Bollywood Film: प्यार और पैसे में जीत हमेशा प्यार की हो, ऐसा जरूरी नहीं! Amol Palekar-Zarina Wahab की फिल्म Gharaonda है समाज का आइना
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Bollywood Film: प्यार और पैसे में जीत हमेशा प्यार की हो, ऐसा जरूरी नहीं! Amol Palekar-Zarina Wahab की फिल्म Gharaonda है समाज का आइना

Amol Palekar Zarina Wahab की एक ऐसी फिल्म के बारे में हम आज बात करने जा रहे हैं जहां प्यार और पैसे की सालों पुरानी जंग में, जीत प्यार नहीं पैसे की होती है! ये फिल्म, समाज का आइना है जिससे लोग खुद को कनेक्ट कर पाते हैं...

Bollywood Film: प्यार और पैसे में जीत हमेशा प्यार की हो, ऐसा जरूरी नहीं! Amol Palekar-Zarina Wahab की फिल्म Gharaonda है समाज का आइना

Gharaonda Movie Review: फिल्मों में आमतौर पर वो दिखाया जाता है, जो लोगों की असल जिंदगी में नहीं होता! ज्यादातर फिल्मों की एन्डिंग हमेशा हैप्पी होती है, वो एन्डिंग जो लोगों को असल जीवन में मिले, ऐसा जरूरी नहीं है. बता दें कि हम आज एक ऐसी फिल्म के बारे में बात कर रहे हैं जिसकी शुरुआत तो बाकी फिल्मों की तरह ही होती है लेकिन इसका अंत, वो काफी ज्यादा रियलिस्टिक है. इस फिल्म में प्यार और पैसों की जंग में जीत प्यार की नहीं बल्कि पैसे की होती है. बता दें कि जिस बॉलीवुड फिल्म के बारे में हम बात कर रहे हैं वो आज से 45 साल पहले रिलीज हुई थी और ये फिल्म और इसके गाने, सुपरहिट साबित हुए थे. इसमें अमोल पालेकर (Amol Palekar) और जरीना वाहब (Zarina Wahab) ने अहम भूमिका निभाई थी. आइए जानते हैं कि यहां किस मूवी की बात हो रही है और इसमें किस तरह पैसे ने प्यार को हरा दिया... 
 
1977 की इस फिल्म ने समाज को दिखाया आइना 

अगर आप अब तक गेस नहीं कर पाए हैं कि हम यहां किस बॉलीवुड मूवी की बात कर रहे हैं तो बता दें कि यहां 'घरौंदा' (Gharaonda) की बात हो रही है जो साल 1977 में रिलीज हुई थी. घरौंदा फिल्म की शुरुआत एक नॉर्मल लव स्टोरी की तरह होती है जिसमें दो लोग एक दूसरे से प्यार करते हैं और एक दूसरे से शादी करना चाहते हैं. कहानी एक ऐसा मोड़ ले लेती है, जहां पैसों की जरूरत अमोल पालेकर के किरदार को जरीना वाहब के किरदार को ये सलाह देने पर मजबूर हो जाता है कि वो एक उनके बॉस से शादी कर ले. उनका बॉस उनसे उम्र में तो बड़ा है लेकिन काफी अमीर भी है. यहां से, पैसा प्यार पर भारी पड़ने लगता है.  

प्यार और पैसे में जीत हमेशा प्यार की हो, ऐसा जरूरी नहीं! 

फिल्म के इस दूसरे भाग में देखा जाता है कि जरीना वाहब अमोल पालेकर के लिए अपने बॉस से शादी कर लेती है लेकिन धीरे-धीरे पैसे का पलड़ा प्यार से भारी होता जाता है. जहां आमतौर पर फिल्मों का अंत आदर्शवादी होता है जहां प्यार जीत जाता है; इस फिल्म में ऐसा नहीं हुआ. अमोल पालेकर का किरदार काफी कुछ झेलता है और यहीं पिक्चर खत्म हो जाती है. हर बार हैप्पी एन्डिंग हो, ऐसा जरूरी नहीं है; हर बार प्यार और पैसों के बीच प्यार की जीत हो, ऐसा जरूरी नहीं है. 

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