नई दिल्ली: किसी भी देश की सीमाओं का मजबूत होना बेहद जरूरी है. ये न सिर्फ सुरक्षा के दृष्टिकोण से अहम है बल्कि स्थिरता से ही आर्थिक विकास के लक्ष्य प्राप्त करना भी आसान होता है. भारत की उत्तरी और पश्चिमी सीमा पर चुनौतियां बनी रहती हैं. ऐसे में रक्षा क्षमताओं का बेहतरीन होना आवश्यक है. हालांकि सरकार भी इसे समझती है, लेकिन बजट में रक्षा पर आवंटन कुल खर्च के हिस्से के रूप में कम हो रहा है.
जीडीपी के मुकाबले कम हुआ है रक्षा बजट
रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 2024-25 के लिए रक्षा बजट 6.22 लाख करोड़ रुपये रखा गया, जो केंद्र सरकार के कुल खर्च का लगभग 13 फीसदी था. जबकि ये 2014-15 में रक्षा क्षेत्र को कुल बजट का 17 प्रतिशत और 2016-17 में 17.8 प्रतिशत मिला था. यहां तक कि 2023-24 में संशोधित अनुमान में 13.9 फीसदी था, जो अब और कम हो गया है.
संसद की स्थायी रक्षा समिति ने 2018 में सिफारिश की थी कि रक्षा बजट जीडीपी का कम से कम 3% होना चाहिए, लेकिन 2020-21 में 2.4% से घटकर 2024-25 में 1.92% रह गया है.
वेतन और पेंशन में जा रहा करीब आधा हिस्सा
हालांकि रक्षा मंत्रालय के कुल बजट का लगभग आधा हिस्सा वेतन और पेंशन पर खर्च हो रहा है. 2013-14 से 2024-25 तक रक्षा पेंशन का सालाना खर्च 11 फीसदी बढ़ा, जबकि कुल रक्षा बजट केवल 8 फीसदी सालाना बढ़ा. इसके कारण 2014-15 में नए हथियार और रक्षा उपकरणों की खरीद पर खर्च 32% था, जो 2024-25 में घटकर 29% रह गया.
घरेलू रक्षा निर्माण में हुआ है सुधार
रिपोर्ट्स के अनुसार, घरेलू रक्षा निर्माण में सुधार हुआ है और इसमें निजी कंपनियां भी सहयोग कर रही हैं. साल 2022-23 में भारत का रक्षा उत्पादन 1 लाख करोड़ रुपये के पार पहुंच गया. सरकार का लक्ष्य 2025 तक 1.75 लाख करोड़ रुपये का रक्षा उत्पादन और 35,000 करोड़ रुपये का रक्षा निर्यात हासिल करना है. ड्रोन और अन्य रक्षा उपकरणों के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (PLI स्कीम) शुरू की गई है.
विदेशी निवेश बढ़ाने पर देना होगा जोर
रिपोर्ट्स की मानें तो भारत दुनिया में सबसे ज्यादा हथियार खरीदने वाला देश है. ऐसे में 2020 में सरकार ने विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए रक्षा क्षेत्र में FDI सीमा को 74% (ऑटोमैटिक रूट) और 100% (सरकार की मंजूरी से) कर दिया था. लेकिन भारत में विदेशी हथियार कंपनियों ने बड़े पैमाने पर निवेश नहीं किया है. सरकार को इसका समाधान खोजना होगा.
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