चीन के बारे में कहा जाता है कि उसकी कथनी और करनी में बहुत अंतर होता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक खुफिया जानकारी हासिल करने के लिए वो अलग अलग देशों की मेधा शक्ति पर नजर बनाए हुए हैं. इसके लिए वो दूसरे देशों की मेधा शक्ति को अपने कब्जे में करने की कोशिश में जुटा हुआ है.
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चीन को दुनिया के ज्यादातर देश शक की निगाह से देखते हैं. ऐसा करने के पीछे बहुत सी वजहें हैं. चीन किस तरह से मदद के नाम पर गरीब देशों को कर्ज के जाल में फंसा लेता है. चीन किस तरह से पड़ोसी मुल्कों की जमीन पर ललचाई भरी नजरों से देखता है. ये सब किसी से छिपा नहीं है. तकनीक के जरिए भी चीन अलग अलग देशों की जानकारी हासिल करने की कोशिश करता है. चीन की हुवावेई और जेडटीई अब रडार पर हैं. अमेरिका के बाद अब भारत ने भी हुवावेई और जेडटीई की गतिविधियों पर लगाम लगाने में जुट गया है.
भारतीय मेधा को कंट्रोल की कोशिश
चीन किस तरह से चिप, एआई और होनहारों को स्कॉलरशिप के जरिए भारत की मेधाशक्ति पर कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा है. उसे समझने से पहले 2019 के एक अमेरिकी रिपोर्ट पर गौर करना होगा. अमेरिकी कांग्रेस में चाइना इंपैक्ट ऑन यूएस एजुकेशन सिस्टम पर एक रिपोर्ट पेश की गई. उस रिपोर्ट में जिक्र था कि चीन अपने ओवरसीज प्रोजेक्ट के जरिए रिसर्चर और वैज्ञानिकों को हायर करता है और उसके जरिए अमेरिका की गुप्त जानकारियों को हासिल करने में जुटा हुआ है. इस रिपोर्ट के बाद अमेरिकी सरकार सख्त हुई और साफ कर दिया कि अब चीनी टेक फर्मों या उपकरणों का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. अब बात करते हैं भारत की.
हुवावेई- इंडिया कनेक्शन
अप्रैल 2021 में एनआईटी राउरकेला के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने सितंबर 2020 में हुवावेई के साथ एमओयू को वापस ले लिया. इसके जरिए एआई में काम करना था. इसी तरह से बेंगलुरु में स्थापित आईआईआईटी ने भी हुवावेई से किनारा कस लिया. अब हुवावेई इंडिया कनेक्शन को समझने की जरूरत है, करीब 2 दशक पहले हुवावेई ने भारत में आर एंड डी के क्षेत्र में काम करना शुरू कर दिया था. सितंबर 1998 में बेंगलुरु में आईआईआईटी की स्थापना की गई. इसमें अलग अलग कोर्स, डेटा पर काम करना शुरु हुआ जिसकी वजह से भारत में इंटरनेट सेवा को रफ्तार मिली. एक साल के बाद यानी 1999 में हुवावेई और भारतीय शैक्षणिक संस्थानों के बीच समझौता हुआ. और इस तरह से 2015 में हुवावेई पहली ऐसी चीनी कंपनी थी जिसने भारत में पूर्ण रूप से आर एंड डी सेंटर स्थापित किया. करीब 170 मिलियन डॉलर के निवेश के साथ 2700 इंजीनियरों की भर्ती की. जिसमें 98 फीसद से अधिक भारतीय थे.
2017 में हुवावेई का बेंगलुरु सेंटर आर एंड डी के क्षेत्र में बड़े केंद्र के तौर पर उभरा और चार सौ टेक पेटेंट के लिए आवेदन किया. यही नहीं 2016 में आईआईआईटी बी ने हुवावेई इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ एमओयू कर आईमेटेक के छात्रों को स्कॉलरशिप देने का फैसला किया. उस मॉडल ने काम भी किया. देश के करीब दर्जनों कॉलेज ने स्कॉलरशिप के लिए हुवावेई से एमओयू साइन किया. इसकी शुरुआत पहले प्राइवेट संस्थानों से हुई और बाद में एनआईटी ने भी समझौता किया.
