IRCTC: अब आप आईआरसीटीसी की वेबसाइट से टिकट बुक करने के बाद इसे तुरंत डाउनलोड या प्रिंट कर सकते हैं. लेकिन पहले सिस्टम इससे काफी अलग था. पहले एक टिकट को बुक करने का प्रोसेस काफी मुश्किल था.
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Raiways Ticket Booking System: आज रेलवे में टिकट बुकिंग से लेकर सफर करना तक काफी आसान हो गया है. अब भले ही आपका टिकट 10 से 20 सेकेंड में बुक हो जाता है लेकिन क्या आपको पता है अब से 39 साल पहले ट्रेन का रिजर्वेशन कैसा होता था? जी हां, जब रेलवे में ऑनलाइन टिकट बुक नहीं होता था तो किस तरह रिजर्वेशन कराया जाता था. दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क में से एक भारतीय रेलवे ने 19 फरवरी 1986 को बड़ा ऐतिहासिक कदम उठाया था. जी हां, रेलवे की तरफ से इसी दिन ऑनलाइन टिकटिंग की सुविधा शुरू की गई थी.
पहले टिकट रिजर्वेशन कराने का तरीका एकदम अलग था
आज रेलवे की इस सुविधा को शुरू हुए 39 साल पूरे हो गए हैं. लेकिन शायद ही आपने सोचा हो कि 39 साल पहले रेलवे टिकट के रिजर्वेशन कराने का तरीका एकदम अलग था. इसके बाद लोगों का सफर भी काफी आसान हो गया. 19 फरवरी 1986 को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहली बार कंप्यूटर बेस्ड टिकट रिजर्वेशन सिस्टम (Computerized Reservation System) की शुरुआत की गई थी. यह शुरुआत भारतीय रेलवे के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई.
काफी मुश्किल भरा था ट्रेन का रिजर्वेशन सिस्टम
इस सुविधा के शुरू होने से पहले टिकट बुक कराने (Indian Railways Ticketing system) का प्रोसेस पूरी तरह मैन्युअली था. इससे टिकट बुक कराने में काफी समय और मेहनत लग जाती थी. कंप्यूटराइज्ड सिस्टम से पहले रेलवे टिकट रिजर्वेशन (Indian Railways ticket booking) का प्रोसेस काफी मुश्किल भरा और टाइम टेकिंग होता था. इसमें कई बार हफ्तों का समय लग जाता था.
कैसे होती थी टिकट बुकिंग
टिकट बुकिंग के लिये पहले यात्रियों को एक फॉर्म भरना पड़ता था. इस फॉर्म में यात्रा की तारीख, डेस्टिनेशन और अन्य जानकारी देनी होती थी. यदि किसी खास तारीख पर सीट नहीं मिलती थी तो सीट की उपलब्धता के आधार पर यात्री को अगली संभावित तारीख के लिए आवेदन करना होता था. इस पूरी प्रोसेस को मेंटेन करने के लिये रेलवे कर्मचारियों को कई रजिस्टर अपडेट करके रखने होते थे. यात्री का नंबर आने पर क्लर्क रजिस्टर में देखकर यह पुष्टि करता था कि ट्रेन में सीट उपलब्ध हैं या नहीं. सीट उपलब्ध होने पर यात्री को कार्डबोर्ड का टिकट दिया जाता था. इसी पर उनका बर्थ नंबर दर्ज होता था.
टिकट डाक के जरिये यात्रियों के घर भेजा जाता था
कंप्यूटराइज्ड सिस्टम शुरू होने से पहले यदि यात्री का टिकट बुकिंग स्टेशन और ट्रेन में चढ़ने का स्टेशन अलग-अलग होता था. इस कंडीशन में रेलवे टेलीग्राम के जरिये बुकिंग स्टेशन से यात्रा वाले स्टेशन तक जानकारी भेजता था. इसके अलावा, रेलवे की तरफ से टिकट डाक के जरिये यात्रियों के घर पर भेजा जाता था. इसमें कई बार समय लग जाता था.
सिस्टम बदला तो गलतियों की संभावना भी कम
19 फरवरी 1986 को जब नई दिल्ली स्टेशन पर कंप्यूटराइज टिकट रिजर्वेशन सिस्टम की शुरुआत हुई तो पुरानी प्रक्रिया को पूरी तरह बदल दिया गया. नई सिस्टम से रिजर्वेशन प्रोसेस ज्यादा तेज और सुविधाजनक हो गया. इतना ही नहीं इससे गलतियों की संभावना भी काफी कम हो गई. अब यह सिस्टम इतना तेज और सटीक हो गया कि यात्री कुछ ही मिनट में अपना टिकट बुक कर सकते हैं. इतना ही नहीं यात्रियों को लंबी लाइन में खड़े होने से भी छुटकारा मिल गया.
रेलवे की तरफ से अगस्त 2002 में इंटरनेट टिकट सर्विस की शुरुआत कर दी गई. इससे यात्रियों के लिए टिकट बुक करना और भी आसान हो गया. इसके बाद यात्री वेबसाइट के जरिये टिकट बुक कर सकते थे और बाद में टिकट डाक से उनके घर भेजा जाता था. करीब तीन साल बाद 12 अगस्त 2005 को वो समय आया जब ई-टिकटिंग सर्विस शुरू हो गई. इसमें टिकट बुक कराने वाले इंटरनेट से टिकट डाउनलोड कर सकते थे. यह सारी प्रोसेस आईआरसीटीसी की तरफ से 1999 में शुरू किया गया था.