुश हैं.. मुसलमान कुछ ज्यादा उत्साहित हैं. सोशल मीडिया पर उसकी पोस्ट शेयर कर रहे हैं..

कुछ लोग कल भी खुश दिखाई दे रहे थे.. वजह लगभग सेम थी. हालांकि, मामला देशी न होकर विदेशी था.  

अमेरिकी चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी की दो मुस्लिम कैंडिडेट रशीदा तलीब और इल्हान उमर ने भी जीत दर्ज की थी.  रशीदा तलीब अमेरिकी कांग्रेस में फ़िलिस्तीनी मूल की पहली महिला है, जिन्हें मिशिगन के प्रतिनिधि के रूप में चौथे कार्यकाल के लिए फिर से चुना गया. इनको डियरबॉर्न में बड़े अरब-अमेरिकी समुदाय का समर्थन हासिल है. अब अमेरिकी संसद में उनकी आवाज़ बुलंद करेंगी.  

वहीँ, पूर्व शरणार्थी और सोमाली अमेरिकी नागरिक इल्हान उमर ने तीसरी बार जीत हासिल की है. वह 2019 से मिनेसोटा के 5वें कांग्रेसनल जिले के लिए अमेरिकी प्रतिनिधि के रूप में लगातार जीत रही हैं. 

 इस साल बिहार में हुए शिक्षक भर्ती में बड़े पैमाने पर मुस्लिम घरों की लड़कियां शिक्षक बनी हैं.. BPSC, UPSC, अन्य राज्य लोकसेवा आयोग, न्यायिक सेवा, उच्च शिक्षा , मेडिकल और अभियांत्रिकी जैसे फील्ड में मुस्लिम लड़कियां लगातार बेहतरीन प्रदर्शन कर रही हैं.. सोशल मीडिया पर मुस्लिम वर्ग के लोग ऐसी खबरों को खूब साझा करते हैं.. जीतने वाले को बधाई देते हैं.. शाबाशी देते हैं... 

यानी मुस्लिम समाज अब बदल रहा है.... लड़कियों की आधुनिक शिक्षा को लेकर वो दकियानूसी सोच से बाहर निकल रहा है... आधे-अधूरे ज्ञान वाले मौलानाओं की तक़रीर से वो ऊपर उठा रहा है..   मुस्लिम परिवारों की लड़कियां उच्च शिक्षा के लिए अपने घर, परिवार, जिले और राज्य की सीमाएं लांघ रही हैं.. मेडिकल की पढ़ाई के लिए वो यूक्रेन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, बांग्लादेश, चीन, जर्मनी और अन्य यूरोपीयन देशों की यात्राएं कर रही हैं.. 

शिक्षा को लेकर इस्लाम महिला और पुरुषों में कोई भेदभाव नहीं करता है..... शिक्षा यहाँ वैकलिपक या स्वेच्छिक मामला भी नहीं है... कुरआन में साफ़-साफ़ उल्लेख है कि इल्म (ज्ञान) हासिल करना प्रत्येक स्त्री और पुरुषों पर फ़र्ज़ है.. यानी ये उसका प्राइमरी कर्त्तव्य है.. पुरुषों से ज्यादा स्त्रियों की शिक्षा पर जोर दिया गया है.. शिक्षा हासिल करने के लिए उसे सुदूर देश की यात्राएं करने की भी छूट है...इस्लाम का उद्देश्य मानवता की रहनुमाई करना है.. और ये काम ज्ञान के बिना संभव नहीं है.. इसलिए ज्ञान लेते रहे चाहे वो जहाँ से मिले... तालिबान और ईरान हमारा रोल मॉडल नहीं है... पैगम्बर मुहम्मद (स.) की शिक्षाएं और कुरआन के मार्गदर्शक सिद्धांतों को सही अर्थों में मुसलमानों को समझना होगा... 

नोट: यह लेखक के निजी विचार हैं. 

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