Sanjay in Mahabharata War: महाभारत युद्ध में धृतराष्ट्र के सारथी और सलाहकार संजय ने हस्तिनापुर में रहकर अपनी दिव्य दृष्टि के जरिए उन्हें युद्ध का पूरा हाल बताया था. लेकिन जब युद्ध खत्म हुआ और कौरव समाप्त हो गए तो संजय का क्या हुआ था.
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Sanjay Destiny in Mahabharata: महाभारत युद्ध के चर्चित पात्र संजय के बारे में तो आप बखूबी जानते ही होंगे. भगवान कृष्ण के अलावा केवल सहदेव और संजय को ही युद्ध का वर्तमान व भविष्य जानने की शक्ति प्राप्त थी. वे हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र के सलाहकार और सारथी भी थे. जब कौरवों और पांडवों में कुरुक्षेत्र में 18 दिनों तक भीषण युद्ध चला तो उस दौरान संजय हस्तिनापुर में ही थे और महाराज धृतराष्ट्र को युद्ध का आंखों देखा हाल बता रहे थे. लेकिन जब महाभारत युद्ध खत्म हुआ तो संजय का क्या हुआ. वे कहां चले गए थे, इस बारे में बहुत कम लोगों को ही पता होगा. आज हम आपको इस बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं.
महर्षि वेदवव्यास ने दी थी दिव्य दृष्टि
पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक, संजय महर्षि वेदवव्यास के शिष्य थे. उनकी सेवा से प्रसन्न होकर महर्षि ने उन्हें दिव्य दृष्टि का वरदान दिया था. यानी वे दूर हो रही घटनाओं के साथ ही भविष्य की घटनाओं को भी साक्षात देख सकते थे. जब महाभारत युद्ध के दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपने विराट रूप के दर्शन दिए, तब संजय ही वह दूसरे व अंतिम शख्स थे, जिन्होंने साक्षात भगवान विष्णु को अपने सामने देखा था. दुनिया में बाकी किसी व्यक्ति को उनका यह दिव्य रूप देखने का सौभाग्य नहीं मिला.
आखिरी समय तक धृतराष्ट्र को समझाने का प्रयास
संजय बेहद विनम्र और धार्मिक स्वभाव के थे. वे सत्य और धर्म का हमेशा साथ देते थे. महज सारथी होने के बावजूद वे हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र के सामने सही बात कहने से हिचकिचाते नहीं थे. महाभारत युद्ध टालने के लिए उन्होंने आखिरी समय तक प्रयास किया. चौसर में पांडवों की हार के बाद जब दुर्योधन ने चालाकी दिखाते हुए उन्हें वनवास जाने को विवश किया, तभी संजय को आने वाले भविष्य का अहसास हो गया था.
युद्ध टालने के लिए पांडवों के पास गए
संजय ने उन्होंने धृतराष्ट्र को चेतावनी देते हुए कहा, 'हे राजन! कुरु वंश का नाश अब निश्चित है, लेकिन इस महायुद्ध में भारी संख्या में प्रजा की भी हानि होने वाली है.' हालांकि धृतराष्ट्र ने उनकी बात नहीं मानी और युद्ध की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ गया. इसके बाद भीष्म, द्रोणाचार्य समेत बाकी योद्धाओं के कहने पर धृतराष्ट्र ने महाभारत युद्ध टालने के लिए संजय को पांडवों के पास समझाने के लिए भेजा था. उनका आदेश मानते हुए संजय पांडवों के पास गए, हालांकि वे यह बात पहले से जानते थे कि अब युद्ध को नहीं टाला जा सकता है.
महाभारत युद्ध के पश्चात चले गए हिमालय
कुरुक्षेत्र में 18 दिनों तक चले महाभारत युद्ध में जब दुर्योधन समेत उसके अधिकतर भाई मारे गए और पांडव जंग जीत गए तो धृतराष्ट्र टूट गए. उन्हें उम्मीद नहीं थी कि कम सेना के बावजूद पांडव कौरव सेना को हरा देंगे. कहते हैं कि इस युद्ध के बाद संजय काफी समय तक हस्तिनापुर में बने रहे. बाद में जब धृतराष्ट्र, गांधी और पांडवों की माता कुंती ने संन्यास लिया तो संजय भी भी सार्वजनिक जीवन से संन्यास धारण कर लिया. धृतराष्ट्र की मृत्यु हो जाने के पश्चात संजय हिमालय की कंदराओं में चले गए और वहीं रहकर अपना बाकी जीवन गुजारा
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)