कौन हैं दमयंती हिंगोरानी, जिनकी जिद के आगे झुकी ₹336000 करोड़ की कंपनी, बदलनी पड़ी अपनी सालों पुरानी परंपरा
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कौन हैं दमयंती हिंगोरानी, जिनकी जिद के आगे झुकी ₹336000 करोड़ की कंपनी, बदलनी पड़ी अपनी सालों पुरानी परंपरा

Damyanti Hingorani Gupta: एक महिला, जिसके जिद के आगे दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक फोर्ड मोटर्स को अपना नियम बदलना पड़ा. जिस कंपनी ने में अमेरिकन, ब्रिटिश महिलाओं को नहीं पूछा जाता था, वहां एक भारतीय महिला ने वो कर दिखाया, जो इतिहास बन गया.  

Damyanti Hingorani Gupta

who is Damyanti Hingorani Gupta:  जानी-मानी लेखिका, समाजसेवी सुधामूर्ति ( Sudha Murthy) ने वो किस्सा सुनाया, जब उन्हें अपनी नौकरी के लिए टाटा समूह के साथ लड़ाई लड़नी पड़ी. सुधा मूर्ति की वजह से टाटा को अपना नियम बदलना पड़ा. ऐसा ही कुछ किस्सा दमयंती हिंगोरानी गुप्ता का है. इस महिला के जिद के आगे अमेरिकी कंपनी को अपना नियम बदलना पड़ा.  इस महिला के सामने 336000 करोड़ की अमेरिकी कंपनी की झुकना पड़ा, कंपनी ने अपना नियम बदल दिया.  

कौन हैं दमयंती हिंगोरानी गुप्ता 

दमयंती हिंगोरानी गुप्ता वो हैं. जिन्होंने उस कंपनी को अपना नियम बदलने के लिए मजबूर कर दिया, जहां औरतों को नौकरी नहीं दी जाती थी. जिस अमेरिकी कंपनी में अमेरिकी या अंग्रेज महिला तक को नौकरी नहीं मिलती थी, वहां पहली बार एक भारतीय महिला इंजीनियर नौकरी के लिए पहुंच गई. न केवल नौकरी के लिए पहुंची, बल्कि कंपनी को अपना नियम बदलने के लिए मजबूर कर दिया.  कंपनी को अपना नियम बदलकर किसी महिला इंजीनियर को नौकरी देनी पड़ी.  साल1942 में पाकिस्तान में जन्मी दमयंती विभाजन के बाद भारत आ गईं.  

मुश्किलों के बाद बनीं इंजीनियर 

दमयंती 13 साल की थी, तभी तय कर लिया कि वो इंजीनियरिंग करेंगी. ये फैसला आसान नहीं था, क्योंकि उस वक्त लड़कियां इंजीनियरिंग तो दूर पढ़ाई तक नहीं किया करती थी. दमयंती इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने वाली पहली लड़की थीं. मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. कॉलेज में हजारों लड़कों के बीच में वो अकेली थी. लड़कियों के लिए वहां वॉशरूम तक नहीं था. उन्हें बाथरूम के लिए भी डेढ़ किलोमीटर दूर जाना पड़ता था.  

फोर्ड मोटर्स को बदलना पड़ा नियम 

दमयंती ने हिम्मत नहीं हारी और पढ़ाई पूरी की. साल 1967 की बात है, जब दमयंती हिंगोरानी गुप्ताअमेरिका में फोर्ड मोटर्स के पास पहुंच गई. उन्होंने एचआर डिपार्टमेंट ने अपना रिज्यूमे भेजा, लेकिन कंपनी ने उनके एप्लीकेशन को ठुकरा दिया. दरअसल कंपनी में महिला इंजीनियरों को नौकरी नहीं दी जाती थी. उन्होनें हिम्मत नहीं हारी और कंपनी से सिर्फ एक सवाल पूछा 'अगर आप मौका ही नहीं देंगे तो महिला इंजीनियर कैसे मिलेगी?' उनका आत्मविश्वास देखकर कंपनी ने अपने नियम बदल दिए और उन्हें नौकरी ऑफर कर दी. 35 सालों तक उन्होंने फोर्ड मोटर्स में नौकरी की. उन्होंने न केवल कंपनी को अपना नियम बदलने के लिए मजबूर किया, बल्कि आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए रास्ते खोल दिए.  उन्होंने अपनी जिद से अरबों डॉलर की कंपनी को मजबूर कर दिया.  

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