महाराष्ट्र चुनाव: विकास के नाम से शुरू कैंपेन, प्रचार के आखिर दिन कहां जाकर रुकेगा?
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महाराष्ट्र चुनाव: विकास के नाम से शुरू कैंपेन, प्रचार के आखिर दिन कहां जाकर रुकेगा?

Maharashtra Elections: प्रचार के आखिरी दौर में NCP (शरद चंद्र पवार) सुप्रीमो शरद पवार ने अजित पवार और उद्धव ठाकरे के ‘विश्वासघात’ का हवाला दिया है. दूसरी ओर एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना, बीजेपी, अजित पावर की NCP के नेता ‘लाडकी बहिन योजना’, विकास, शिवाजी महाराज और राष्ट्रवाद के नाम पर वोट मांग रहे हैं.

महाराष्ट्र चुनाव: विकास के नाम से शुरू कैंपेन, प्रचार के आखिर दिन कहां जाकर रुकेगा?

Maharashtra Premier League Tricky pitch for MVA, Mahayuti: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान का चुनावी शोर सोमवार की शाम थम जाएगा. इस हिसाब से आखिरी दो दिनों में हर राजनीतिक दल ने पूरी ताकत झोंक दी है. चुनावी गहमागहमी, बहसबाजी और आरोप-प्रत्यारोपों का दौर भी चरम पर है. सत्ताधारी महायुति हो या महाविकास अघाड़ी (MVA) प्रचार अभियान कल्याणकारी पहलों और विकास जैसे मुद्दों के साथ शुरू हुआ था लेकिन जैसे-जैसे यह आगे बढ़ा तो राजनीतिक रैलियों तथा सभाओं में ‘वोट जिहाद’, ‘धर्म युद्ध’, ‘संविधान खतरे में’ जैसे नारे लगने लगे. 

'क्या से क्या हो गया देखते-देखते'

प्रचार अभियान के आखिरी दौर में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद चंद्र पवार) प्रमुख शरद पवार ने अजित पवार और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे द्वारा किए गए ‘विश्वासघात’ का हवाला देते हुए मतदाताओं से भावनात्मक अपील की. मुख्यमंत्री शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), अजित पावर की रांकापा के गठबंधन वाली महायुति सरकार चुनावों से पहले महिलाओं के लिए अपनी ‘लाडकी बहिन योजना’ के सहारे मतदाताओं को साधने में लगी है. विधानसभा चुनाव के लिए मतदान 20 नवंबर को होना है. 

महायुति के ढाई साल बनाम महाअघाड़ी के ढ़ाई साल

उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली पूर्ववर्ती महा विकास आघाडी (एमवीए) सरकार ढाई साल तक सत्ता में रही, लेकिन जून 2022 में शिंदे और अन्य नेताओं ने बगावत कर दी और इसे गिरा दिया गया. पिछले साल, अजित पवार ने भी कई राकांपा विधायकों के साथ पार्टी में बगावत कर दी थी और महायुति सरकार में उपमुख्यमंत्री बन गए थे. निर्वाचन आयोग ने शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को असली शिवसेना और अजित पवार के नेतृत्व वाले गुट असली राकांपा घोषित कर दिया. राकांपा (एसपी) और शिवसेना (यूबीटी) के प्रचार अभियान में शिंदे और अजित पवार द्वारा किया गया ‘विश्वासघात’ का मुद्दा हावी रहा और ठाकरे ने मतदाताओं से ‘गद्दारों’ को पराजित करने की अपील की.ट

लोकसभा चुनाव में 'गद्दार' कहने से सहानुभूति मिल गई थी, विधानसभा चुनावों में भी क्या होगा ऐसा?

शरद पवार (84) भी राज्य के दौरे पर हैं और एक समय में अपने विश्वासपात्र रहे छगन भुजबल और दिलीप वलसे पाटिल के गढ़ में रैलियों को संबोधित कर रहे हैं. शरद पवार सोमवार को अपने गृह नगर बारामती में एक रैली को संबोधित कर सकते हैं, जहां अजित पवार अपने भतीजे एवं राकांपा (एसपी) के युवा नेता युगेंद्र पवार के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. मुंबई के दादर से भाजपा के समर्थक विनोद सालुंके ने दावा किया, ‘भाजपा द्वारा अजित पवार को सरकार में शामिल करना पार्टी के मूलभूत मूल्यों के साथ विश्वासघात है. यह भाजपा ही थी जिसने अजित पवार को भ्रष्ट कहा था और उनके खिलाफ अभियान छेड़ा था.’

हालांकि, सालुंके ने कहा कि वह फिर भी भाजपा का समर्थन कर रहे हैं क्योंकि उनके पास ‘‘कोई अन्य विकल्प नहीं है’’. लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद शिंदे नीत महायुति सरकार ने कई कल्याणकारी पहल शुरू की, जिनमें ‘मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहिन योजना’ भी शामिल है, जिसके तहत महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये दिए जाते हैं. कल्याणकारी उपायों और विकास के वादों के साथ शुरू हुए प्रचार अभियानों में ‘बंटेंगे तो कटेंगे’, ‘एक हैं तो सेफ हैं’, ‘वोट जिहाद’ और ‘धर्म युद्ध’ जैसे नारे धीरे-धीरे हावी हो गए, जिस पर पंकजा मुंडे और अशोक चव्हाण जैसे भाजपा नेताओं और प्रमुख सहयोगी अजित पवार ने भी चिंता जतायी.

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फडणवीस ने कहा कि नेता नारे के माध्यम से दिए गए एकता के ‘‘मूल संदेश’’ को नहीं समझ पाए हैं. फडणवीस ने हाल ही में कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘एक हैं तो सेफ हैं’ के नारे में इसे स्पष्ट रूप से कहा है.’ उन्होंने कहा कि यह नारा एकता की बात कहता है. चुनाव प्रचार के शोर में रोजगार सृजन, निवेश बढ़ाने, किसानों का पलायन, महंगी होती स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसे मुद्दे कहीं दब गए हैं. महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में कृषि संकट, सोयाबीन और कपास की कीमतों में गिरावट और कृषि श्रमिकों की कमी जैसे मुद्दे प्रमुख हैं, लेकिन राजनीतिक चर्चा से लगभग गायब हैं. मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे भी राज्य के विभिन्न हिस्सों का दौरा कर मतदाताओं से समुदाय के लिए आरक्षण का विरोध करने वालों को पराजित करने का आग्रह कर रहे हैं.

जरांगे ने चुनाव मैदान में नहीं उतरने का फैसला किया था. चुनाव के लिए प्रचार करने वालों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाद्रा, तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी, कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार, राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत शामिल रहे. राज्य की 288 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव के लिए 20 नवंबर होने वाले मतदान में 9.7 करोड़ लोग अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने के पात्र हैं. (भाषा)

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