जलवायु परिवर्तन का प्रकोप अब दुनिया के हर कोने में दिखाई दे रहा है. इसने न केवल मानव जीवन को प्रभावित किया है बल्कि हमारी सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत को भी खतरे में डाल दिया है. ब्रिटिश कंपनी क्लाइमेट एक्स के एक हालिया शोध के अनुसार, एशिया प्रशांत, उत्तरी अमेरिका और यूरोप क्षेत्र में 50 विरासत स्थलों पर जलवायु परिवर्तन का खतरे बताया है, जिसमें से पांच भारत के हैं. कंपनी अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण अगले 20 वर्षों में दुनिया के दर्जनों यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल नष्ट हो सकते हैं. आइए एक नजर डालते हैं कि भारत की किन 5 धरोहरों पर जलवायु परिवर्तन का संकट मंडरा रहा है.
सिक्किम का कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान अपनी प्राकृतिक सुंदरता और बायोडायवर्सिटी के लिए प्रसिद्ध है. यह स्थान यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में भी शामिल है. लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण यहां के हिमनद तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे न केवल पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ रहा है, बल्कि यहां के वन्यजीवों के आवास भी खतरे में हैं. तापमान में वृद्धि से ग्लेशियरों का सिकुड़ना और जंगल की आग की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है, जिससे यह धरोहर स्थल खतरे में है.
ओडिशा का कोणार्क का सूर्य मंदिर भारतीय आर्किटेक्चर का अद्वितीय नमूना है, जो 13वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था. यह मंदिर समुद्र तट के पास स्थित है और जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ते समुद्री जलस्तर और तटीय कटाव से यह धरोहर संकट में है. समुद्र के जलस्तर में वृद्धि और ज्यादा बारिश से मंदिर की संरचना कमजोर हो रही है, जिससे इसके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है.
राजस्थान का केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (जिसे भरतपुर पक्षी अभयारण्य के नाम से भी जाना जाता है) विश्व धरोहर स्थलों में से एक है. यह उद्यान सर्दियों में प्रवासी पक्षियों का प्रमुख स्थान है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण यहां की जलवायु में हो रहे बदलावों से पक्षियों की प्रवास प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. इसके साथ ही, जल स्रोतों में कमी और सूखे की घटनाओं में बढ़ोतरी से यहां के वन्यजीवों के जीवन पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है.
पश्चिम बंगाल का सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान विश्व का सबसे बड़ा मैन्ग्रोव वन क्षेत्र है, जहां बंगाल टाइगर और कई दुर्लभ वन्यजीव पाए जाते हैं. लेकिन समुद्र के जलस्तर में वृद्धि, चक्रवातों की तीव्रता में बढ़ोतरी और तटीय कटाव से यह अद्वितीय धरोहर तेजी से नष्ट हो रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर स्थिति नहीं सुधरी, तो अगले कुछ दशकों में सुंदरबन पूरी तरह से समुद्र में समा सकता है.
गोवा के चर्च और कॉन्वेंट अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिए विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त हैं. लेकिन बदलते जलवायु के कारण यहां की संरचनाओं पर नमी और जंग का असर बढ़ रहा है. साथ ही, गोवा के समुद्री तट पर बढ़ते जलस्तर से इन धरोहरों के इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी खतरा मंडरा रहा है.
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