Space में होने वाली थी दो satellite की टक्कर, लेकिन टल गया हादसा

रूसी अंतरिक्ष एजेंसी (Russian Space agency) से जारी बयान में कहा गया है कि शुक्रवार को भारतीय सैटेलाइट कार्टोसैट (Cartosat 2F) और रूसी सैटेलाइट केनापुस (Kanopus) बेहद करीब आ गए थे. रूसी एजेंसी रॉसकोमोस (Roscosmos) ने अपने ट्वीट में कहा है कि दोनों सेटेलाइट के बीच की दूरी सिर्फ 224 मीटर रह गई थी. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Nov 28, 2020, 10:04 AM IST
  • अंतरिक्ष में दो उपग्रहों के बीच, 1 किलोमीटर की दूरी एक आदर्श दूरी है
  • इस वाकये के दौरान ये दूरी सिर्फ 224 मीटर रह गई थी जो कि बेहद खरतनाक थी
Space में होने वाली थी दो satellite की टक्कर, लेकिन टल गया हादसा

चेन्नई : अब तक धरती मानवजनित हादसों से बेहाल रही ही है, आशंकाएं हैं कि अंतरिक्ष से भी आप दो उपग्रहों के टकराने की खबर सुन सकते हैं. दरअसल, शुक्रवार को ऐसा ही एक हादसा होने से बच गया, जब अंतरिक्ष में दो कृत्रिम उपग्रह आमने-सामने आ गए. हालांकि दोनों के बीच टक्कर नहीं हुई. दोनों सैटेलाइट के बीच के दूरी महज 224 मीटर रह गई है. Russian Space agency ने इसकी जानकारी दी है. 

रखी जा रही है बारीक नजर
जानकारी के मुताबिक, रूसी अंतरिक्ष एजेंसी (Russian Space agency) से जारी बयान में कहा गया है कि शुक्रवार को भारतीय सैटेलाइट कार्टोसैट (Cartosat 2F) और रूसी सैटेलाइट केनापुस (Kanopus) बेहद करीब आ गए थे. रूसी एजेंसी रॉसकोमोस (Roscosmos) ने अपने ट्वीट में कहा है कि दोनों सेटेलाइट के बीच की दूरी सिर्फ 224 मीटर रह गई थी.

दोनों रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट हैं जिनके जरिए किसी भी हलचल पर बारीक नजर रखी जाती है.

एक किलोमीटर है आदर्श दूरी
सामने आया है कि अंतरिक्ष में दो उपग्रहों के बीच, 1 किलोमीटर की दूरी एक आदर्श दूरी है, जबकि इस वाकये के दौरान ये दूरी सिर्फ 224 मीटर रह गई थी जो कि बेहद खरतनाक और डरावनी स्थिति हो सकती थी. सामान्यत: जब दो सैटेलाइट्स के करीब आने की आशंका होती है तब करीब एक दिन पहले ही संभावित टकराव को रोकने के लिए उनमें से किसी एक के लिए Maneuver का सहारा लिया जाता है. 

हालांकि, सैटेलाइट्स की पैंतरेबाजी (maneuver) का फैसला करना आसान नहीं होता है. खासतौर से जब वो उपग्रह रणनीतिक भूमिका में हो, अपने मकसद को पूरा करने के लिए उसकी निर्धारित क्षेत्र में मौजूदगी जरूरी होती है.

अंतरिक्ष में लगातार बढ़ रहे हैं कृत्रिम उपग्रह
अंतरिक्ष में उपग्रहों की संख्या लगातार बढ़ रही है. इन सेटेलाइट्स का इस्तेमाल विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है. स्पेस एजेंसियों के कई महत्वपूर्ण कामों में एक यह भी होता है कि वो हर 3 से 4 हफ्ते में अपने उपग्रह की चाल की निगरानी करते हुए उसके रूट पर नजर रखें.

जानकारों के मुताबिक पृथ्वी की निचली कक्षा यानी  Low Earth orbit  (500-2000 किमी) में जबर्दस्त ट्रैफिक बढ़ा है. जहां 10 सेमी क्यूब्स से लेकर एक कार के साइज या फिर आकार में उससे बड़े उपग्रह चक्कर लगा रहे हैं. 

भविष्यवाणी मॉडल पर रखी जाती है नजर
अंतरिक्ष समुदाय (Space community) सैटेलाइट्स पर नजर रखने के लिए भविष्यवाणी मॉडल पर काम करता है. फिलहाल स्पेस में यूरोपियन मॉडल, अमेरिकी मॉडल और रूस का अपना अलग नियंत्रण और निगरानी तंत्र है. वहीं भारतीय मॉडल अभी पूरी तरह विकसित नहीं हुआ है. यहां दिक्कत ये भी है कि हर मॉडल की अपनी अलग कैलकुलेशनऔर माप होती है.

रूसी एजेंसी ने इसलिए सार्वजनिक कर दी जानकारी
एक सवाल यह भी उठा कि इस आशंकित हादसे की जानकारी ISRO के साथ साझा करने के बजाय रूसी एजेंसी सार्वजनिक क्यों कर दी? आखिर खतरनाक स्थिति की जानकारी के बाद भी पहले से कोई कदम क्यों नहीं उठाया गया. क्या दोनों एजेंसियों के सेटेलाइट्स का निर्धारित ऑर्बिट में रहना इतना जरूरी था.

इससे ऐसा लगता है कि क्या दोनों एजेंसियां आपस में क्लोस पास (close pass) को मंजूरी देना चाहतीं थीं? यानी भविष्य में किसी आपसी संभावित रणनीति के तहत भी ऐसा किया गया?

Satellites orbiting की मौजूदा स्थिति
ताजा जानकारी के मुताबिक जनवरी 2020 तक, अंतरिक्ष में धरती की परिक्रमा करने वाले करीब 2,000 सक्रिय उपग्रह हैं. नासा (NASA) के अनुसार, यहां 10 सेमी यानी 4 इंच से बड़े मलबे के 23 हजार से अधिक टुकड़े भी मौजूद हैं. 

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