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CG का अनोखा मंदिर जहां होती है बिना सिर वाली मूर्ति की पूजा, दो जगहों से जुड़ा है रहस्य

CG News:छत्तीसगढ़ के अम्बिकापुर में एक ऐसा मंदिर है जहां बिना सिर वाली मूर्ति की पूजा की जाती है. मूर्ति को लेकर बड़ी दिलचस्प कहानी बताई जाती है. कहानी के साथ-साथ लोगों में इस मंदिर को लेकर काफी आस्था जुड़ी हुई है. क्यों और क्या है बिना सिर वाली मूर्ति के रहस्य के बारे में जानते हैं.  

 

अम्बिकापुर का महामाया मंदिर

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अम्बिकापुर का महामाया मंदिर

छत्तीसगढ़ में कई धार्मिक टूरिस्ट प्लेस हैं, जिनमें से अम्बिकापुर का महामाया मंदिर भी बहुत प्रसिद्ध है. हर साल इस मंदिर में श्रद्धालुओं का भीड़ देखी जाती है. श्रद्धालु भक्ति भाव से अपनी सारी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए दूर-दूर से मां के दर्शन करने आते हैं. 

 

अम्बिकापुर नाम की कहानी

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अम्बिकापुर नाम की कहानी

बताते हैं कि महामाया मंदिर के नाम पर अम्बिकापुर का नाम पड़ा है. महामाया या अंबिका देवी के सम्मान में अम्बिकापुर को ये नाम दिया गया है. यहां के लोगों में मंदिर के प्रति आस्था इतनी गहरी है कि वे किसी भी काम को शुरू करने से पहले मां का आशीर्वाद लेते हैं और फिर काम को शुरू करते हैं.

 

महामाया मंदिर की कहानी

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महामाया मंदिर की कहानी

अम्बिकापुर का महामाया मंदिर इसलिए इतना प्रसिद्ध है क्योंकि बताया जाता कि महामाया देवी का धड़ अम्बिकापुर के महामाया मंदिर में स्थित है और उनका सिर बिलासपुर जिले के रतनपुर महामाया मंदिर में स्थित है. इस मंदिर में इसलिए ही बिना सिर के मूर्ति की पूजा होती है.

 

मंदिर का निर्माण

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मंदिर का निर्माण

महाराजा रघुनाथ शरण सिंहदेव द्वारा निर्माण कराए गए इस मंदिर में नवरात्रों के साथ- साथ पूरे साल  भक्तों की भीड़ होती है. मंदिर से जुड़ी कहानी और भक्तों की आस्था उन्हें इस मंदिर में खींच लाती है. 

 

राजपरिवार के कुम्हारों की परंपरा

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राजपरिवार के कुम्हारों की परंपरा

राजपरिवार के कुम्हारों का इस मंदिर से विशेष लगाव है और उन्हें  हर साल एक परंपरा को निभाना पड़ता है . वे हर साल नवरात्रि में मां महामाया के सिर का निर्माण करते हैं. मंदिर को  छिन्नमस्तिका मां महामाया मंदिर के नाम से भी जाना जाता है.

 

मंदिर को लेकर प्रसिद्ध कहानी

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मंदिर को लेकर प्रसिद्ध कहानी

मंदिर को लेकर एक और बात बड़ी प्रसिद्ध है वो ये कि, 1910 में मंदिर का निर्माण हुआ था उससे पहले राज परिवार के लोग चबूतरे पर स्थापित मां की पूजा किया करते थे. परिवार के लोग जब भी पूजा करने जाते तो वहां बाघ बैठा रहता था जिसे सैनिकों की मदद से हटाया जाता था और फिर लोग माता के दर्शन करते थे.