राज्यसभा में 30 परसेंट से ज्यादा तो खुद सभापति ही बोलते हैं.. धनकड़ पर क्या बोले तृणमूल सांसद?
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राज्यसभा में 30 परसेंट से ज्यादा तो खुद सभापति ही बोलते हैं.. धनकड़ पर क्या बोले तृणमूल सांसद?

Jagdeep Dhankhar: ओ'ब्रायन ने शुक्रवार को राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने सदन की कार्यवाही के दौरान लगभग 30 प्रतिशत समय खुद ही बोलने में बिताया.

राज्यसभा में 30 परसेंट से ज्यादा तो खुद सभापति ही बोलते हैं.. धनकड़ पर क्या बोले तृणमूल सांसद?

Rajya Sabha Chairman: तृणमूल कांग्रेस के संसदीय दल के नेता डेरेक ओ'ब्रायन ने शुक्रवार को राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने सदन की कार्यवाही के दौरान लगभग 30 प्रतिशत समय खुद ही बोलने में बिताया. ओ'ब्रायन ने बताया कि 18 दिसंबर तक राज्यसभा की कुल 43 घंटे की कार्यवाही हुई, जिसमें से साढ़े चार घंटे सभापति धनखड़ बोले. टीएमसी नेता के अनुसार राज्यसभा के सभापति या सदस्यों के बोलने के समय का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि 43 घंटे की कार्यवाही में से 10 घंटे विधेयकों और साढ़े 17 घंटे संविधान पर चर्चा में व्यतीत हुए, जबकि शेष साढ़े 15 घंटे में सभापति ने खुद का वक्तव्य दिया.

अनिश्चितकाल के लिए स्थगित
उधर शुक्रवार को राज्यसभा का 266वां सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया. इस सत्र के दौरान, देश में संसदीय और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के प्रावधान वाले विधेयक पर चर्चा के लिए उच्च सदन के 12 सदस्यों को नामित करने का प्रस्ताव ध्वनि मत से पारित किया गया. सभापति धनखड़ ने सदन के 266वें सत्र की शुरुआत को संविधान दिवस के कार्यक्रम से जोड़ते हुए कहा कि सदस्यों का व्यवहार अपेक्षाओं के विपरीत रहा. उनके अनुसार, इस सत्र में केवल 40.03 प्रतिशत कामकाज हो सका और 43.27 घंटे की प्रभावी कार्यवाही में दो विधेयक पारित हुए.

सत्र के दौरान भारत-चीन संबंधों पर विदेश मंत्री का बयान भी हुआ, जो चर्चा का मुख्य बिंदु रहा. सभापति धनखड़ ने कहा कि सत्र की कार्यवाही के दौरान सदन में सदस्यों का आचरण सुधारने की जरूरत है. वहीं, विपक्षी दलों द्वारा सभापति के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पहले ही उपसभापति हरिवंश द्वारा खारिज कर दिया गया था, जिससे सदन में राजनीतिक तनाव बढ़ गया.

'व्यवहार लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप नहीं'
सभापति धनखड़ ने सत्र समाप्ति पर यह भी कहा कि सदन में उत्पादकता बढ़ाने के प्रयासों के बावजूद सदस्यों का व्यवहार लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप नहीं रहा. टीएमसी और विपक्षी दलों के आरोपों ने सत्र की गरिमा पर सवाल खड़े किए. अब यह देखना होगा कि आगामी सत्रों में संसदीय कार्यों की उत्पादकता को कैसे बढ़ाया जा सकेगा और इन विवादों से कैसे निपटा जाएगा. पीटीआई इनपुट

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