रांची में हुई रैली में एक दर्जन से ज्यादा आदिवासी संगठनों ने एक मंच पर आकर एक स्वर में प्रस्ताव पारित किया कि अगर केंद्र सरकार ने आदिवासियों के लिए सरना धर्मकोड लागू नहीं किया तो आदिवासी 2024 में उन्हें वोट नहीं देंगे.
Trending Photos
Ranchi: आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग पर देश भर के आदिवासी संगठनों की गोलबंदी के बड़े मायने हैं. वर्ष 2024 के चुनावों में यह आदिवासियों का सबसे बड़ा मुद्दा बन सकता है. रविवार को रांची में देश के विभिन्न हिस्सों के साथ साथ नेपाल और भूटान जैसे देशों से जुटे आदिवासी स्त्री पुरुषों की विशाल रैली ने इसके संकेत दे दिए हैं. पिछले एक साल के दौरान दिल्ली, पटना, रांची सहित देश के दो दर्जन से ज्यादा शहरों में आदिवासी संगठनों ने इस मांग को लेकर रैलियां, धरना, प्रदर्शन, गोष्ठी जैसे कई आयोजन किए हैं.
2024 में नहीं देंगे वोट
रांची में हुई रैली में एक दर्जन से ज्यादा आदिवासी संगठनों ने एक मंच पर आकर एक स्वर में प्रस्ताव पारित किया कि अगर केंद्र सरकार ने आदिवासियों के लिए सरना धर्मकोड लागू नहीं किया तो आदिवासी 2024 में उन्हें वोट नहीं देंगे.
जानें क्या है सरना धर्मकोड
सरना धर्मकोड की मांग का मतलब यह है कि भारत में होने वाली जनगणना के दौरान प्रत्येक व्यक्ति के लिए जो फॉर्म भरा जाता है, उसमें दूसरे सभी धर्मों की तरह आदिवासियों के धर्म का जिक्र करने के लिए अलग से एक कॉलम बनाया जाए. जिस तरह हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चयन, जैन, सिख और बौद्ध धर्म के लोग अपने धर्म का उल्लेख जनगणना के फॉर्म में करते हैं, उसी तरह आदिवासी भी अपने सरना धर्म का उल्लेख कर सकें .
झारखंड विधानसभा ने 11 नवंबर 2020 को ही विशेष सत्र में आदिवासियों के सरना धर्म कोड को लागू करने की मांग का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया था. यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था, लेकिन इसपर अब तक निर्णय नहीं हुआ है. खास बात यह कि जनगणना में सरना आदिवासी धर्म के लिए अलग कोड दर्ज करने का यह इस प्रस्ताव झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद की संयुक्त साझेदारी वाली सरकार ने लाया था, जिसका राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के विधायकों ने भी समर्थन किया था.
सरना धर्म गुरु बंधन तिग्गा ने कही ये बात
सरना धर्म गुरु बंधन तिग्गा कहते हैं कि कि देशभर में 12 करोड़ से अधिक आदिवासियों का अपना धर्म है. इनकी अपनी संस्कृति, अपना संस्कार, अपना पूजा स्थल और अलग रीति रिवाज है. यह संस्कृति परंपरा हिन्दू लॉ से जुड़ी नहीं है इसलिए आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड को लागू किया जाना चाहिए. उनके मुताबिक सरना धर्म के लोग जल, जंगल, जमीन की रक्षा में विश्वास करते हुए पेड़ों और पहाड़ियों की पूजा करते हैं. संविधान के आर्टिकल 25 के तहत किसी भी धर्म को मानने के मौलिक अधिकार के तहत सरना धर्म कोड को मान्यता मिलनी चाहिए.
(इनपुट एजेंसी के साथ)