हरियाणा में 10 साल की सरकार, फिर भी Exit Polls में BJP का सूपड़ा साफ! इतने भारी नुकसान की 5 बड़ी वजहें
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हरियाणा में 10 साल की सरकार, फिर भी Exit Polls में BJP का सूपड़ा साफ! इतने भारी नुकसान की 5 बड़ी वजहें

Haryana Exit Polls 2024: हरियाणा में बीजेपी की जीत की हैट्रिक लगेगी या नहीं? इस पर चर्चा जारी है. तमाम एक्जिट पोल्स में सैनी सरकार के EXIT की भविष्यवाणी हुई है. बीजेपी नेताओं के इस पर भरोसा नहीं है, लेकिन Exot Polls के परिणाम अगर नतीजों में बदले तो उसे नुकसान पहुंचाने वाली 5 वजहें कौन सी होंगी आपको बताते हैं.

हरियाणा में 10 साल की सरकार, फिर भी Exit Polls में BJP का सूपड़ा साफ! इतने भारी नुकसान की 5 बड़ी वजहें

Haryana Assembly elections results 2024: मोदी लहर (मोदी मैजिक) देश में बची है या खत्म हो गई? इसका जवाब तमाम पॉलिटिकल पंडित हरियाणा (Haryana Exit Polls) और जम्मू-कश्मीर के एक्जिट पोल्स (Exit Polls) के नतीजों में ढूंढ रहे हैं. वहीं बीजेपी के नेता हों या विपक्षी खेमे (इंडिया गठबंधन) के सब सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनलों में अभी से माहौल बनाते हुए अपनी जीत के दावे और दूसरों की हार के कारण गिना रहे हैं. कुछ एक्जिट पोल एनलिसिस्ट और राजनीतिक समीक्षक एक कदम और आगे बढ़ते हुए सर्वेक्षण के परिणामों को 5 अक्टूबर को हुई वोटिंग और उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी गांधी के महाराष्ट्र दौरों से कोरिलेट यानी जोड़ कर देख रहे हैं.

इसके पीछे उनका तर्क है कि हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के जो नतीजे आएंगे कमोबेश कुछ कम या ज्यादा आगामी महाराष्ट्र चुनाव में भी सत्ता का ऊंट उसी करवट बैठेगा. जाहिर है एक्जिट पोल्स में बीजेपी को पीछे दिखाया गया है इसलिए उसके नेता आठ तारीख तक यानी मतगणना होने का इंतजार करने और उस दिन कमल खिलने का दावा कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस के तमाम नेता एक सुर में कह रहे हैं कि बीजेपी जा रही है और कांग्रेस आ रही है.

हरियाणा में बीजेपी हार गई तो ये होंगे पांच बड़े कारण

शहरी मतदाताओं ने भी हाथ जोड़ लिए- बीजेपी को सिटी सेंट्रिक पार्टी माना जाता था. लेकिन जिस तरह बीते तीन लोकसभा चुनावों के नतीजे आए. केंद्र सरकार की योजनाएं गांवों तक सफलतापूर्वक पहुंचीं. वहीं कई राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद बीजेपी ने कहा कि वह गांव-गांव तक पहुंच गई है. इससे इतर 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी हरियाणा की 90 में करीब 45 यानी आधे विधानसभा क्षेत्रों में ही जीत हासिल कर सकी. इसके मायने ये निकाले जा सकते हैं कि क्या ​​शहरी मतदाताओं ने वोट न देकर बीजेपी का साथ छोड़ दिया? जनता और शायद खुद बीजेपी को कुछ कार्यकर्ता और समर्थक भी 'अबकी बार चार सौ पार' वाली गफलत में बने रहे. चुनाव आयोग के डाटा के मुताबिक राज्य के दो करोड़ मतदाताओं में से सिर्फ एक करोड़ ने वोट डाला. अब जिन्होंने वोट नहीं डाला वो किसके समर्थक (वोटर) थे, इसका अंदाजा लगाते रहिए.

किसानों-जाटों की नाराजगी दूर नहीं हुई - हरियाणा को किसानों-जवानों-पहलवानों का प्रदेश माना जाता है. किसान आंदोलन में जिस तरह शंभू बॉर्डर और अन्य बॉर्डर पर छावनी बना दी गई, किसानों को दिल्ली नहीं आने दिया गया. दूसरी ओर भले ही बीजेपी नेता कहते रहे हों कि किसान सम्मान निधि दी और फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के लिए काम किया. सरकार ने फसलों की खरीदी का काम सुगम किया. बीजेपी के ऐसे तमाम प्रयास काम नहीं आये. 'अहिरवाल' का इलाका हो, 'बावल' हो या 'जाटलैंड' हर जगह एक्जिट पोल में बीजेपी को नुकसान हुआ. बीजेपी ने परिवारवाद के नाम पर कांग्रेस को घेरने के लिए हुड्डा फैमिली को निशाना बनाया और कांग्रेस राज में हुए भ्रष्टाचार के मुद्दे को भी प्रमुखता से उठाया था लेकिन वो भी बीजेपी के काम नहीं आया.

