बिहार के नए डीजीपी की तलाश तेज हो गई है. क्योंकि एसके सिंघल जो मौजूदा डीजीपी हैं वो अगले महीने यानी 19 दिसंबर को रिटायर हो जाएंगे लिहाजा राज्य सरकार ने डीजीपी के सेलेक्शन के लिए अभी से ही प्रयास तेज कर दिए हैं.
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पटना : बिहार में डीजीपी की तलाश तेज हो चुकी है. दरअसल, मौजूदा डीजीपी एसके सिंघल 19 दिसंबर को रिटायर होने वाले हैं लिहाजा उसके पहले डीजीपी के सेलेक्शन को लेकर सरकार ने प्रयास करने तेज कर दिए हैं. साल 2020 में विधानसभा चुनाव के ठीक पहले एसके सिंघल को डीजीपी का अतिरिक्त प्रभार दिया गया, फिर दिसंबर 2020 में इन्हें पूर्णकालिक डीजीपी बनाया गया. नए डीजीपी की तलाश में सरकार जुटी हुई है, अब देखना होगा कि प्रदेश के नए डीजीपी कौन होते हैं और वो पुलिसिंग को कितनी रफ्तार देते हैं.
एसके सिंघल के सेवाकाल में कई युवाओं पुलिस में हुए भर्ती
बिहार के नए डीजीपी की तलाश तेज हो गई है. क्योंकि एसके सिंघल जो मौजूदा डीजीपी हैं वो अगले महीने यानी 19 दिसंबर को रिटायर हो जाएंगे लिहाजा राज्य सरकार ने डीजीपी के सेलेक्शन के लिए अभी से ही प्रयास तेज कर दिए हैं. साल 2020 में गुप्तेश्वर पांडे के वीआरएस लेने के बाद विधानसभा चुनाव से ऐन पहले एसके सिंघल को बिहार के डीजीपी का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया था, 20 दिसंबर 2020 को इन्हें पूर्णकालिक डीजीपी के तौर पर कार्यभार सौंपा गया , हालांकि 31 अगस्त 2021 को ही वो रिटायर होने वाले थे लेकिन इनके उत्कृष्ट कार्यों को देखते हुए इनकी सेवा अवधि को बढ़ा दिया गया. एसके सिंघल के सेवाकाल में हजारों युवाओं के पुलिस में जाने का सपना पूरा हुआ इसके अलावा डायल 112 इनके लिए एक बड़ी उपलब्धि रही, इसके साथ ही पुलिस दम्पतिओ को एक जिले में पोस्टिंग इनकी बड़ी पहल रही है.
लेकिन कार्यकाल के दौरान इनके दामन पर भी कई दाग लगे जिसमें प्रमुख है एक शातिर का इन्हें जज बनकर फोन करना और एक दागदार आईपीएस अधिकारी की मदद करना है. जिससे सरकार की काफी फजीहत हुई और यह साफ हो गया कि आने वाले समय में अब इन्हें सेवा विस्तार नहीं मिलेगा. 1988 बैच के एसके सिंघल पंजाब के जालंधर छावनी के रहने वाले हैं और गणित में इन्होंने गोल्ड मेडल हासिल किया है बतौर एसपी इन्होंने सिवान,नालंदा,कैमूर रोहतास और भोजपुर जिलों में अपनी सेवाएं दे दी हैं. आईपीएस बनने से पहले साल 1987 में इन्होंने आईएफएस की परीक्षा भी पास कर ली थी.
अब नजर डालते हैं उन संभावित नामों की जो बिहार के नए डीजीपी बनने की रेस में शामिल हैं बिहार में डीजी रैंक के कुल अधिकारियों की संख्या 11 है जिसमें 6 डीजी रैंक के अधिकारी सेंट्रल डेपुटेशन यानी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं. वरीयता के आधार पर अगर देखा जाए तो 1986 बैच के शील वर्धन सिंह सबसे वरिष्ठ हैं, उनके बाद 1987 बैच के ए सेमा, 1988 बैच के मनमोहन सिंह लेकिन ये तीनों अधिकारी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं. 1988 बैच के ही अरविंद पांडे और 1989 बैच के आलोक राज इस रेस में आगे हैं. 1990 बैच के आईपीएस अधिकारियों की बात करें तो डीजी रैंक के दो अधिकारी हैं जिसमें आर एस भट्टी सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं इसके बाद शोभा अहोतकर जो फिलहाल होमगार्ड और अग्निशमन विभाग की डीजी हैं. वहीं 1991 बैच के विनय कुमार, प्रवीण वशिष्ठ और रीता वर्मा भी हैं, 1992 बैच के एके अम्बेडकर भी सीनियर डीजी रैंक के अधिकारी हैं.
बिहार के पूर्व डीजीपी अशोक गुप्ता ने बताया कि यह कुछ संभावित नाम है जो डीजीपी की रेस में है लेकिन इन सारे अधिकारियों के बीच से डीजीपी कौन बनेगा यह राज्य और केंद्र सरकार के संबंध में से तय होता है. इसका आधार और प्रोसेस क्या होता है हमने जानने की कोशिश की बिहार के पूर्व डीजीपी अशोक गुप्ता से जिन्होंने हमें यह पूरी प्रक्रिया बताई और यह भी इशारा कर दिया कि किसका पलड़ा भारी है. इस बार वरीयता और उत्कृष्ट कार्य की अगर बात करें तो डीजी रैंक की दौड़ में अरविंद पांडे, आलोक राज और शोभा अहोतकर का नाम सबसे पहले है, इसके अलावा कई अन्य नाम भी डीजीपी की दौड़ में शामिल हैं अब इसमें देखने वाली बात है कि बाजी कौन मारते हैं.
इनपुट - रितेश
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