Shukrawar Ke Upay: मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के उपाय करने की जरूरत नहीं है. आप केवल एक स्तोत्र का पाठ कर देवी लक्ष्मी को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं.
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Shukrawar Ke Upay: आज कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि है. आज दिन शुक्रवार है. शुक्रवार को धन की देवी मां लक्ष्मी की उपासना की जाती है. मान्यता है कि अगर मां लक्ष्मी प्रसन्न हो जाएं तो भक्त को छप्पर फाड़ धन-दौलत देती है. यही वजह है कि लोग उन्हें प्रसन्न करने के लिए पूजा-पाठ, तरह-तरह के टोटके और उपाय करते हैं. आप भी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो शुक्रवार को केवल उनके एक स्तोत्र का पाठ करें, जिसका नाम है धनदालक्ष्मी स्तोत्रम्. इसका पाठ करने से घर में सुख और समृद्धि आती है. इसके साथ ही दरिद्रता दूर होती है. कहा जाता है कि धनदालक्ष्मी स्तोत्रम् का पाठ अगर रोजाना किया जाए तो व्यक्ति को जीवन में आर्थिक रूप से कोई संकट नहीं आता है.
॥ धनदालक्ष्मी स्तोत्रम् ॥
॥ धनदा उवाच ॥
देवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम्।
कृपया पार्वती प्राह शंकरं करुणाकरम्॥1॥
॥ देव्युवाच ॥
ब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम्।
दरिद्र दलनोपायमंजसैव धनप्रदम्॥2॥
॥ शिव उवाच ॥
पूजयन् पार्वतीवाक्यमिदमाह महेश्वरः।
उचितं जगदम्बासि तव भूतानुकम्पया॥3॥
स सीतं सानुजं रामं सांजनेयं सहानुगम्।
प्रणम्य परमानन्दं वक्ष्येऽहं स्तोत्रमुत्तमम्॥4॥
धनदं श्रद्धानानां सद्यः सुलभकारकम्।
योगक्षेमकरं सत्यं सत्यमेव वचो मम॥5॥
पठंतः पाठयंतोऽपि ब्रह्मणैरास्तिकोत्तमैः।
धनलाभो भवेदाशु नाशमेति दरिद्रता॥6॥
भूभवांशभवां भूत्यै भक्तिकल्पलतां शुभाम्।
प्रार्थयत्तां यथाकामं कामधेनुस्वरूपिणीम्॥7॥
धनदे धनदे देवि दानशीले दयाकरे।
त्वं प्रसीद महेशानि! यदर्थं प्रार्थयाम्यहम्॥8॥
धराऽमरप्रिये पुण्ये धन्ये धनदपूजिते।
सुधनं र्धामिके देहि यजमानाय सत्वरम्॥9॥
रम्ये रुद्रप्रिये रूपे रामरूपे रतिप्रिये।
शिखीसखमनोमूर्त्ते प्रसीद प्रणते मयि॥10॥
आरक्त-चरणाम्भोजे सिद्धि-सर्वार्थदायिके।
दिव्याम्बरधरे दिव्ये दिव्यमाल्यानुशोभिते॥11॥
समस्तगुणसम्पन्ने सर्वलक्षणलक्षिते।
शरच्चन्द्रमुखे नीले नील नीरज लोचने॥12॥
चंचरीक चमू चारु श्रीहार कुटिलालके।
मत्ते भगवती मातः कलकण्ठरवामृते॥13॥
हासाऽवलोकनैर्दिव्यैर्भक्तचिन्तापहारिके।
रूप लावण्य तारूण्य कारूण्य गुणभाजने॥14॥
क्वणत्कंकणमंजीरे लसल्लीलाकराम्बुजे।
रुद्रप्रकाशिते तत्त्वे धर्माधरे धरालये॥15॥
प्रयच्छ यजमानाय धनं धर्मेकसाधनम्।
मातस्त्वं मेऽविलम्बेन दिशस्व जगदम्बिके॥16॥
कृपया करुरागारे प्रार्थितं कुरु मे शुभे।
वसुधे वसुधारूपे वसु वासव वन्दिते॥17॥
धनदे यजमानाय वरदे वरदा भव।
ब्रह्मण्यैर्ब्राह्मणैः पूज्ये पार्वतीशिवशंकरे॥18॥
स्तोत्रं दरिद्रताव्याधिशमनं सुधनप्रदम्।
श्रीकरे शंकरे श्रीदे प्रसीद मयिकिंकरे॥19॥
पार्वतीशप्रसादेन सुरेश किंकरेरितम्।
श्रद्धया ये पठिष्यन्ति पाठयिष्यन्ति भक्तितः॥20॥
सहस्रमयुतं लक्षं धनलाभो भवेद् ध्रुवम्
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धन-धान्यादिसम्पदः॥21॥
॥ इति श्री धनलक्ष्मी स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
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