भीमराव अंबेडकर ने 3 लाख से ज्यादा लोगों के साथ क्यों बदला अपना मजहब? आखिर हिन्दू धर्म छोड़ा ही क्यों?
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भीमराव अंबेडकर ने 3 लाख से ज्यादा लोगों के साथ क्यों बदला अपना मजहब? आखिर हिन्दू धर्म छोड़ा ही क्यों?

Time Machine on Zee News: साल 1956 में आई एक और तबाही का मंजर देखा गया था. ये तबाही गुजरात में कच्छ के पास अंजार में आई थी. आजाद भारत के बाद गुजरात में आया ये दूसरा बड़ा भूकंप था.

भीमराव अंबेडकर ने 3 लाख से ज्यादा लोगों के साथ क्यों बदला अपना मजहब? आखिर हिन्दू धर्म छोड़ा ही क्यों?

ZEE News Time Machine: ज़ी न्यूज की स्पेशल टाइम मशीन में आज हम आपको ले चल रहे हैं 67 साल पहले के साल 1956 में. जब भारत को मिला उसका पहला फाइव स्टार होटल. जब तमिलनाडु में हिंदी भाषा का विरोध गरमाया और इसी साल देश के एक इलाके में इतनी गर्मी पड़ी कि कहा जाने लगा.. आसमान से आग के गोले बरस रहे हैं. ये वही साल था जब साढ़े तीन लाख से ज्यादा लोगों के साथ बाबा साहेब अंबेडकर ने हिंदू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म (बौद्ध धर्म) अपना लिया. तो चलिये सफर करते हैं टाइम मशीन में और आपको बताते हैं साल 1956 की 10 अनसुनी अनकही कहानियों के बारे में..

भारत का पहला फाइव स्टार होटल 'अशोका'

लंबी इमारतें और शाही महल के जैसा दिखने वाला ये होटल उस विरासत का हिस्सा है, जो आजाद भारत से चली आ रही है. दिल्ली के चाणक्यपुरी में बना होटल अशोका, ना जाने कितने यादगार पलों का साक्षी बना है. अशोका होटल से पंडित जवाहरलाल नेहरू की यादें जुड़ी है क्योंकि इस होटल का निर्माण उन्होंने ही करवाया था. लेकिन ये होटल क्यों बना? इसकी वजह शायद ही आप जानते होंगे. वो साल था 1955 का, जब यूनेस्को का 8वां शिखर सम्मेलन था. पं. नेहरू को सुनने के लिए पेरिस में बड़ी गहमागहमी थी. दुनिया के ताकतवर देशों में नेहरू को एक तिलस्माई नेता के रूप में देखा जाता था. हालांकि भारत को लेकर दूसरे देशों के मन में संशय था कि शायद भारत वो उपलब्धि हासिल ना कर पाए. भाषण देने के बाद नेहरू ने यूनेस्को का 9वां सम्मेलन भारत में कराने की पेशकश की, दो दिन तक कोई निर्णय नहीं हुआ, फिर हामी भर दी गई. लेकिन इस सबके बीच नेहरू के मन में एक बड़ा सवाल था, वो ये कि आखिर विश्व के इन दिग्गजों का स्वागत भारत में कैसे किया जाएगा, क्योंकि इनके खाने लायक ना 5 सितारा होटल सुविधा है और न कोई 5 स्टार कान्फ्रेस हॉल. आखिरकार नेहरू देश वापस आए और उन्होंने अपने इस सपने को साकार करने के लिए द अशोका होटल को 1956 में बनवाया. जम्मू-कश्मीर के राजकुमार कर्ण सिंह द्वारा सरकार को दान की गई 25 एकड़ की जमीन पार्कलैंड पर होटल अशोका का निर्माण हुआ. मशहूर आर्किटेक्ट ई बी डॉक्टर की अगुवाई में अशोका होटल का पूरा खाका तैयार हुआ. 10 महीने 28 दिन बाद 1956 में होटल पूरी तरह तैयार हुआ. 3 करोड़ की लागत में बना भारत का ये पहला 5 स्टार होटल था. 5 नवम्बर 1956 को नेहरू ने होटल अशोका के कॉन्फ्रेन्स हॉल में UNESCO को नौंवे सम्मेलन में अतिथियों का स्वागत किया.

तमिलों ने किया हिंदी का विरोध

हिंदी, मतलब वो भाषा जो देश में सबसे ज्यादा बोली जाती है. लेकिन हिंदी पर हमलों का इतिहास कितना पुराना है? ये आप अच्छे से जानते होंगे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश के आजाद होने के बाद भी हिंदी को लेकर जमकर विवाद हुआ था. साल 1956 में Academy of Tamil Culture ने इस बात पर जोर दिया था कि हिंदी को राष्ट्रभाषा नहीं माना जाए. वो चाहते थे कि अंग्रेजी राष्ट्रभाषा रहे और राज्यों के अंदर तमिल भाषा या रीजनल भाषा का ही उपयोग किया जाए. Academy of Tamil Culture ने इस प्रस्ताव को बाद में पारित भी किया. हस्ताक्षरकर्ताओं में सीएन अन्नादुरई, ईवी रामास्वामी 'पेरियार ' और सी राजगोपालाचारी शामिल थे और इन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा से हटाने का विरोध किया और अंग्रेजी को राष्ट्रभाषा के साथ तमिल भाषा का समर्थन किया. बताया जाता है कि, इसमें तमिलनाडु की पॉलिटिकल पार्टी द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम भी शामिल थी. जो इससे पहले हिंदी को लेकर कई बार विरोध कर चुकी थी.

