Khatu Shyam Ji: क्यों कहलाए जाते हैं भगवान खाटूश्याम हारे का सहारा? जानिए इसके पीछे की कहानी
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Khatu Shyam Ji: क्यों कहलाए जाते हैं भगवान खाटूश्याम हारे का सहारा? जानिए इसके पीछे की कहानी

Khatu Shyam Mandir: धार्मिक मान्यतानुसार खाटू श्याम जी को भगवान कृष्ण के कलयुगी अवतार माना जाता है. भगवान खाटूश्याम को हारे का सहारा, शीश के दानी और तीन बाण धारी जैसे नामों से भी जाना जाता है. चलिए जानते हैं खाटू श्याम जी को ये नाम क्यों और कैसे मिले.

 

Khatu Shyam Ji: क्यों कहलाए जाते हैं भगवान खाटूश्याम हारे का सहारा? जानिए इसके पीछे की कहानी

Khatu Shyam Ji: खाटू श्याम मंदिर जोकि राजस्थान के सीकर जिले में मौजूद है. लोगों के बीच बहुत फेमस है. यहां पर भगवान खाटूश्याम के दर्शन करने के लिए देशभर के कोने-कोने से लोग आते हैं. धार्मिक मान्यतानुसार खाटू श्याम जी को भगवान कृष्ण के कलयुगी अवतार माना जाता है. भगवान खाटूश्याम को हारे का सहारा, शीश के दानी और तीन बाण धारी जैसे नामों से भी जाना जाता है. इसलिए खाटू श्याम मंदिर कलयुग में लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. चलिए जानते हैं खाटू श्याम जी को ये नाम क्यों और कैसे मिले.

खाटू श्याम जी महाराज कौन हैं? 
प्रसिद्ध भगवान खाटू श्याम जी असल में पांडव भीम के पोते यानि कि घटोत्कच के बेटे हैं. उनका असली नाम बर्बरीक था. बर्बरीक बचपन से ही अपने पिता भीम की तरह ही एक वीर योद्धा थे. 

क्यों कहलाए हारे का सहारा?
जब पुत्र बर्बरीक ने महाभारत के युद्ध में भाग लेने के लिए अपनी मां से आज्ञा मांगी तो उनकी माता को आभास हुआ कि कौरवों की सेना बड़ी होने की वजह से पांडवों को युद्ध में दिक्कत हो सकती है. इस दौरान मां ने बर्बरीक को आज्ञा देते हुए वचन दिया कि वो युद्ध में हार रहे पक्ष की ओर से लड़ेंगे. इसके बाद से ही भगवान खाटू श्याम हारे का सहारा के नाम से कहलाने लगे.

तीन बाण धारी नाम कैसे पड़ा?
भगवान खाटूश्याम को तीन बाण धारी के नाम से भी जाना जाता है. ऐसा इसलिए था क्योंकि भगवान शिव ने बर्बरीक की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे तीन अभेद्य बाण दिए थे. जिससे खाटूश्याम का नाम तीन बाण धारी पड़ गया. धार्मिक मान्यतानुसार बर्बरीक के ये तीन बाण इतने ताकतवर थे कि इससे महाभारत का पूरा युद्ध खत्म किया जा सकता था. 

क्यों कहे जाते हैं शीश के दानी? 
खाटूश्याम को शीश का दानी के नाम से भी जाना जाता है. जब बर्बरीक अपनी मां के कहे अनुसार युद्ध में हारने वाले पक्ष का साथ देने आए तो भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि बर्बरीक कौरवों को हारता हुआ देखकर कौरवों का साथ देंगे, जिससे पांडवों का हारना तय हो जाता. ऐसे में  भगवान श्री कृष्ण ने ब्राह्मण का रूप धरकर बर्बरीक से अपनी शीश को दान में मांग लिया. इस प्रकार बर्बरीक ने तुरंत अपनी तलवार निकालकर शीश काटा और भगवान श्री कृष्ण के चरणों में रख दिया. तभी से बर्बरीक को शीश का दानी कहा जाने लगा. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्‍य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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