Bihar Politics: बिहार के विधानसभा चुनाव में एनडीए पच्चीस में दो सौ पच्चीस का नारा दे रहा है, लेकिन बिहार एनडीए के मुखिया मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अहम सरकारी कार्यक्रमों से नदारद हो रहे हैं. उधर, तेजस्वी यादव लगातार नीतीश कुमार के अक्षम होने का हवाला दे रहे हैं. भाजपा तो हलकान होगी ही.
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इसमें कहने की कोई बात नहीं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में एनडीए की ओर से तुरुप के इक्का हैं, लेकिन उनकी तबीयत खराब होने की खबरों से जेडीयू की तुलना में भाजपा ज्यादा परेशान है. भाजपा को परेशानी हो भी क्यों न? दिल्ली के बाद भाजपा को बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटना जो है. भाजपा को न केवल खुद की बल्कि अपने सहयोगी दलों की भी चिंता करनी है, लेकिन आज की तारीख में सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी जेडीयू के अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तबीयत कुछ नासाज चल रही है. इस कारण वे उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को रिसीव करने पटना के एयरपोर्ट तक भी नहीं पाए थे. विपक्ष उनकी बीमारी को उनकी अक्षमता साबित करने पर तुला हुआ है और इसी को चुनाव में मुद्दा बना सकता है. इसलिए भाजपा परेशान है.
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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले 19 सालों में एक रवायत कायम की है और वो यह है कि एक दलित टोली में हर साल गणतंत्र दिवस के मौके पर वे झंडोत्तोलन के लिए जाते रहे हैं. हालांकि इस बार स्वास्थ्य ने उनका साथ नहीं दिया तो वे कार्यक्रम तय होने के बाद भी दलित टोली में झंडा फहराने नहीं गए. बता दें कि इस बार उन्हें फुलवारी शरीफ प्रखंड के महुली गांव के महादलित टोली में जाना था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नहीं गए तो उनके प्रतिनिधि के तौर पर वरिष्ठ नेता और मंत्री विजय चौधरी वहां पहुंचे और उनकी मौजूदगी में महुली टोले के बुजुर्ग सुभाष रविदास ने झंडा फहराया.
पिछले सप्ताह पटना में देश भर के विधानसभा और विधान परिषद के सभापतियों का सम्मेलन था. सम्मेलन में लोकसभा के अध्यक्ष भी आए हुए थे. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी सम्मेलन में शिरकत करना था, लेकिन वे स्वास्थ्य कारणों से नहीं आ पाए. इसके अलावा 24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर की जयंती मनाई जाती है. उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति यानी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ इस दिन पटना और समस्तीपुर के दौरे पर आए हुए थे. कायदे से प्रोटोकॉल के अनुसार, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को रिसीव करने जाना चाहिए था पर वे नहीं जा पाए. इसके अलावा नीतीश कुमार कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम का हिस्सा भी नहीं बन पाए थे, जबकि इसमें हिस्सा लेने के लिए शिवराज सिंह चौहान भी समस्तीपुर आए हुए थे.
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जानकारों का मानना है कि भाजपा को सत्ता के करीब लाने में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अहम रोल रहा है. भले ही भाजपा का अपना मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है लेकिन पिछले 20 साल में एक दो सालों को छोड़ दें तो भाजपा सत्ता में बनी रही है. अब नीतीश कुमार की अस्वस्थता के चलते बड़े कार्यक्रम भी मिस हो रहे हैं. डर इस बात का है कि कहीं नीतीश कुमार चुनाव प्रचार से दूर न हो जाएं. अगर ऐसा हुआ तो विपक्षी नेता खासतौर से तेजस्वी यादव नीतीश कुमार को अक्षम मुख्यमंत्री कहकर संबोधित करेंगे और लोगों के बीच एक परसेप्शन बनाने की कोशिश करेंगे, इसमें कोई दोराय नहीं होनी चाहिए. भाजपा के लिए चिंता का विषय भी यही है. भाजपा को इस बात का भी डर है कि नीतीश कुमार की गैरमौजूदगी में जेडीयू में तोड़फोड़ न हो जाए. दूसरी पीढ़ी के नेताओं में एकमत न होने से पार्टी बिखर भी सकती है.