2019 में हुवावेई ने एनआईटी कर्नाटक के साथ एमओयू साइन कर छात्रों के स्कॉलरशिप फॉर एक्सीलेंस की शुरुआत की. स्कॉलरशिप की राशि 50 हजार रुपए वार्षिक थी. इस तरह से हुवावेई का विस्तार आईआईटी बी से आगे बढ़कर दूसरे शैक्षणिक संस्थानों तक फैली. अपने शुरुआती मिशन में कामयाब होने के बाद हुवावेई ने आईआईटी का साधने का लक्ष्य रखा. दिसंबर 2019 में हुवावेई की टीम ने आईआईटी दिल्ली का दौरा किया. 2020 में आईआईटी दिल्ली के साथ एआई, रिसर्च प्रोग्राम को आगे बढ़ाने के लिए समझौता हुआ. आईआईटी दिल्ली की एनुअल रिपोर्ट के मुताबिक एक करोड़ 45 लाख की मदद मिली. यही नहीं कोविड महामारी के बीच भी इंफेक्श फ्री फैब्रिक के विकास के लिए भी फंड मिला. इसी तरह से 2020 में आईआईटी बांबे को भी हुवावेई ने रिसर्च
पहले अमेरिका ने उठाया था कदम
अमेरिका के इस कदम के बाद अब भारत भी चीनी फर्मों पर कड़ाई करने की दिशा में आगे बढ़ चुका है. आईआईटी के एक निदेशक ने भी कहा था कि चीनी फर्म तेजी से भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में अपनी दखल बढ़ा रहे हैं. उनकी इस चिंता के बाद भारत सरकार ने कड़ाई से पेश आने का फैसला किया. लेकिन ईटी की रिपोर्ट के मुताबिक हुवावेई ने हाल ही में आईआईटी रूड़की, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु के साथ समझौता किया है और आईआईटी मद्रास के साथ बातचीत चल रही है. ये सभी संस्थान भारत के महत्वपूर्ण आर एंड डी सेंटर्स में से एक हैं जो मशीन लर्निंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और टेलिकम्यूनिकेशंस के क्षेत्र में काम कर रहे हैं. हुवावेई के साथ कुछ आईआईटी के एमओयू के बाद शिक्षा मंत्रालय(बता दें कि ऑटोनोमस संस्थानों के मामले में शिक्षा मंत्रालय बेहद कम दखल देता है.) ने इसकी जानकारी खुफिया एजेंसियों के साथ साझा की. खुफिया एजेंसी तत्काल एक्शन में आए और पता चला कि कोई भी संस्थान खासतौर से आईआईटी किसी भी रूप में हुवावेई के साथ एकेडमिक या आर एंड डी में शामिल नहीं हैं. ईटी के मुताबिक सभी आईआईटी से कहा गया है कि वो चीनी फर्मों के साथ अगर किसी मुद्दे पर आगे बढ़ते हैं तो वो राष्ट्रीय सुरक्षा का ध्यान रखें. अगर किसी तरह का समझौता हुआ है तो उसे खत्म कर दें.
आईआईटी के एक डॉयरेक्टर बिना नाम बताए कहते हैं कि किसी भी प्रोजेक्ट के लिए अगर फॉरेन फंडिंग मिलती है तो उस प्रोजेक्ट को लेकर रिसर्चर भी उत्साहित रहते हैं, किसी प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त मात्रा में फंड मिल जाता है. लेकिन एक बार जब सरकार की तरफ से राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर सलाह मिली तो उन्होंने तत्काल कदम उठाया. ईटी की रिपोर्ट के मुताबिक एक आईआईटी संस्थान ने विदेशी फंड को रिटर्न कर दिया और धीरे धीरे दूसरे आईआईटी और आईआईएस ने फंड लेने से मना कर दिया.