Beant Singh Death Anniversary: आज उस नेता की डेथ एनिवर्सरी है, जिसने पंजाब की सूरत बदल दी, सेना छोड़कर राजनीति में आए इस नेता का नाम है सरदार बेअंत सिंह. जिनकी हत्या इतनी दर्दनाक की गई कि पूरा देश हिल गया, और हमेशा के लिए इस नेता का नाम और काम इतिहास में दर्ज है. आइए जानते हैं 31 अगस्त 1995 के दिन की कहानी.
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Beant Singh: 31 अगस्त साल 1995, मतलब ठीक 29 साल पहले. चंडीगढ़ स्थित सीएम दफ्तर में रोज की तरह चहल-पहल थी. तभी प्रदेश के मुखिया सरदार बेअंत सिंह के आने की सूचना मिली और पुलिस हरकत में आ गई. सीएम की बुलेट प्रूफ एंबेसडर कार पोर्टिको में लग चुकी थी. कमांडोज से घिरे सीएम आए, कार में अभी बैठ भी नहीं पाए थे तभी एक तेज धमाका हुआ. तेज आवाज, चारों तरफ धूल का गुबार और जब ये कम हुआ तो सचिवालय परिसर रक्तरंजित हो चुका था. वहाँ मौजूद लोगों के चीथड़े इधर-उधर बिखरे पड़े थे. और पंजाब की कमान संभालने वाला शख्स विस्फोट की भेंट चढ़ गया था.
पहले सीएम जिसकी हुई हत्या
यह पहली ऐसी वारदात थी जब देश में किसी सीएम को निशाना बनाया गया. बेअंत सिंह, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ राजनेताओं में से एक और पंजाब के भूतपूर्व मुख्यमंत्री थे. आतंकवाद का दमन, आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण यह उनके कार्यकाल का मूल आधार था. इनका नाम उन नेताओं में शुमार था, जो सिर्फ पार्टी या किसी राजनीतिक दल तक सीमित नहीं थे, बल्कि देश और अपने राज्य के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध थे.
अलगाववाद ने ली जान
पंजाब उन दिनों अलगाववाद की आग में झुलस रहा था. सीएम के रूप में सरदार बेअंत सिंह काफी सख्त थे. वे अलगाववाद के खिलाफ थे और यही उनकी दर्दनाक मौत का सबसे बड़ी वजह रही. खालिस्तानी अलगाववादियों ने बेअंत सिंह की कार को एक मानव बम से उड़ा कर पूरे देश को हिला कर रख दिया था, धमाके की गूंज दिल्ली तक पहुंची.
बलवंत सिंह राजोआना बना आरोपी
सीएम दफ्तर में हुए इस दुस्साहसिक वारदात के बाद पुलिस ने बलवंत सिंह राजोआना को गिरफ्तार किया. पुलिस के मुताबिक इसका मास्टर माइंड जगतार सिंह तारा था, जो खालिस्तानी टाइगर फोर्स का स्वयंभू कमांडर था. लगभग 12 साल तक चले मुकदमे के बाद 31 जुलाई 2007 में अदालत ने इस मामले में जगतार सिंह को मौत की सजा सुनाई और बाकी चार अन्य को 10 साल की सजा हुई. बाद में हाईकोर्ट ने जगतार सिंह की फांसी की सजा उम्रकैद में बदल दी लेकिन बलवंत को राहत नहीं मिल पाई. फिलहाल वह जेल में है. उसकी फांसी की सजा के खिलाफ कैम्पेन चले. पंजाब के तब के सीएम प्रकाश सिंह बादल ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से मुलाकात की. इस बीच शिरोमणि गुरुद्वारा कमेटी ने उसकी दया याचिका राष्ट्रपति के सामने रखी.
2012 में लगी थी बलवंत सिंह की फांसी पर रोक
साल 2012 में सरकार ने राजोआना की फांसी पर रोक लगा दी. साल 2019 में केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने उसकी फांसी को उम्रकैद में बदलने की घोषणा की लेकिन मामला ठंडे बस्ते में चला गया. फिलहाल, दुस्साहसिक वारदात के 28 साल बाद भी यह तय नहीं है कि राजोआना मामले में आगे क्या होना है. वह इतने बरस से जेल में रहकर भी प्रभावी भूमिका में है. इसका प्रमाण उसके लिए चले कैम्पेन, एक सीएम का राष्ट्रपति से मिलना, शिरोमणि गुरुद्वारा कमेटी की ओर से दया याचिका दाखिल करना आदि शामिल हैं.
सेना छोड़कर राजनीति में आए थे सरदार बेअंत सिंह
साल 1922 में पैदा हुए सरदार बेअंत सिंह ने स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद सेना के माध्यम से देश सेवा का संकल्प लिया. वे भर्ती भी हो गए लेकिन उन्हें लगा कि यहाँ रहकर देश और समाज की वह सेवा वे नहीं कर पा रहे हैं, जो करना चाहते हैं. जनसेवा को बेचैन बेअंत सिंह ने सेना छोड़ने का फैसला किया और राजनीति में कदम रख दिया. उनकी राजनीतिक यात्रा जमीन से शुरू हुई. साल 1960 में वे बिलासपुर गाँव के सरपंच चुने गए. उम्र थी 38 साल. फिर ब्लॉक समिति के चेयरमैन चुने गए. फिर लुधियाना में सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक के निदेशक बने. इस तरह राजनीति की एक-एक सीढ़ियाँ चढ़ते हुए वे वर्ष 1969 में पहली बार निर्दलीय विधायक के रूप में विधान सभा पहुँचे. फिर राजनीति में वे पीछे नहीं मुड़े. पांच बार एमएलए बने. पंजाब कांग्रेस के चीफ भी रहे.
पंजाब की बदली सूरत
बेअंत सिंह पंजाब के एक प्रमुख राजनेता थे जिन्होंने 1992 से 1995 तक पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया. उनके कार्यकाल के दौरान पंजाब में कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
आतंकवाद का दमन: बेअंत सिंह के नेतृत्व में पंजाब सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की, जिससे पंजाब में शांति और स्थिरता बहाल हुई.
आर्थिक विकास: बेअंत सिंह ने पंजाब के आर्थिक विकास के लिए कई कदम उठाए, जिनमें कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देना और उद्योगों को प्रोत्साहित करना शामिल था.
सामाजिक कल्याण: बेअंत सिंह ने सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में भी कई कदम उठाए, जिनमें शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार शामिल था.
साल 1922 में पैदा हुए सरदार बेअंत सिंह ने काफी छोटी उम्र में देश सेवा का संकल्प लिया था. पहले वो भारतीय सेना से जुड़े लेकिन जनसेवा को बेचैन बेअंत सिंह ने सेना छोड़ने का फैसला किया और राजनीति में कदम रख दिया. इन कुछ किस्सों के अलावा, बेअंत सिंह के जीवन और कार्यकाल से जुड़े कई अन्य महत्वपूर्ण पहलू हैं, जो उनके व्यक्तित्व और नेतृत्व को दर्शाते हैं.
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