Explained: बिन बादल बरसात कैसे होती है? गुरुग्राम सोसायटी में कराई गई आर्टिफिशियल बारिश, दिल्ली में चल रहा मंथन
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Explained: बिन बादल बरसात कैसे होती है? गुरुग्राम सोसायटी में कराई गई आर्टिफिशियल बारिश, दिल्ली में चल रहा मंथन

Delhi news: दिल्ली बढ़ते प्रदूषण से बेहाल है. शुक्रवार की सुबह जब छठ पूजा को लेकर सुबह का अर्घ्य (Chhath Puja Morning Arghya) दिया जा रहा था, तब भी दिल्ली के कई इलाकों की हवा 'जहरीली' थी. कहीं AQI 400 था तो कहीं उसके नजदीक. ऐसे में अब कृत्रिम बारिश (artificial rain) के जरिए हालात काबू में करने की कोशिश हो रही है.

Explained: बिन बादल बरसात कैसे होती है? गुरुग्राम सोसायटी में कराई गई आर्टिफिशियल बारिश, दिल्ली में चल रहा मंथन

Artificial Rain In Delhi Air Pollution: दिल्ली में बीते कुछ दिनों में वायु प्रदूषण हद से ज़्यादा बढ़ गया है. आज छठ पूजा के सुबह के अर्घ्य (Chhath Puja Morning Arghya) जिसके कारण दिल्ली सरकार काफी दिनों से कृत्रिम बारिश (Artificial rain) कराने पर विचार कर रही है. आर्टिफिशियल रेन पहले अमेरिका, रूस, चीन और यूएई  जैसे देशों में देखी-सुनी जाती थी. लेकिन बीते कुछ सालों से भारत में भी इसकी खूब चर्चा हो रही है. इसकी वजह तो शहरों में बढ़ता वायु प्रदूषण है. दरअसल आर्टिफिशियल रेन को वायु प्रदूषण से निपटने के कारगर तरीके के रूप में देखा जाता है. हालांकि अभी तक इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिले हैं. 

शुक्रवार की सुबह जब छठ पूजा को लेकर सुबह का अर्घ्य (Chhath Puja Morning Arghya) दिया जा रहा था, तब भी दिल्ली के कई इलाकों की हवा 'जहरीली' थी. कहीं AQI 400 था तो कहीं उसके नजदीक. ऐसे में अब कृत्रिम बारिश (artificial rain) के जरिए हालात काबू में करने की कोशिश हो रही है.

-दिल्ली वायु प्रदूषण से जुड़ी बड़ी ख़बर
- दिल्ली का औसत AQI 380 के पार. 
- आनंद विहार का AQI 400 के पार. 
- बवाना का भी AQI 400 के पार पहुंचा.
- न्यू मोती बाग का AQI 429 दर्ज.
- मुंडका का भी AQI 428 पहुंचा. 

'प्रदूषण की वजह हरियाणा-पंजाब नहीं खुद दिल्ली है'

तमाम रिसर्च और उसके नतीजे बताते हैं कि सर्दियों की शुरुआत होते ही दिल्ली में होने वाले प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह खुद दिल्ली के लोग हैं. गाड़ियों से निकलने वाले धुएं के अलावा खेत में पराली जलाने जैसे तमाम कारणों को इसकी वजह बताया जाता है. प्रदूषण तकनीकी रूप से तीन वजहों से एकदम ठीक हो सकता है. पहला उपाय मुश्किल है लेकिन असंभव नहीं. वो ये कि लोग रेड लाइट पर ही गाड़ी का इंजन बंद न करें बल्कि पूरी तरह से दिल्ली मेट्रो या सीएनजी बसों जैसी सार्वजनिक परिवहन सेवाओं पर आश्रित हो जाएं, जहां ऐसी बसें न हो, वहां सरकार फौरन चलवाए.

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इसके साथ ही कुदरत मेहरबान हो यानी हवा तेज चले और समय-समय पर बारिश हो जाए तो धूल-धुआं-धक्कड़ से होने वाला प्रदूषण आसमान से फुर्र हो जाएगा. इससे पहले छठ के महापर्व पर गुरुवार की शाम अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देते समय भी दिल्ली की हवा खतरनाक स्थिति में थी. सोलह मौसम केंद्रों पर वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 से ऊपर दर्ज हुआ था. जबकि सात अन्य केंद्रों पर शाम तक वायु गुणवत्ता 'गंभीर' स्तर तक देखी गयी.  

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(दिल्ली में तेज हवा चले और किसी तरह बारिश हो जाए तो कुछ राहत मिले)

क्या और कैसे होती है कृत्रिम बारिश?

दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय केंद्र सरकार को कृत्रिम बारिश कराने के लिए तीन-चार पत्र लिख चुके हैं. ये बारिश करवाना केंद्र की जिम्मेदारी है या दिल्ली सरकार की इस विमर्श से इतर दिल्लीवाले जबतक अपनी सोच को अमलीजामा पहनाते तबतक गुरुग्राम की एक सोसायटी ने आर्टिफिशियल रेन (Artificial rain in Gurugram) कराकर बता दिया कि ठान लिया जाए तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है. आईए आपको बताते हैं कि क्या होती है आर्टिफिशयल रेन यानी क्लाउड सीडिंग (cloud seeding).

क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) का मतलब है बादलों की बुवाई. इसके जरिए जरूरत के मुताबिक कृत्रिम बारिश कराई जा सकती है. IIT कानपुर ने इस टेस्ट को काफी पहले ही सफलतापूर्वक कर चुका है. बारिश के लिए बादलों का घिरना अनिवार्य है. ऐसे में क्लाउड सीडिंग तकनीक की भूमिका यही है कि एक विमान आसमान में जाकर बादलों की बुवाई कर देता है. इसके लिए खास केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है. बादल में बीज के रूप में सूखी बर्फ, नमक, सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम क्लोराइड और सोडियम क्लोराइड जैसे तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है. जब ये बीज बादलों से मिलते हैं तो प्रतिक्रिया स्वरूप ये घने बादल में तब्दील हो जाते हैं और बढ़िया बारिश हो जाती है. इस बारिश की बूंदे सामान्य बारिश से मोटी होती हैं.

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इसमें छिपा विज्ञान

बारिश के बीज बोने से बादलों का घनत्व (Density) बढ़ जाती है और एक निश्चित इलाके के बादल बर्फीले स्वरुप में बदलकर इतने भारी हो जाते हैं कि ज्यादा देर  आसमान में लटके नही रह सकते हैं, ऐसे में वो बारिश के रूप में बरसने लगते हैं. सिल्वर आयोडाइड इस काम के लिए सबसे मुफीद माना जाता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक कृत्रिम बारिश के लिए इस प्रक्रिया का सबसे अधिक प्रयोग होता है.

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