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खड्ग प्रसाद शर्मा ओली को नेपाल का नया प्रधानमंत्री चुना गया है। ओली का चुनाव ऐसे समय हुआ है जब आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति को लेकर नेपाल और भारत के बीच राजनयिक गतिरोध बना हुआ है। नए संविधान का विरोध कर रहे मधेसी समूहों ने भारत के साथ व्यापार मार्गों को बाधित कर रखा है जिस कारण आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बाधित हुई। रविवार को हुए पीएम पद के चुनाव में ओली ने नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष सुशील कोइराला को हराकर जीत दर्ज की। ओली को 338 वोट मिले जबकि कोइराला के पक्ष में 249 वोट पड़े। पीएम चुने के जाने के लिए 199 वोटों की दरकार थी।
दिलचस्प है कि इस बार पीएम के चुनाव में नेपाल के दो विपरीत दल (लेफ्ट और राइट) एक साथ खड़े हुए। पुष्प कमल दहल प्रचंड की पार्टी युनिफाइड कम्युनिस्ट पार्टी आफ नेपाल और कमल थापा की राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी-नेपाल ने ओली का समर्थन किया। प्रचंड और थापा नेपाल के तीसरे और चौथे सबसे बड़े दल का नेतृत्व करते हैं। कमल थापा को उप प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई। समझा जाता है कि उन्हें ओली का समर्थन करने का इनाम मिला है।
प्रधानमंत्री बनने के बाद ओली के सामने सबसे बड़ी चुनौती नए संविधान का विरोध कर रहे मधेसी और थारू समुदाय की चिंताओं का समाधान करना है। मधेसियों का आरोप है कि प्रचंड की शह पर नए संविधान में उनके साथ भेदभाव किया गया है। यह स्पष्ट है कि प्रचंड का झुकाव भारत से कहीं ज्यादा चीन की तरफ है। प्रचंड की पार्टी ओली का समर्थन कर रही है। ऐसे में ओली मधेशियों और थारू समुदाय के साथ कितनी सहमति बना पाते हैं यह देखने वाली बात होगी। ओली को प्रचंड द्वारा समर्थन दिए जाने को लेकर यह कहा जा रहा है कि प्रचंड की नजर नेपाल के अगले राष्ट्रपति पद पर है। रिपोर्टों की मानें तो ओली और प्रचंड के बीच राष्ट्रपति पद को लेकर पहले ही सहमति बन गई है। प्रचंड यदि नेपाल के राष्ट्रपति बनते हैं तो नेपाल में भारतीय हितों की तुलना में चीन की नीतियों को ज्यादा तरजीह दी जाएगी। पहाड़ी और तराई क्षेत्र के लोगों के बीच दूरी बढ़ने की आशंका को भी नकारा नहीं जा सकता।
नए संविधान के कुछ प्रावधानों का विरोध कर रहे मधेसी फ्रंट का दावा है कि संविधान दक्षिणी नेपाल में रहने वाले मधेसियों और थारू समुदायों को पर्याप्त अधिकार और प्रतिनिधित्व की गारंटी प्रदान नहीं करता। भारतीय मूल के मधेसी नेपाल को सात प्रांतों में बांटे जाने का विरोध कर रहे हैं। नेपाल में चल रहे आंदोलन पर भारत ने प्रत्यक्ष रूप से कोई दखल नहीं दिया है। भारत का मानना है कि यह नेपाल का अंदरूनी मामला है और उसे अपने यहां के हालात ठीक करने चाहिए। भारत सरकार ने स्पष्ट कहा है कि कि उसकी तरफ से कोई आर्थिक नाकेबंदी नहीं की गई है। हालांकि, नेपाल के पहाड़ी इलाकों में भारत विरोधी भावनाओं पर नई दिल्ली ने चिंता जताई है।
नेपाल के नए प्रधानमंत्री ओली में इस बात की कसक देखी गई कि भारत ने उनके संविधान का स्वागत नहीं किया। ओली को इस बात का दुख था कि भारत ने नए संविधान का सवागत करने की बजाय केवल संज्ञान लिया। पिछले दिनों एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि भारत और नेपाल के संबंध बहुत पुराने हैं और नेपाल भारत का सबसे करीबी देश है। ओली का कहना था कि सबसे करीबी देश जब आपके नए संविधान का केवल संज्ञान लेता है तो हैरानी होती है। ओली ने माना कि छिटपुट मु्द्दों पर दोनों देश के संबंध प्रभावित नहीं होने चाहिए। ओली ने नेपाली संसद में कहा है कि वह भारत के साथ अपने संबंध बेहतर बनाएंगे और मधेस समुदाय से जुड़ी राजनीतिक पार्टियों ने जिन मुद्दों को उठाया है उनके समाधान के लिए जहां तक संभव हो सकेगा वह कोशिश करेंगे।
भारत और नेपाल के बीच शताब्दियों से सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और आर्थिक संबंध रहे हैं। ये संबंध काफी मजबूत हैं। नेपाल छोटा देश होने और अपने सीमित संसाधनों के चलते भारत पर निर्भर रहा है। नेपाल की 80 प्रतिशत जरूरतें भारत की तरफ से पूरी की जाती हैं। भारत ने मधेसियों और थारू की चिंताएं दूर करने के लिए कहा है तो इसे नेपाल को अपने स्वाभिमान पर नहीं लेना चाहिए। मधेसी पार्टियों के साथ बातचीत के जरिए किसी आम सहमति पर पहुंचा जा सकता है। रास्ता बातचीत से ही निकलता है। ओली नेपाल के कद्दावर नेता हैं। कहा यह भी जाता है कि प्रचंड को टक्कर ओली से ही मिलती है। अपनी हाजिर जवाबी और विनोदी स्वभाव के लिए मशहूर ओली से उम्मीद की जानी चाहिए कि वह मौजूदा समस्या का हल निकाल लेंगे।