betul news: भारत मान्यताओं, आस्था और परंपरा का देश है. यहां लोगों की आस्थाओं की कई तस्वीरें सामने आती है, जो लोगों को सोचने पर मजबूर कर देती है. ऐसा ही परंपरा निभाई, जहां बच्चे की मुराद पूरी होने पर माताएं अपने बच्चों को लेकर आती है और बहती हुई नदी में छोड़ देती हैं. जानिये क्या है ये परंपरा...
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इरशाद हिंदुस्तानी/बैतूल: नदियों के किनारे ही मानव सभ्यता और संस्कृतियां पली बढ़ी है. नदियों को जीवनदायिनी मानकर ही इनके किनारों पर बड़े बड़े शहर आबाद हुए. नदियों मे मां के गुण देखने वाले इन्हें पूज्यनीय और वंदनीय मानते है. यही कारण है कि इन्हें मोक्षदायिनी और मन्नतों को पूरा करने वाली मानकर पूजा करते हैं. ऐसी ही एक पूजा परंपरा प्रचलित है मध्य प्रदेश के बैतूल में, जहां लोग मुराद पूरी होने पर लोग बच्चों को झूले में सुलाकर नदी में डाल देते हैं.
नदी में छोड़ देते हैं नौनिहाल का पालना
दूधमुंहे बच्चों को आपने घरो मे बंधे पालनो मे झूलते देखा होगा, लेकिन नदी की धार और लहरों में हिलोरे लेते ये पालने में बैटे बच्चों की तस्वीरें नहीं देखी गई होगी, लेकिन बैतूल की चन्द्रपुत्री पूर्णा नदी के किनारे यह नजारा हर साल नजर आता है. जहां, लोग अपनी गोद हरी होने के बाद अपने नौनिहाल को पालने मे बैठाकर नदी की धार मे बहाते हैं.
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चंद्र देव की बेटी है चन्द्रपुत्री नदी
चन्द्रपुत्री यानि चन्द्रमा की कन्या कहलाने वाली यह नदी बैतूल के भैंसदेही कस्बे के पास से निकलती है. कार्तिक मास की पूर्णिमा से यहां पूरे एक पखवाड़े तक नि:संतान दम्पतियों और सुख समृद्धि की आस लेकर पंहुचने वालो का मेला जुटता है. महाराष्ट्र मध्यप्रदेश और पूरे देश से यहां श्रद्धालु पंहुचते हैं. प्रेत बाधा से मुक्ति के लिए भी पूर्णा के घाट मुक्ति कुंभ बन जाते हैं.
कभी बहती थी दूध का धारा!
माना जाता है की यह नदी कभी दूध की धारा के रूप मे बहती थी. इसी कारण हजारों निसंतान दंम्पतित अपनी गोद हरी होने के बाद अपने नौनिहाल को पालने मे बैठाकर नदी की धार मे बहाते हैं. वो अपनी संतान प्राप्ति के अगले साल ही यहां पहुंचते हैं और मां चंद्रपुत्री को आभार जताते हुए अपने बच्चे के लिए आशीर्वाद मांगते हैं और सालों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन करते हैं.
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मेले के दौरान दूषित हुई आस्था का केंद्र
बैतूल से निकलने वाली चन्द्रपुत्री पूर्णा के घाट पर संतान सुख चाहने वाले अनगिनत लोग पूरे देश से पहुंचते हैं. कार्तिक पूर्णिमा पर यहां लगने वाले मेले को देखते हुए यहां मिटटी की बांध लगाकर पानी रोका जाता है, लेकिन यह पानी इतना दूषित और जानलेवा हो जाता है कि आस्था के नाम पर अंधविश्वास में पड़ लोग गंदा पानी पीने से भी नही चूकते. इन्हे न तो कोई समझाने वाला है और न कोई रोकने वाला. इस कारण आस्था अंधविश्वास में बदलती हुई दिख रहे हैं.
गंदे पानी का सेवन कर रहे लोग
बहरहाल आस्था और आराधना का केंद्र बनी यह नदी देश की उन तमाम नदियों की तरह जनमानस को वरदान देने का काम कर रही है, लेकिन कभी हजारों ऋषियों को दुग्धपान कराने वाली यह नदी आज खुद दुर्दशा का शिकार हो रही है. यही वजह है कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं को भी इसके गंदे पानी के सेवन और बच्चों को उसमे डूबोने से रोकने वाला कोई नहीं है.