Donald Trump के मुताबिक भारत में वोटरों की संख्या (वोटर टर्नआउट) बढ़ाने के नाम पर अमेरिकी संस्था यूएसऐड (USAID) ने 182 करोड़ रुपये का फंड दिया.
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USAID Voter Turnout: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ये कहकर सियासी बम फोड़ दिया है कि पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन की मंशा भारत में पीएम नरेंद्र मोदी के अलावा किसी अन्य को जिताने की थी. किसको जिताने की थी? इस सवाल पर फिलहाल ट्रंप ने चुप्पी साधी है और कहा है कि हम इस बारे में भारत सरकार को बताएंगे. लेकिन उनकी बात से संकेत मिलता है कि बाइडेन प्रशासन वास्तव में पिछले साल के लोकसभा चुनाव में विपक्षी कांग्रेस और उसके सहयोगियों का समर्थक था. ट्रंप के मुताबिक भारत में वोटरों की संख्या (वोटर टर्नआउट) बढ़ाने के नाम पर अमेरिकी संस्था यूएसऐड (USAID) ने 182 करोड़ रुपये का फंड दिया. ये काम किस तरह किया गया आइए इस पर डालते हैं एक नजर:
CEPPS (1995)
अमेरिकी एजेंसी यूएसऐड ने भारत में वोटर टर्नआउट बढ़ाने के लिए 182 करोड़ रुपये भेजे. लेकिन उसका पूरा एक रूट है जहां से पैसा भारत में आया. दरअसल यूएसऐड के अंतर्गत 1995 में एक संस्था CEPPS (कंसोर्टियम फॉर इलेक्शंस एंड पोलिटिकल प्रोसेस स्ट्रेथनिंग) की स्थापना हुई. पूरी दुनिया में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और संस्थाओं को मजबूत करने के मकसद से 1995 में अमेरिका में इस संस्था का गठन हुआ. ये संस्था प्रमुख रूप से तीन अमेरिकी एनजीओ का संगठन है- IFES, NDI, IRI.
CEPPS का इन तीनों एनजीओ के माध्यम से कुल बजट करीब 4000 करोड़ का है.
IFES (1987)
इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (IFES)अंतरराष्ट्रीय एनजीओ है. इसका हेड ऑफिस अमेरिका के वर्जीनिया में है. 145 देशों में चुनावों से जुड़ी शिक्षा प्रदान करने का काम करता है.
NDI (1983)
नेशनल डेमोक्रेटिक इंस्टीट्यूट (NDI) देशों में लोकतंत्र को बढ़ावा देने के इरादे से 1983 से सक्रिय है.
IRI (1983)
इंटरनेशनल रिपब्लिकन इंस्टीट्यूट (IRI) चुनावों में नागरिक भागीदारी पर बल देता है.
CEPPS के 4000 करोड़ के फंड में से वोटर टर्नआउट बढ़ाने के नाम पर 182 करोड़ रुपये भेजे गए. CEPPS ने पैसा एशिया में काम करने वाले एनजीओ एशियन नेटवर्क फॉर फ्री इलेक्शंस (ANFREL) को दिया. ये एनजीओ एशियाई देशों में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय है. वहां से भारत में इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (IFES) को दिया गया.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत में आने के बाद वो पैसा भारत में मतदाता जागरूकता से जुड़े विभिन्न एनजीओ के पास गया. इसके साथ ही सिविल सोसाइटी के ऐसे समूहों में पैसा भेजा गया जो लोकतंत्र, मानवाधिकारों और सोशल जस्टिस से जुड़े संगठन हैं. एक खास नैरेटिव बनाने के लिए प्रचार तंत्र को पैसा दिया गया. किन राजनीतिक दलों को दिया गया, उनका नाम अभी सार्वजनिक नहीं किया गया.