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क्या है गुलाबी पाउडर, जो जंगलों को जला रही आग को बना रहा निवाला; इस्तेमाल पर अब क्यों उठे सवाल?

California Wildfire: कैलिफोर्निया की जंगलों पर लगी भीषण आग को बुझाने के लिए बड़ी मात्रा में पिंक पाउडर का इस्तेमाल किया जा रहा है. एक ओर जहां ये पाउडर आग बुझाने में मदद कर रहा है तो वहीं दूसरी ओर अब इसके इस्तेमाल पर सवाल खड़े होने लगे हैं. 

 

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कैलिफोर्निया की आग बुझाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा यह पिंक लिक्विड यानी पिंक फायर रिटार्डेंट केमिकल का एक मिश्रण होता है. यह आग को बुझाने और इसकी रफ्तार को धीमा करने का काम करता है. अमेरिका में जंगलों की आग बुझाने के लिए इसका काफी इस्तेमाल होता है. वहीं इसके लिए सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाला प्रोडक्ट फोस-चेक है, जो अमोनियम फॉस्फेट से बना एक सॉल्यूशन होता है. 

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आग लगने पर पिंक फायर रिटार्डेंट केमिकल को पेड़-पौधों पर छिड़का जाता है. अमोनियम पॉलीफॉस्फेट से बने होने के कारण यह आसानी से भाप में नहीं बदलता है और लंबे समय तक टिका रहता है. इसे छिड़कने पर पेड़-पौधों में इसकी परत चढ़ जाती है, जिससे इनमें ऑक्सीजन की सप्लाई बंद हो जाती है और पेड़-पौधे जलने से बच जाते हैं. 

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असल में फायर रिटार्डेंट में गुलाबी रंग को अलग से मिलाया जाता है. ऐसा इसलिए ताकि फायरफाइटर्स इसे साफ तौर पर देख पाएं और उन्हें फायर रिटार्डेंट के चारों तरफ आग से लाइन बनाने में मदद मिल सके. इससे आग से थोड़ा कम नुकसान होता है. इस केमिकल में गुलाबी रंग का इस्तेमाल इसलिए भी किया जाता है क्योंकि ये आंखों को दिखने में सुंदर लगता है. 

 

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पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि पिंक फायर रिटार्डेंट का इस्तेमाल महंगा होने के साथ ही पर्यावरण के लिए खतरा भी है. साल 2024 में 'साउथ कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी' के वैज्ञानिकों की ओर से की गई एक रिसर्च में पाया गया कि फोस-चेक में सेहत खराब करने वाले कई टॉक्सिक मेटल होते हैं, जिनमें कैडमियम और क्रोमियम जैसे केमिकल होते हैं. ये केमिकल हवा में घुलने के बाद कैंसर, हार्ट, लिवर औप किडनी से जुड़ी समस्या खड़ी कर सकते हैं.   

 

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फॉस-चेक आग बुझाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कई तरीकों में से एक है, हालांकि यह कितना प्रभावशाली है इसको लेकर अभी तक मतभेद जारी है. आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका में साल 2009-2021 के बीच 44 करोड़ गैलन से अधिक मात्रा में रिटार्डेंट को छिड़का गया है. वहीं 'न्यू यॉर्क टाइम्स' की एक रिपोर्ट के मुताबित वन वैज्ञानिकों ने अपनी स्टडी में पाया है कि किसी भी जगह के मौसम, उस जगह की ढलान, क्षेत्र और ईधन के प्रकार के उपर निर्भर करता है कि यह कितना कारगार होगा. 

 

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