14 राज्यों में बंटा भारत

आजाद भारत की गाड़ी का पहिया धीरे-धीरे पटरी पर दौड़ने लगा. इसी बीच देश में अलग-अलग राज्यों का गठन भी किया जाने लगा. लेकिन इसको लेकर भी उस वक्त जमकर खींचातानी हुई. 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम, बनाया गया. इस अधिनियम के अंतर्गत भाषा के आधार पर राज्यों का गठन हुआ और केंद्र शासित प्रदेश भी बनाए गए. अधिनियम के अंतर्गत 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश बने. असम, बिहार, बम्बई, हैदराबाद, मद्रास, मैसूर, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, समेत 14 राज्य बने. अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, दिल्ली, मणिपुर, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश समेत 6 केंद्र शासित प्रदेश बने. हालांकि इसके बाद भी समय-समय पर इसमें बदलाव होते रहे और राज्यों की संख्या बढ़ती गई.

300 के लोन से तैराक पहुंचा ओलंपिक!

ओलंपिक, मतलब खेलों का वो महामेला जहां की जीत बेहद मायने रखती है और ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन हमेशा से ही सातवें आसमान पर रहा है. आजादी के कुछ साल बाद यानी साल 1956 में देश का सीना गर्व से चौड़ा करने समर ओलंपिक के लिए ऑस्ट्रेलिया गए. शमशेर खान इकलौते पहले भारतीय तैराक थे जिन्होंने मेलबर्न में 1956 के समर ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था. ऐसा करने वाले वो न केवल पहले भारतीय तैराक थे, बल्कि उन्होंने क्वालीफायर लिस्ट में 5 वां स्थान हासिल किया और ब्रेस्टस्ट्रोक और बटरफ्लाई दोनों में भाग लिया. दिलचस्प बात ये है कि उस वक्त शमशेर खान को भारत सरकार से मेलबर्न जाने के लिए सिर्फ हवाई जहाज के टिकट मिले थे. बाकी का बंदोबस्त शमशेर खान ने खुद किया. उन्होंने ओलंपिक के दौरान अपने खाने, रहने और अन्य  खर्चों को पूरा करने के लिए सेना से 300 रुपये का कर्ज लिया था. भले ही शमशेर खान ने ओलंपिक में कोई मेडल नहीं जीता. लेकिन उन्होंने इस कॉम्पटीशन में 5वां स्थान हासिल कर सभी को गर्व का अहसास कराया था.

अलवर में बरसे आग के गोले

भारत के किसी भी शहर में चले जाएं, वहां आपको लोग अकसर ये कहते हुए मिल जाएंगे कि जब हम बच्चे थे तब ऐसा बिल्कुल नहीं होता था. अब इतनी गर्मी पता नहीं क्यों पड़ती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि साल 1956 में एक दिन ऐसा भी आया. जब राजस्थान के एक शहर में आसमान से आग के गोले बरसे थे. साल 1956 में राजस्थान के अलवर में सबसे ज्यादा 50.6 डिग्री सेल्सियस तक पारा पहुंच गया था. ये उस वक्त में दर्ज किया गया सबसे ज्यादा गर्म दिन था.

अंबेडकर साहब का धर्म परिवर्तन

संविधान की नींव रखने वाले बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने देश में बदलाव की क्रांति लाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी. लेकिन ये सवाल अकसर उठता रहा है कि, उन्होंने हिन्दू धर्म छोड़ने के बाद मुस्लिम या ईसाई धर्म के बजाय बौद्ध धर्म ही स्वीकार करने का निर्णय क्यों लिया? हिन्दू धर्म छोड़ा ही क्यों? 1956 में अंबेडकर ने अपने 3,80,000 साथियों के साथ हिन्दू धर्म को त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया था. 1950 के दशक में ही बाबा साहेब बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षित हुए और बौद्ध सम्मेलन में भाग लेने श्रीलंका गए. फिर 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में उन्होंने अपने लाखों समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया. 1935 में ही बाबा साहब ने हिन्दू धर्म छोड़ने का ऐलान कर दिया था. लेकिन 20 साल बाद उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार किया. फिर भी एक सवाल ये था कि धर्म परिवर्तन करने में उन्होंने इतना लंबा वक्त क्यों लिया. दरअसल अम्बेडकर ऐसा कोई भी धर्म स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे. जिसमें ईश्वर या ईश्वर के बेटे, पैगम्बर या खुद ईश्वर के अवतार के लिए कोई जगह हो. इसी कारण उनके द्वारा अपनाए गए धर्म के प्रवर्तक गौतमबुद्ध एक मानव हैं. उनका मानना था कि बौद्ध धर्म एक मानव धर्म है, जिसमें ईश्वर के लिए कोई जगह नहीं है.

