Compulsory voting is not practical in India: संसद में मतदान को अनिवार्य बनाए जाने संबंधी बिल को वापस ले लिया गया है. सरकार ने कहा कि देश में इस तरह का कानून बनाना व्यावहारिक नहीं होगा और ये लोकतंत्र की भावना के भी खिलाफ होगी.
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नई दिल्लीः भारत में आम चुनावों और राज्य विधानसभा चुनावों में कम होते वोटिंग प्रतिशत को लेकर राजनीतिक दलों के साथ देश के तमाम लोग चिंतित हैं. कई दलों और नेताओं ने सरकार से मतदान को अनिवार्य बनाने की मांग की है. हालांकि सरकार अनिवार्य मतदान को लेकर अभी तैयार नहीं दिख रही है. अनिवार्य मतदान का प्रस्ताव करने वाले एक निजी सदस्य के बिल को शुक्रवार को वापस ले लिया गया. इस कानून के प्रस्ताव पर सरकार ने कहा कि इसके प्रावधानों को लागू करना व्यावहारिक नहीं है.
2019 में भी पेश किया गया था बिल
गौरतलब है कि जनार्दन सिंह ’सिग्रीवाल’ भाजपा ने 2019 में लोकसभा में इसे निजी सदस्य विधेयक के रूप में पेश किया था और जोर देकर कहा था कि इस तरह के कानून से लोकतंत्र में और ज्यादा भागीदारी होगी और काले धन के इस्तेमाल पर रोक लगेगी. कानून और न्याय राज्य मंत्री, एस पी सिंह बघेल ने कहा कि वह अनिवार्य मतदान पर सदस्यों की भावना से सहमत हैं, लेकिन लोगों को अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं करने के लिए दंडित करना व्यावहारिक नहीं है.
विधि आयोग ने कहा कि व्यावहारिक नहीं कानून
सदन ने तीन साल तक विधेयक पर विचार किया. चर्चा के दौरान कई सदस्यों ने पक्ष में और कई ने विरोध में बात की. चुनाव सुधारों पर मार्च 2015 की अपनी रिपोर्ट में, विधि आयोग ने अनिवार्य मतदान के विचार का विरोध करते हुए कहा था कि इसे लागू करना व्यावहारिक नहीं है. पिछले लोकसभा चुनाव में अब तक का सर्वाधिक 66.11 फीसदी मतदान हुआ था. यह 2014 में 65.95 फीसदी मतदान की तुलना में 1.16 प्रतिशत ज्यादा था.
लोकतंत्र की भावना के खिलाफ होगा
संसद में पेश विधेयक में मतदान नहीं करने वाले पात्र मतदाताओं की सूची उपलब्ध कराने का प्रावधान था. इस प्रावधान के खिलाफ बोलते हुए, मंत्री ने कहा कि ऐसी सूची को सार्वजनिक करना लोकतंत्र की भावना के खिलाफ होगा. मतदान एक अधिकार है अनिवार्य कर्तव्य नहीं, बघेल ने कहा, विधि आयोग भी इस पक्ष में नहीं था. उन्होंने कहा कि 2004 (बी एस रावत) और 2009 (जे पी अग्रवाल) ने भी इस तरह का एक निजी सदस्य विधेयक पेश किया, लेकिन इसे बाद में वापस ले लिया.
कानून लाने का कोई प्रस्ताव नहीं
गौरतलब है कि पिछली 16वीं लोकसभा में ’सिग्रीवाल’ ने ’अनिवार्य मतदान विधेयक, 2014’ भी पेश किया था. कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने इस साल की शुरुआत में एक लिखित जवाब में कहा था कि देश में अनिवार्य मतदान को लागू करने के लिए कानून लाने का कोई प्रस्ताव नहीं है. एक लिखित जवाब में, रिजिजू ने यह भी कहा कि सरकारी फायदों और योजनाओं का लाभ उठाने और लोगों को अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने के लिए बड़ी संख्या में बाहर आने के लिए प्रेरित करने के लिए मतदान प्रमाण पत्र को अनिवार्य बनाने की कोई योजना नहीं है.
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