क्रूड ऑयल सस्ता तो भारत में डीजल-पेट्रोल सस्ता क्यों नहीं होता? सालों पहले अरुण जेटली समझा गए
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क्रूड ऑयल सस्ता तो भारत में डीजल-पेट्रोल सस्ता क्यों नहीं होता? सालों पहले अरुण जेटली समझा गए

Petrol Diesel News: क्रूड ऑयल बिना रिफाइन किया हुआ फ्यूल होता है जिसमें कई हाइड्रोकार्बन मिक्स होता है. भारत यह कई देशों से खरीदता है फिर रिफाइन कर पेट्रोल-डीजल लोगों तक पहुंचता है. हालांकि क्रूड ऑयल सस्ता होने के बावजूद सरकार यह फायदा तुरंत लोगों तक नहीं पहुंचाती. इसका कारण सालों पहले अरुण जेटली ने बताया था.

क्रूड ऑयल सस्ता तो भारत में डीजल-पेट्रोल सस्ता क्यों नहीं होता? सालों पहले अरुण जेटली समझा गए

वैसे तो पेट्रोल-डीजल की कीमतों से हर कोई प्रभावित होता है लेकिन मिडिल क्लास के लिए मुसीबत थोड़ी ज्यादा बढ़ जाती है. न सिर्फ गाड़ी, बस का किराया बढ़ जाता है, सब्जी और दूसरी चीजों को लाने में खर्च बढ़ने से कई तरह से इसका असर जेब पर पड़ता है. बजट 2025 से भी लोगों को कई तरह की उम्मीदें हैं. एक चाहत पेट्रोल-डीजल के रेट में राहत की भी है. दरअसल, आम धारणा है कि जब क्रूड ऑयल का रेट कम है तो सरकार देश में पेट्रोल-डीजल के रेट घटाती क्यों नहीं है? इसकी वजह कई साल पहले पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली संसद में समझा गए हैं.

हां, 2015 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने समझाया था कि वैश्विक क्रूड ऑयल के रेट में कमी का पूरा फायदा घरेलू ग्राहकों को क्यों नहीं दिया जाता है. यह भी समझिए कि तमाम प्राइस कट के बावजूद पेट्रोल और डीजल के रेट ज्यादा बने हुए हैं क्योंकि सरकार कई तरह की ड्यूटी भी लगाती रही है.

ऐसे ही सवालों पर जेटली ने कहा था कि ईंधन बेचने से जुटाए गए एक्साइज ड्यूटी का 42 प्रतिशत राज्यों को दिया जाता है जबकि बचा हुआ हिस्सा विकास गतिविधियों में खर्च होता है.

राज्यसभा में तब वित्त मंत्री ने कहा था कि ईंधन की कीमत का जो हिस्सा विकास गतिविधियों में जाता है वह मुख्य रूप से राष्ट्रीय राजमार्ग और ग्रामीण सड़कों पर खर्च होता है क्योंकि जो लोग पेट्रोल-डीजल का उपभोग करते हैं, वे इन सड़कों पर गाड़ी चलाते हैं और उन्हें इसके लिए भुगतान करना होता है.

वैट (VAT) के रूप में पेट्रोल और डीजल से मिलने वाले पैसे का एक हिस्सा राज्यों को जाता है जबकि चौथा हिस्सा तेल कंपनियों को दिया जाता है जो वैश्विक बाजारों से क्रूड खरीदते समय भारी नुकसान झेलती हैं. उस समय जेटली ने समझाया था कि तेल कंपनियां कभी-कभी 80 डॉलर प्रति बैरल पर तेल खरीदती हैं लेकिन जिस समय वे बेचती हैं तो प्राइस 60 डॉलर हो जाता है... एक समय तो तेल कंपनियों का लॉस 40 हजार करोड़ रुपये था.

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