बेरोजगारी और युवाओं का आक्रोश - बीजेपी की नैया तो 2019 में ही डूब जाती वो तो जजपा (JJP) ने ऐन मौके पर सरकार बनवा दी, वरना 5 साल की सरकार की सत्ता विरोधी लहर उसी समय भारी पड़ गई थी. दो साल बाद 2021-22 में हरियाणा की बेरोजगारी दर 9% थी, जो राष्ट्रीय दर 4.1 फीसदी से दोगुनी से भी ज्यादा थी. बीजेपी सरकार ने अपने घोषणापत्र में 2 लाख नौकरियों का वादा किया था, लेकिन 10 साल की सरकार के बावजूद वो करीब 1.85 लाख खाली पदों को भरने में नाकाम रही.

कर्नाटक-हिमाचल चुनाव के नतीजों से सबक नहीं सीखा

हरियाणा के लोग सबसे ज्यादा सेना और सैन्य सुरक्षा बलों में हैं. बीजेपी OROP (वन रैंक वन पेंशन) के नाम पर पूर्व फौजियों के वोट कितनी बार लेती? लोकसभा चुनाव में हरियाणा के मतदाताओं ने भले ही पीएम मोदी की उन बातों पर भरोसा कर लिया हो जिसमें उन्होंने कहा था कि बीजेपी आरक्षण व्यवस्था को नहीं बदलेगी. लेकिन जब बात देश की सुरक्षा करने वाले सैनिकों के सेंटिमेंट्स की आई तो 'अग्निवीर' योजना के ऐलान ने हरियाणा में कुछ न कुछ डैमेज जरूर किया. ओल्ड पेंशन स्कीन (OPS) की जगह न्यू पेंशन का देशव्यापी विरोध हुआ फिर भी बीजेपी फैसला पलटने के बजाए बीच का रास्ता निकालने के लिए नए नाम से फिर नई स्कीम ले आई. कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के चुनावों में पुरानी पेंशन बहाल करने की बात की थी. कांग्रेस दोनों जगह जीत गई. यानी कहीं न कहीं 'अग्निवीर' के विरोध और ओल्ड पेंशन स्कीम बहाल करने की बात ने कांग्रेस को फायदा पहुंचाया. ऐसे में अगर बीजेपी 'हरियाणा' हार गई तो ये कहा जा सकता है कि उसने पुरानी गलतियों से सबक नहीं लिया.

सुधार महंगे पड़ गए - पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर से लोग नाराज थे, इसे भांपते हुए बीजेपी ने लास्ट मोमेंट पर सीएम का फेस बदलतेत हुए ओबीसी कार्ड चल दिया. इससे इतर खट्टर सरकार के काम-काज की बात करें भ्रष्टाचार से निपटने और सरकारी सेवाओं को सरल बनाने के लिए लागू हुए सुधारवादी फैसले बैकफायर कर गए. सरकार ने परिवार पहचान पत्र, संपत्ति पहचान पत्र, मेरी फसल मेरा ब्यौरा, भावांतर भरपाई योजना, पेंशन योजना के ई-पोर्टल शुरू किए. सरकार को ऐसा लग रहा था कि ऑनलाइन होने से लोगों का ज्यादा फायदा मिलेगा तो उनकी नाराजगी कम होगी,  क्योंकि ये बात सौ फीसदी सच थी कि खट्टर राज में लोगों को तमाम अच्छी योजनाओं का फायदा नहीं मिल पा रहा था. यानी कोशिशें कागजों तक रह गईं और ग्राउडं जीरो तक काम नहीं हुआ.

हरियाणा में जब वोटिंग हो रही थी तब महाराष्ट्र में खेला जा रहा था 'माइंड गेम'?

एक्जिट पोल्स के बीच बीते कुछ सालों में 'पोल ऑफ पोल्स' की खूब चर्चा हो रही है. एक्जिट पोल करने वाले अपने अपने एक्जिट पोल्स को सही ठहराने के लिए तमाम गुणागणित कथित 'एरर मार्जिन' टूल्स की बात करते हैं. चुनावों को जीतने के लिए नैरेटिव गढ़े जाते हैं. 'मोहब्बत और जंग में सब जायज है', जैसी मिसालें दी जाती हैं. वो हर हथकंडा अपनाया जाता है, जिसमें जीत की जरा भी उम्मीद होती है.

महाराष्ट्र में शनिवार को लोकसभा चुनावों की तरह 'संविधान बचाओ' कार्यक्रम का आयोजन हुआ. उसमें शामिल लोग अपने अपने हाथ में संविधान की प्रतियां लिए थे. इसे इस तरह समझ सकते हैं, जैसे- लोकसभा चुनाव कई चरणों में होता है तो जिस दिन पहले चरण के लिए वोटिंग हो रही होती है, उसी दिन पक्ष और विपक्ष के नेता दूसरे चरण वाली सीटों पर रैलियां करके अगले चरण का नैरिटिव सेट करने के साथ पहले चरण में जहां पोलिंग हो रही होती है, उसके मतदाताओं को जो लास्ट मोमेंट पर टारगेट/मोटिवेट करते हैं. कई बार ये दांव काम कर जाता है.

इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि सोशल मीडिया के जमाने में प्रधानमंत्री ने 'विकास' की बात करके देशवासियों को कुछ संदेश दिया होगा. दूसरी ओर उसी महाराष्ट्र में 'संविधान' दिखाकर भी देशावासियों को कुछ याद दिलाने की कोशिश की गई होगी. खेल नैरिटिव का है, जनता को जिसकी बात समझ आ जाती है. उसकी बल्ले-बल्ले होती है और सरकार बन जाती है.

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