Sanjay Jha: संजय झा के पास मौका है और वो इस मौके को भुना भी रहे हैं. पहले नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी की पटकथा तैयार की और अब 2025 में भी नीतीश की भूमिका लिख रहे हैं. यह समय बताएगा कि वे अपने मकसद में कितना कामयाब होते हैं पर कोशिश करने में जाता क्या है?
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2025 में फिर से नीतीश... जेडीयू के सभी कार्यकर्ताओं और नेताओं की यही चाहत होगी लेकिन ऐसा होना आसान तो कतई नहीं कहा जा सकता. कागजों से लेकर धरातल तक एनडीए मजबूत है, इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए. एंटी इनकमबेंसी है, लेकिन विकल्प के रूप में राजद का शासनकाल याद आते ही एंटी इनकमबेंसी भी सिहर उठती है. दिक्कत की बात यह है कि एनडीए के नेता एकजुट हैं लेकिन क्या उसके वोटर भी एकजुट हैं? यह सवाल तब और बड़ा हो जाता है, जब एनडीए के मुख्यमंत्री एक ही कार्यकाल में 3 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हैं और कभी भाजपा तो कभी राजद, ठगे से रह जाते हैं. साथ ही ठगे से रह जाते हैं इन दलों के नेता और कार्यकर्ता भी. भाजपा कार्यकर्ता और वोटर नीतीश कुमार के पाला बदल से ज्यादा धोखा खाए हुए हैं तो उनके अंदर इसका गुबार हो सकता है.
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यह भी सभी जानते हैं कि नीतीश कुमार के लिए 2020 का चुनाव कितना मुश्किल था. तब सुशासन बाबू के रूप में उनके तमगे पर तेजस्वी यादव लगातार दागदार बनाने की कोशिश कर रहे थे. चिराग पासवान एनडीए से अलग होकर नीतीश कुमार पर लगातार हमलावर थे. ताज्जुब की बात यह रही कि वहीं चिराग पासवान पीएम मोदी को अपना आदर्श मानकर पूरे चुनाव में खुद को उनका हनुमान होने का दावा करते रहे थे. खैर, नीतीश कुमार ने चिराग पासवान से उसका बदला अपने स्टाइल में ले लिया था.
अब इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव की बात करते हैं. इस बार भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने की चुनौती है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दाहिने हाथ और जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने इसके लिए एक रणनीति पर अक्टूबर महीने में ही काम करना शुरू कर दिया था. बाद में जो होगा, सो होगा लेकिन एक बात तो तय है कि विधानसभा चुनाव में एनडीए नीतीश कुमार के नाम के साथ कूदेगा. लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद से नीतीश कुमार के चेहरे की अहमियत अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है. हालांकि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली अप्रत्याशित सफलता से दोनों दलों के बीच संदेह के थोड़े बादल छाए हुए हैं.
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जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा इसे बहुत पहले समझ गए थे. चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा कार्यकर्ता नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के साथ विश्वासघात न करें, इसके लिए पिछले साल 28 अक्टूबर को ही रूपरेखा तय कर ली गई थी. तब नीतीश कुमार ने एनडीए के सभी सहयोगी दलों के प्रदेश और जिलाध्यक्षों और अन्य नेताओं को अपने आवास पर बुलाया था. बताने की जरूरत नहीं कि संजय झा ने ही इस बैठक का खाका खींचा था और सम्राट चौधरी ने इसका समर्थन किया था. योजना ने जल्द ही आकार ले लिया. संजय झा ने भाजपा नेताओं और छोटे सहयोगियों तक पहुंचकर जॉर्ज फर्नांडिस की भूमिका निभाते हुए सभी को सफलतापूर्वक यह विश्वास दिलाया कि यदि एनडीए को 243 में से 225 सीटें जीतनी हैं तो जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को एकजुट होना होगा.
संजय झा ने कहा था, हम जमीनी स्तर पर किसी भी तरह की गलतफहमी बर्दाश्त नहीं कर सकते. चाहे जेडी (यू) हो या भाजपा, कार्यकर्ताओं को संवाद और एकजुटता से काम करने की जरूरत है. इसके आधार पर दिसंबर में एक बड़ी योजना तैयार की गई, जिसमें सभी 37 जिलों में संयुक्त कार्यकर्ता सम्मेलन शामिल थे, जिसमें एनडीए के सभी पांच सहयोगियों के प्रदेश अध्यक्ष मौजूद रहेंगे. अभियान का पहला चरण 15 जनवरी को पश्चिम चंपारण में शुरू हुआ, जिसमें 10 जिले शामिल थे. वर्तमान में इस सम्मेलन का चौथा चरण चल रहा है, जिसमें खगड़िया और बेगूसराय शामिल हैं. झा के अनुसार, 28 फरवरी से शुरू होने वाले बिहार विधानसभा के बजट सत्र से पहले अंतिम चरण पूरा होने की उम्मीद है.
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इसके अलावा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रगति यात्रा नाम से एक राज्यव्यापी यात्रा शुरू की, जो अब पूरे जोरों पर है. संजय झा ने कहा था, 'नीतीश कुमार की छवि एक ऐसे नेता की है, जिन्होंने राज्य को लालू युग के अंधकार युग से बाहर निकाला. नीतीश जी न केवल लोगों के लिए किए गए अपने कामों का वर्णन कर रहे हैं, बल्कि मौजूदा विकास कार्यों का जायजा भी ले रहे हैं और बता रहे हैं कि किसी दिए गए जिले में क्या किए जाने की जरूरत है. फुट ओवरब्रिज, सड़क और नाले जैसी विकास परियोजनाओं को तुरंत मंजूरी मिल रही है और यह यात्रा नीतीश की उपलब्धियों को प्रदर्शित करने का एक मंच बन गई है.'
कुल मिलाकर, संजय झा ने दूरदर्शिता दिखाते हुए जहां भाजपा और एनडीए के अन्य साथी दलों को एक मंच पर लाने का काम किया, वहीं उनकी सलाह पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रगति यात्रा पर निकल गए. इन दो कदमों से जहां एनडीए के भीतर नीतीश कुमार के नाम पर स्वीकार्यता की अब कोई गुंजाइश नहीं रह गई है, वहीं यात्रा के चलते नीतीश कुमार लोगों के बीच जाकर अपनी उपलब्धि बता रहे हैं. लोगों की छोटी छोटी दिक्कतों को तत्काल दुरुस्त कराया जा रहा है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय में नीतीश कुमार के लिए जो काम जॉर्ज फर्नांडीज किया करते थे, पीएम मोदी के समय में वहीं काम संजय झा करने की कोशिश कर रहे हैं. सफलता और असफलता समय के हाथ में है, लेकिन कोशिश करने में क्या जाता है. संजय झा शायद इसी उद्देश्य से नीतीश कुमार के लिए संकटमोचक की भूमिका निभा रहे हैं.