Bihar Politics: नाम बनाना और नाम चुराना, इन दोनों में काफी अंतर होता है. भारतीय राजनीति में ऐसी खींचतान हमेशा चलती रहती है. जिस इंडिया ब्लॉक की नींव नीतीश कुमार ने रखी थी, उसे बाद में कांग्रेस ने टेकओवर कर लिया था. नीतीश कुमार ने इंडिया ब्लॉक में रहते 4 बैठकें कराई थीं, लेकिन जब से वे इस गठबंधन से बाहर निकले, विपक्षी नेता एक छत के नीचे नहीं दिखे.
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Bihar Politics: दिल्ली चुनाव में आज (शनिवार, 8 फरवरी) वोटों की गिनती होने जा रहा है. दोपहर तक पूरी तस्वीर आज साफ हो जाएगी और पता चल जाएगा. दिल्ली के नतीजे आते ही पूरे देश का फोकस बिहार की ओर शिफ्ट हो जाएगा, क्योंकि अब अगला नंबर बिहार का है. दिल्ली में चाहे जो भी परिणाम आएं, वे बिहार की राजनीति को बड़े स्तर पर प्रभावित कर सकते हैं. दिल्ली चुनाव के बाद इंडिया ब्लॉक में काफी बदलाव देखने को मिल सकता है. सियासी गलियारों में तो यहां तक चर्चा है कि बिहार चुनाव से पहले इंडिया ब्लॉक की ड्राइविंग सीट से कांग्रेस को उठाकर किसी क्षेत्रीय दल के नेता को बिठाया जा सकता है. इसके संकेत भी देखने को मिलने लगे हैं. कांग्रेस के पुराने सहयोगी रहे राजद अध्यक्ष लालू यादव भी यही चाहते हैं. उन्होंने काफी पहले ही कह दिया है कि इंडिया ब्लॉक की कमान अब पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को सौंप देनी चाहिए.
सियासी जानकारों के मुताबिक, कांग्रेस को भले ही ये बात बुरी लगे, लेकिन पार्टी ज्यादा दिनों तक इस गठबंधन को लीड नहीं कर पाएगी. दिल्ली में अगर आम आदमी पार्टी के हाथों से सत्ता फिसलती है तो उसका पूरा ठीकरा कांग्रेस के सिर पर फोड़ दिया जाएगा. वहीं अगर केजरीवाल ने सत्ता में वापसी कर ली तो भी कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठेंगे. ऐसी परिस्थिति में तमाम क्षेत्रीय दल कांग्रेस के अंडर काम करने से इनकार कर सकते हैं. इंडिया ब्लॉक बिखरे ना इसके लिए उसका नेतृत्व परिवर्तित किया जा सकता है. कहा जा रहा है कि यह सबकुछ बिहार चुनाव से पहले ही हो जाएगा.
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वैसे भी इंडिया ब्लॉक की नींव बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रखी थी. इंडिया ब्लॉक में रहते हुए नीतीश कुमार ने चार बैठकें कराई थीं, लेकिन जैसे ही वे इस गठबंधन से बाहर निकले, दोबारा एक छत के नीचे विपक्षी नेता जुट नहीं सके. कांग्रेस के नेतृत्व में जनवरी 2024 में पांचवीं बैठक हुई जरूर थी, लेकिन वह वर्चुअल थी. इस बैठक में भी सिर्फ 14 दलों के नेता शामिल हुए थे. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस बैठक में शामिल नहीं हुई थीं. इसके कुछ दिनों बाद उन्होंने साफ कर दिया था कि पश्चिम बंगाल में वह कांग्रेस और लेफ्ट से गठबंधन नहीं करेंगी.
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