Ahoi Ashtami 2023 Vrat Katha: कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) व्रत रखा जाता है. आइये जानते हैं कि अहोई अष्टमी व्रत कथा
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Ahoi Ashtami 2023 Vrat Katha: करवाचौथ के चार दिन बाद महिलाएं अहोई अष्टमी का व्रत ( Ahoi Ashtami Vrat) रखती हैं. इस व्रत का हिंदू धर्म में खास महत्व है. यह व्रत संतान प्राप्ति, उनकी लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए रखा जाता है. अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी को आता है, जो इस बार 5 नवंबर को है. जिस तरह करवा चौथ पर महिलाएं चांद देखने के बाद व्रत तोड़ती हैं, ठीक वैसे ही इस व्रत में महिलाएं तारों को देखकर व्रत खोलती हैं. माना जाता है कि माता अहोई इस दिन महिलाओं को संतानों की लंबी आयु का वरदान देती हैं. इस व्रत की पूजा के दौरान व्रती एक दूसरे को कथाएं ( Ahoi Ashtami Vrat Katha) सुनाती और सुनती हैं. मान्यता है कि बिना कथा पढ़े या सुने यह व्रत पूरा नहीं माना जाता है. अहोई अष्टमी पर्व से संबंधित विभिन्न पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. अहोई अष्टमी से संबंधित प्रचलित दो कथाएं निम्नलिखित हैं -
Ahoi Ashtami Vrat Katha अहोई अष्टमी व्रत कथा-1
प्राचीन काल में एक साहूकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थीं. इस साहूकार की एक बेटी भी थी, जो दीपावली के अवसर पर ससुराल से मायके आई थी. दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएँ मिट्टी लाने जंगल में गईं, तो ननद भी उनके साथ जंगल की ओर चल पड़ी. साहूकार की बेटी जहां से मिट्टी ले रही थी उसी स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी. खोदते हुए गलती से साहूकार की बेटी ने खुरपी से स्याहू का एक बच्चा मर गया. स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी.
स्याहू की यह बात सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक-एक करके विनती करती है कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें. सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है. इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे थे वह सभी सात दिन बाद मर जाते हैं. सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा. पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी.
सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है. रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं. अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती है, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है. इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे के मार दिया है. इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है. छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है. गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है.
स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहुएं होने का अशीर्वाद देती है. स्याहू के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र की वधुओं से हरा भरा हो जाता है. अहोई अष्टमी का अर्थ एक प्रकार से यह भी होता है “अनहोनी को होनी बनाना” जैसे साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था.
Ahoi Ashtami Vrat Katha अहोई अष्टमी व्रत कथा- 2
एक अन्य कथा के अनुसार, "एक बार एक औरत अपने 7 पुत्रों के साथ एक गांव में रहती थी. एक दिन कार्तिक महीने में वह औरत मिट्टी खोदने के लिए जंगल में गयी. वहां पर उसने गलती से एक पशु के शावक की अपनी कुल्हाड़ी से हत्या कर दी.
उस घटना के बाद उस औरत के सातों पुत्र एक के बाद एक मृत्यु को प्राप्त हो गए. इस घटना से दुखी होकर उस औरत ने अपनी कहानी गांव की हर एक औरत को सुनाई. एक बड़ी औरत ने उस औरत को यह सुझाव दिया कि वह माता अहोई अष्टमी की आराधना करे. पशु के शावक की सोते हुए हत्या के पश्चाताप के लिए उस औरत ने शावक का चित्र बनाया और माता अहोई अष्टमी के चित्र के साथ रख कर उनकी पूजा करने लगी. उस औरत ने 7 वर्षों तक अहोई अष्टमी का व्रत रखा और आखिर में उसके सातों पुत्र फिर से जीवित हो गए.
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