Bashir Badr Poetry: बशीर बद्र हंस-हंस कर शायरी कहते थे. उनके इस अंदाज को नौजवान खूब पसंद करते थे. बशीर बद्र ने मौजूदा समस्याओं पर कई गजलें लिखी हैं. उनकी जिंदगी में कई उतार चढ़ाव आए जो उनकी शायरी में भी दिखते हैं.
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Bashir Badr Poetry: डाक्टर बशीर बद्र आज उर्दू के सबसे बड़े शायरों में शुमार होते हैं. उनकी मक़बूलियत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उर्दू के अलावा हिन्दी जानने वाले लोग भी उनको खूब पढ़ते हैं. बशीर बद्र (सैय्यद मुहम्मद बशीर) की पैदाइश 15 फरवरी 1935 को हुई थी. उनकी पैदाइश के बारे में इखतिलाफ है. कुछ लोग कहते हैं कि वह फैजाबाद में पैदा हुए तो कुछ लोग कहते हैं कि कानपुर में पैदा हुए. अदब की खिदमत के लिए भारत सरकार ने उन्हें पदमश्री के अवार्ड से नवाजा. उन्हें साहित्य अकादमी अवार्ड भी हासिल हुआ.
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते
इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझ को मिरा महबूब समझते होंगे
मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला
पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उस ने मुझे छू क नहीं देरखा
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों
भूल शायद बहुत बड़ी कर ली
दिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में
ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
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