Jaipur : राजस्थान में पहले जहां शहर गांव छोटे-छोटे कस्बों में रामलीला का भव्य मंचन किया जाता था. वहीं अब रामलीला कुछ इलाकों में ही सिमट कर रह गयी है. इस सिमटती संस्कृति को बचाने के लिए जयपुर का जवाहर कला केंद्र आगे आया हैं.
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Jaipur : प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी सांस्कृतिक केंद्र जवाहर कला केंद्र में पहली बार रामलीला का मंचन किया जाएगा. जिसको लेकर जयपुर वासियों में उत्साह का माहौल देखा जा रहा है.
जवाहर केंद्र की अतिरिक्त महानिदेशक अनुराधा गोगिया ने बताया जवाहर कला केंद्र का हमेशा से ही प्रयास रहा है कि लोकनाट्य विधा जो समाप्त हो रही हो उसे सहेजा जाए. पारंपरिक लोक नाट्य की विधा के संरक्षण के लिए जवाहर कला केंद्र प्रयासरत है. इसी कड़ी में अक्टूबर महीने में दशहरा नाट्य उत्सव का आयोजन किया जा रहा है.
1 से 5 अक्टूबर तक होने वाले उत्सव में ‘राम चरित नाट्य’ का मंचन किया जाएगा. यह कार्यक्रम कई मायनों में खास रहने वाला है. यह आयोजन जवाहर कला केंद्र के रंगायन ऑडिटोरियम में आयोजित किया जाएगा. रामलीला नाटक के मंचन में 130 से अधिक महिला, पुरुष, बाल कलाकार हिस्सा लेंगे.
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रामलीला के माध्यम से गुलाबी नगरी में लोक संस्कृति, संगीत, नृत्य का संगम होगा. लोक कला के माध्यम से भारत की संस्कृति के युगपुरु श्रीराम के जीवन चरित्र को दर्शाया जाएगा. रामलीला मंचन के लेखक और निर्देशक अशोक राही ने बताया ने बताया कि सभी रंगकर्मियों ने संवादों पर बेहतर पकड़ बना ली है और प्रस्तुति को लेकर उत्साहित हैं, उनका कहना है कि राम चरित नाट्य के मंचन का उद्देश्य विलुप्त हो रही लोक नाट्य की विधा में जान फूंकना, नई पीढ़ी के कलाकारों को लोक नाट्य से परिचित करवाना और नीतिगत सिद्धांतों को स्थापित करना है.
कथक, भरतनाट्यम, लोक नृत्य और लोकगीत भी कार्यक्रम में मुख्य आकर्षण रहेंगे. यही नहीं दोहे, छंद, गीत, घनाक्षरी और चौपाइयों के सुंदर समावेश के साथ नाट्य की लालित्यपूर्ण प्रस्तुति दी जाएगी. पांच दिवसीय रामलीला की शुरुआत घमंड और अहंकार का प्रतीक रावण से होगी. इसमें रावण की सबसे बड़ी इच्छा दैत्य, दानव, नाग सभी लोग मिलकर राक्षस बनाने की थी, इसको बड़ी ही बखूबी से दिखाया जाएगा.
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इसी के साथ है सोने की लंका का राजा रावण को सीता माता के अपहरण से लेकर युद्ध में मारे जाने तक मंचन होगा. वहीं भगवान श्री राम माता सीता सहित लक्ष्मण के जीवन चरित्र को कलाकार बखूबी निभाएंगे. रामलीला के माध्यम से भगवान राम के जीवन को उसी रूप में दिखाया जाएगा. जिस रूप में भगवान राम रहते थे. रामलीला में ये दर्शाने की कोशिश की जाएगी कि भगवान राम के मन में एक बात शुरू से ही थी की संस्कृति में जो विभिनताएं हैं वो हमेशा बनी रहे, राम और रावण के बीच का युद्ध दो संस्कृति बीच का था.
रावण का जीवन स्त्रीलोलुप का रहा,घमंडी, दम्भी, अहंकारी,था, वहीं दूसरी ओर भगवान, राम प्रेम, नैतिकता, वचनबद्धता के प्रतीक थे. इन्हीं सब भावों को रामायण के विभिन्न किरदार अदा करेंगे. उन्होंने बताया भगवान राम का जीवन शुरू से ही संकट पूर्ण रहा. उन्हें 14 साल वनवास में रहना पड़ा, फिर भी कभी श्री राम ने क्रोध को अपने जीवन चरित्र में नहीं आने दिया. इसी के चलते भगवान श्रीराम ने रावण का वध करा. पुराने समय में रामलीला और मेलों का आयोजन इसीलिए किया जाता था कि सभी जने एक साथ बैठकर अपने दुख दर्द सुनाएं जिससे मन हल्का हो.
आज की भागती दौड़ती चकाचौंध से भरी जिंदगी में लोग अंधे होते जा रहे हैं. जिससे आमजन का मेल मिलाप कम होता जा रहा है. जिसके चलते अस्पतालों में लंबी-लंबी लाइन देखने को मिलती है. आमजन को मेलजोल बढ़ाना होगा, जिससे उसका स्वास्थ्य ठीक रहे.
रिपोर्टर- अनूप शर्मा