Bihar News: बिहार में जितने बड़े नेता, उतनी ही संख्या में राजनीतिक दल. आम तौर पर देखा जाता है कि हर चुनाव के मौके पर एक या दो राजनीतिक दल पैदा होते हैं और फिर सिमटकर रह जाते हैं.
Trending Photos
1995 से बिहार में राजनीतिक दल बनाने का नया ट्रेंड शुरू हुआ था, जो आज भी जारी है. अकसर हर चुनाव में एक नई राजनीतिक पार्टी मैदान में होती है. नया जोश, नया जुनून के साथ पार्टी मैदान में आती है, मुकाबला करती है, कई बार बिखर जाती है तो कई बार सत्ता बदलते हुए भी देखा गया है. 1997 में स्थापना के बाद से लेकर 2005 तक राष्ट्रीय जनता दल सत्ता में रहा पर 2005 में जब जेडीयू की ओर से नीतीश कुमार ने सत्ता संभाली तो राष्ट्रीय जनता दल के लिए सत्ता एक सपना हो गया. दो बार मौका भी मिला लेकिन नीतीश कुमार ने अपने हिसाब से राजद को दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका था. इसके अलावा उपेंद्र कुशवाहा अब तक तीन बार नई पार्टी बना चुके हैं और 2 बार अपनी पार्टी का विलय भी कर चुके हैं. जीतनराम मांझी भी नई पार्टी बनाकर मंत्री बनने का सुख भोग रहे हैं तो विकासशील इंसान पार्टी के नेता मुकेश सहनी भी पार्टी बनाकर कभी इधर तो कभी उधर की पॉलिटिक्स करते रहे हैं.
READ ALSO: मुझे JMM में मंच नहीं मिला तो BJP की सदस्यता ग्रहण करने का फैसला किया: चंपई सोरेन
20 साल से जेडीयू सत्ता में पर बिहार में ही सिमटकर रह गई
1994 में जॉर्ज फर्नांडीज और नीतीश कुमार ने मिलकर समता पार्टी बनाई थी. 1995 में समता पार्टी विधानसभा चुनाव में बुरी तरह मात खा गई और फिर लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा से गठबंधन हुआ था. 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 13 दिन की सरकार बनी थी तो समता पार्टी भी उसमें साझीदार थी. 1997 में लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में जेल जाने वाले थे. जेल जाने से पहले पत्नी को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे पर तत्कालीन जनता दल नेतृत्व इस बात के लिए सहमत नहीं था. इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया और पत्नी को मुख्यमंत्री बनाकर जेल चले गए थे. 2003 में समता पार्टी को शरद यादव का साथ मिला और दोनों दलों को मिलाकर जनता दल यूनाइटेड नाम दे दिया गया. 2005 में जनता दल यूनाइटेड के नेता के रूप में नीतीश कुमार ने राबड़ी देवी की सरकार को उखाड़ फेंका था. जीतनराम मांझी के संक्षिप्त कार्यकाल को छोड़ दें तो नीतीश कुमार तब से लेकर आज तक मुख्यमंत्री बने हुए हैं.
पासवानों के नेता बनकर रह गए रामविलास, चिराग और पशुपति
जेडीयू बनने से पहले सन् 2000 में रामविलास पासवान ने लोकजनशक्ति पार्टी का गठन किया था. 17 प्रतिशत दलित समुदाय को लुभाने के लिए रामविलास पासवान ने यह पार्टी बनाई थी, लेकिन वे बाद में केवल पासवानों के नेता बनकर रह गए थे. 2005 के विधानसभा चुनाव में लोजपा को 29 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी पर बाद की राजनीति में वे कभी प्रभावशाली भूमिका में नहीं आ पाए थे. उनके निधन के बाद लोजपा के दो धड़े हो गए— लोजपा रामविलास और रालोजपा. लोजपा रामविलास का नेतृत्व चिराग पासवान के हाथ में तो रालोजपा का नेतृत्व उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के हाथों में है.
READ ALSO: सबसे बड़ा सवाल: क्या बिहार की पॉलिटिक्स में पासवान परिवार सबसे कमजोर कड़ी है?
रूठने-मनाने में गुजर गए उपेंद्र कुशवाहा के 17 साल
समता पार्टी का जेडीयू में विलय हो जाने के बाद 2007 में राष्ट्रीय समता पार्टी की स्थापना हुई. नीतीश कुमार से नाराजगी के चलते उपेंद्र कुशवाहा ने यह दल बनाया था पर प्रभावी भूमिका न निभा पाने के बाद 2009 में जेडीयू में इसका विलय हो गया था. 2013 में वे फिर नाराज हो गए और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बनाकर एनडीए में शामिल हो गए. तब नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाए जाने से नीतीश कुमार ने नाराज होकर एनडीए का दामन छोड़ दिया था. 2014 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया और वे मोदी सरकार में मंत्री भी बन गए. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उपेंद्र कुशवाहा समय को भांप नहीं पाए और मोदी सरकार से बागी होकर महागठबंधन कैंप में चले गए. 2 सीटों से लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद भी वे एक भी सीट नहीं जीत पाए तो अपनी पार्टी का फिर से जेडीयू में विलय कर लिया था. 2023 में कुशवाहा फिर नाराज हो गए और अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा का गठन किया. लोकसभा चुनाव 2024 में वे काराकाट से चुनाव लड़े पर हार गए.
