Mahashivratri 2025: महाशिवरात्रि पर 12 साल बाद नागा साधु संंन्यासी गंगा में स्नान कर बाबा विश्वनाथ के दर्शन करेंगे. नागा साधुओं के दर्शन को लेकर अलग व्यवस्था की जा रही है. काशी से कुछ ही दूरी पर महादेव की एक और मंदिर है.
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Mahashivratri 2025: 26 फरवरी को महाशिवरात्रि है. महाशिवरात्रि पर अगर आप महाकुंभ की भीड़ से बचकर महादेव के दर्शन करना चाहते हैं तो शिव की नगरी पहुंच सकते हैं. महाशिवरात्रि को लेकर महादेव की नगरी काशी को लेकर जोर शोर से तैयारियां की जा रही है. महाशिवरात्रि पर बाबा विश्वनाथ और बाबा बैद्यनाथ के दर्शन कर सकते हैं. काशी से बाबा बैद्यनाथ धाम जा सकते हैं.
काशी से बाबा बैद्यनाथ धाम पहुंचे
झारखंड स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम में महाशिवरात्रि पर शिवभक्तों की भारी भीड़ जुटती है. बाबा बैद्यनाथ धाम को लेकर कहानी प्रचलित है कि वहां एक ऐसा तालाब है, जो रावण के मूत्र से बना हुआ है. यह कहानी भी आपको अजीबोगरीब लग रही होगी, लेकिन कहानियों और मान्यताओं की मानें तो ये बात सच है. आइये जानते हैं इसके पीछे कहानी...
क्या है मान्यता
हम सभी जानते हैं कि भगवान शिव का रावण से बड़ा कोई भक्त नहीं था. उसे भगवान शिव का आशीर्वाद मिला था. भगवान शिव को खुश करने के लिए रावण ने कई उपाय किए. रावण के ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक बार रावण ने कैलास पर्वत को ही उठा लिया था. इसके बाद देवी देवता सभी को हरा चुका था.
भगवान शिव को खुश करने के लिए रावण ने अपनाया ये तरीका
झारखंड के बाबा बैजनाथ धाम. यहां भोलेनाथ की एक अति प्राचीन शिवलिंग है जिसे खुद रावण ने अपने कंधों पर उठा कर लाया था. मान्यता है कि रावण ने अपनी भक्ति और तपस्या से महादेव को प्रशन्न कर लिया और उनसे आग्रह करने लगा कि भगवान् शिव भी रावण के साथ लंका चलें. रावण के इस हठ के भगवान् भोले नाथ ने कहा ठीक मैं चलूंगा लेकिन एक शिवलिंग के रूप में. अगर इसे कहीं भी रख दिया तो फिर नहीं उठा सकोगे. रावण को अपनी शक्ति पर गुमान था और वो शिवलिंग लेकर चल पड़ा. इसके बाद सभी देवता घबरा कर विष्णु भगवान के पास पहुंचे और इस अनर्थ को रोकने के लिए प्रार्थना की.
यह है पूरी कहानी
भगवान विष्णु बालक के रूप में रावण के सामने प्रकट हो गए. इसी समय रावण को लघु शंका लगी और उसने बालक बने विष्णु से अनुरोध किया कि शिवलिंग को अपने हाथों में थाम कर रखे, जब तक कि वह लघु शंका करके न आए. रावण के पेट में गंगा समा गई थी इसलिए वह लंबे समय तक मूत्र लघुशंका करता रहा. इसी बीच बालक बने विष्णु ने शिवलिंग को भूमि पर रख दिया और शिवलिंग वहीं स्थापित हो गया. रावण जब मूत्र त्याग करने के बाद लौटा तो भूमि पर रखे शिवलिंग को देखकर बालक पर बहुत क्रोधित हुआ, लेकिन वह कर भी क्या सकता था.
बैद्यनाथ में दो तालाब
भगवान शिव वहीं शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए. इसी शिवलिंग को आज बैद्यनाथ धाम के नाम से जाना जाता है. इसी मंदिर के पास दो तालाब है. एक में लोग स्नान करते है, लेकिन दूसरे तालाब के पानी को कोई छूता तक नहीं. लोगों का ऐसा कहना है इस तालाब का निर्माण रावण के मूत्र से हुआ था. इसे रावण पोखर भी कहा जाता है.
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