cg news-एक बार फिर छत्तीसगढ़ का ढोकरा आर्ट चर्चा का विषय बना हुआ है. इस बार छत्तीसगढ़ के अलावा इसकी चर्चा दुनियाभर में हो रही है. दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस के दौरे के दौरान वहां के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से मुलाकात कर छत्तीसगढ़ के ढोकरा आर्ट से तैयार मूर्ति भेंट की. इसके बाद से ही लोग इस आर्ट के बारे में जानने में जुटे हुए हैं. ढोकरा आर्ट का कनेक्शन छत्तीसगढ़ के कोंडागांव से है.
देश के प्रधानमंत्री ने फ्रांस के राष्ट्रपति को ढोकरा आर्ट गिफ्ट करने पर कोंडागांव के शिल्पीयों ने इसे अपने लिए गर्व की बात बताया. कहा कोंडागांव से शुरू हुई ढोकरा आर्ट की पहचान देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक में है.
ढोकरा आर्ट छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के द्वारा बनाया जाने वाला शिल्प कला है. इसे छत्तीसगढ़ की शान कहा जाता है. कोंडागांव में बनाए जाने वाले ढोकरा आर्ट की मूर्तियों की डिमांड देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है.
अधिकांश आदिवासी शिल्पकारों की रोजी-रोटी ढोकरा आर्ट पर ही निर्भर हैं. इसे मोम तकनीक का उपयोग करके काफी मेहनत के बाद मूर्तियां बनाई जाती है. इसे आदिवासियों की विरासत के रूप में पहचाना जाता है.
ढोकरा कलाकृति भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है. -पूर्व में सोने-चांदी की कारीगरी नहीं होती थी ढोकरा आर्ट से अलग-अलग कलाकृतिया तैयार की जाती थीं. छत्तीसगढ़ के कोंडागांव से इसकी शुरुआत हुई है.
इसे निर्माण करने में 12 स्टेप से गुजरना पड़ता है, इसे मशीन से नहीं बल्कि हाथ से ही तैयार किया जाता है. आज आधुनिकरण हो चुका है फिर भी इसे कारीगरों द्वारा हाथ से ही तैयार किया जाता है.
ढोकरा आर्ट का नाम भी भारत सरकार का दिया हुआ है. ढोकरा का अर्थ होता है बूढ़े-बुजुर्ग और यह आर्ट भी सबसे पुराना आर्ट है. इसलिए इसे ढोकरा आर्ट कहा जाता है मोहन जोदाड़ो - हड़प्पा के समय से पूर्व से पूर्वज इस आर्ट का काम करते आ रहे हैं.
सजावट से कहीं अधिक, यह ढोकरा आर्ट भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है, जो आदिवासी परंपराओं और कलात्मक उत्कृष्टता का जश्न मनाता है. यह आर्ट श्रम-गहन ढलाई प्रक्रिया कारीगरों के गहरे कौशल और समर्पण को दर्शाता है.
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