पीएम मोदी बने जीतनराम मांझी के खेवैया
नीतीश कुमार से एक और नेता ने बगावत की थी. वो नेता हैं जीतनराम मांझी. मांझी ने 2015 में हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा का गठन किया था पर उनकी पार्टी को 2015 के विधानसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था. 2019 में लोकसभा चुनाव वे महागठबंधन के साथ लड़े और फिर शिकस्त मिली. 2020 में मांझी एनडीए कैंप का हिस्सा बन गए और 4 विधानसभा सीटों पर उन्हें जीत मिली थी. 2024 के लोकसभा चुनाव में जीतनराम मांझी गया लोकसभा सीट से सांसद चुने गए और अभी वे मोदी सरकार में मंत्री हैं. 2015 में राजद से बाहर निकाले जाने के बाद पप्पू यादव ने जन अधिकार पार्टी यानी जाप का गठन किया था. 2015, 2019, 2020 के चुनावों में हार के बाद पप्पू यादव ने कांग्रेस में अपनी पार्टी का विलय कर लिया, लेकिन पूर्णिया सीट को लेकर मची रार के बीच कांग्रेस ने पप्पू यादव से किनारा कर लिया था. पप्पू यादव निर्दलीय चुनाव लड़े और जीते भी.
मुकेश सहनी न घर के रहे न घाट के
2018 में मुकेश सहनी ने विकासशील इंसान पार्टी का गठन किया था. 2020 के विधानसभा चुनाव में सहनी की पार्टी को 4 सीटों पर जीत हासिल हुई थी पर 3 विधायक भाजपा में शामिल हो गए और एक विधायक का निधन होने के बाद उपचुनाव में वह सीट विपक्ष ने जीत ली थी. इस तरह मुकेश सहनी को कुछ भी हासिल नहीं हुआ. 2024 के लोकसभा चुनाव में राजद ने उन्हें 3 सीटें दी थीं, पर एक भी प्रत्याशी जीतने में सफल नहीं हुआ था. बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव से पहले एक और पार्टी का गठन हुआ था— प्लूरल्स पार्टी. पार्टी ने 2020 में सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे पर एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई थी. पार्टी अध्यक्ष पुष्पम प्रिया चौधरी खुद 2 सीटों से चुनाव लड़ीं और दोनों हार गई थीं. 2024 के लोकसभा चुनाव में प्लूरल्स पार्टी मैदान में नहीं उतरी थी. इसके अलावा कई छोटे और दल भी हैं जो चुनाव में उतरते हैं लेकिन कोई कमाल नहीं दिखा पाते.
READ ALSO: कालचक्र: पुलिस भागी और पीछा करने लगा चोर! बहुत इंटरेस्टिंग है यह कहानी
राष्ट्रीय जनता दल भी नहीं बन पाया 'राष्ट्रीय'
अब सवाल यह है कि बिहार में हर चुनाव से पहले एक नई राजनीतिक पार्टी पैदा होती है पर वह कोई खास कमाल नहीं दिखा पाती. राष्ट्रीय जनता दल ने स्थापना के तीसरे साल हुए चुनाव में जीत हासिल की थी और सरकार 5 साल चली थी. उधर, गठन के बाद हुए चुनाव से लेकर आज तक जेडीयू सत्ता में बनी हुई है. भाजपा और कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टियां हैं पर बिहार में दोनों दल अपने दम पर कुछ खास कर पाने की स्थिति में नहीं हैं. बिहार में वामदलों की स्थिति राजद के पिछलग्गू की हो गई है. बिहार आधारित दलों जैसे जेडीयू, राजद, हम, वीआईपी, लोजपा रामविलास, रालोजपा आदि बिहार में सत्ता पाने और बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो इनसे राष्ट्रीय दल के रूप में खड़े होने की क्या ही उम्मीद कर सकते हैं.
राष्ट्रीय दल का दर्जा पाने के लिए क्या है योगयता?
चुनाव आयोग के 1968 में बनाए गए नियम या तय की गई शर्तों को जो पार्टी पूरी कर लेती है तो उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल हो जाता है. किसी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने के लिए 4 या अधिक राज्यों में लोकसभा या विधानसभा चुनाव लड़ना होता है. उन चुनावों में पार्टी को कम से कम 6 फीसद वोट हासिल करने होते हैं. पार्टी के सिंबल पर 4 सांसदों को एक या अधिक राज्यों से जीतना जरूरी होता है या पार्टी को कम से कम 4 राज्यों में क्षेत्रीय दल का दर्जा मिला हुआ हो या लोकसभा की कुल सीटों में से कम से कम 2 प्रतिशत सीटें जीत जाए और जीते उम्मीदवार 3 राज्यों से होने चाहिए.