Urdu Poetry in Hindi: ढूँडने में भी मज़ा आता है, कोई शय रख के...

Siraj Mahi
Jan 30, 2025

ढूँडने में भी मज़ा आता है, कोई शय रख के भुला दी जाए

कमरे में मज़े की रौशनी हो, अच्छी सी कोई किताब देखूँ

ऐसा हंगामा न था जंगल में, शहर में आए तो डर लगता था

अभी दो चार ही बूँदें गिरीं हैं, मगर मौसम नशीला हो गया है

गाड़ी आती है लेकिन आती ही नहीं, रेल की पटरी देख के थक जाता हूँ मैं

मौत भी दूर बहुत दूर कहीं फिरती है, कौन अब आ के असीरों को रिहाई देगा

पर तोल के बैठी है मगर उड़ती नहीं है, तस्वीर से चिड़िया को उड़ा देना चाहिए

नज़रों से नापता है समुंदर की वुसअतें, साहिल पे इक शख़्स अकेला खड़ा हुआ

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