जब खत्म हुआ बुंदेलखंड का अस्तित्व!

बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की आग आजादी के बाद से ही उठनी शुरू हो गई थी. भले ही सियासी गलियारों में ये मुद्दा ज्यादा हंगामा खड़ा नहीं कर पाया हो, लेकिन इसके अस्तित्व को झुठलाया भी नहीं जा सकता है. 35 रियासतों को मिलाकर बनाए गए विन्ध्य प्रान्त के अनेक राजाओं ने एक-दूसरे का विरोध शुरू कर दिया, जिसके बाद विन्ध्य प्रान्त को बघेलखण्ड व बुन्देलखण्ड में विभाजित कर दिया. संविधान सभा ने 12 मार्च 1948 को किया था गठन. 8 साल 7 महीने तक बना था बुन्देलखण्ड राज्य. कामता प्रसाद सक्सेना पहले मुख्यमंत्री बने थे. कहा जाता है कि, नेहरू सरकार ने बुंदेलखंड राज्य को बनाए रखने की प्रथम राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश को भी खारिज कर दिया था. इसके बाद 31 अक्टूबर 1956 को बुंदेलखंड को समाप्त कर दिया गया और  बुंदेलखंड को उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के बीच विभाजित कर दिया गया.

राजा की पेंटिग का दीवाना फ्रांस

एक कलाकार जब अपनी कला दिखाता है तो उसकी तारीफों का सिलसिला बड़ा लंबा होता है. सैय्यद हैदर रजा यानि एसएच रजा भी एक ऐसी ही शख्सियत थे. जिनकी चित्रकारी पर दुनिया फिदा थी. अपनी पेंटिंग से एस एच रजा ने लोगों का ऐसा मन मोह लिया कि दुनिया के दूसरे देश भी उनकी कला को नमन करते थे. आजादी के बाद साल 1950 में एस एच रजा फ्रांस में जाकर बस गए. जहां से उन्होंने अपनी पढ़ाई भी पूरी की. इसके बाद वो पेरिस में रहकर काम करने लगे और अपनी पेंटिंग का प्रदर्शन जारी रखा. 1956 में उन्हें पेरिस में ‘प्रिक्स डे ला क्रिटिक’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाले वो पहले गैर-फ्रांसीसी कलाकार थे. इस पुरस्कार के साथ वो बर्नार्ड बफे जैसे कलाकारों की श्रेणी में शामिल हो गए. उनकी चित्रकारी पेरिस में आधुनिक कला संग्रहालय में प्रदर्शित की गई. 14 जुलाई 2015 को फ्रांस की सरकार ने उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘लीजन ऑफ ऑनर’ दिया. भारत में उन्हें पद्म भूषण, पद्म विभूषण और पद्मश्री से भी नवाजा गया.

कच्छ की धरती के गोद में समाए 115 लोग!

साल 1956 में आई एक और तबाही का मंजर देखा गया था. ये तबाही गुजरात में कच्छ के पास अंजार में आई थी. आजाद भारत के बाद गुजरात में आया ये दूसरा बड़ा भूकंप था. 1956 का अंजार भूकंप 21 जुलाई को 3 बजकर 32 मिनट (15:32) यूटीसी यानि यूनिवर्सल कॉर्डिनेटेड टाइम पर आया. इस भूकंप से सबसे ज्यादा नुकसान गुजरात के छोटे से शहर अंजार में ही हुआ. उस वक्त इस भूकंप की तीव्रता 6.1 मापी गई. इस भूकंप से उस वक्त करीब 115 लोगों की जान गई थी और 254 लोग घायल हुए थे. भूकंप से अंजार शहर और इसके आसपास के इलाके अधिक प्रभावित थे, जिसमें करीब 2000 घर क्षतिग्रस्त हुए थे, जिनमें से आधे अकेले अंजार शहर में थे.

2 शादी वाली आजादी पर प्रतिबंध!

आजादी के महज कुछ सालों के भीतर देश में नए नियम और कायदे कानून बनाए गए. इन्हीं में से एक कानून साल 1956  में आया. ये कानून था Polygamy Act यानि बहुविवाह वाला कानून. दरअसल पुरानी सदी में राजा-महाराजाओं के साथ-साथ किसी भी शख्स को एक से ज्यादा शादी करने की आजादी थी. अक्सर देखा गया कि राजा-महाराजाओं की कई पत्नियां हुआ करती थीं. लेकिन आजादी के बाद इस प्रथा पर 1956 में फुलस्टॉप लगा दिया गया. 1956 में बहुविवाह यानि पॉलिगेमी को देश में अवैध करार कर दिया गया, ये कानून बहूसंख्यकों पर लागू किया गया.

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