सुप्रीम कोर्ट में ऐसी कई आर्जियां दाखिल की गई हैं जिसमें समान सेक्स के साथ शादी को कानूनी मान्यता देने की मांग की गई है. लेकिन जमीयत उलमा-ए-हिंद ने इसका विरोध किया है.
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देश के मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद ने समलैंगिक शादी के लिए कानूनी मान्यता के मामले में दखल की मांग की है. जमीयत उलमा-हिंद ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं का विरोध किया है. जमीयत उलमा-ए-हिंद का मानना है कि यह परिवार व्यवस्था पर हमला है और पर्सनल लॉ का पूरा उल्लंघन है.
शादी का मकसद बच्चे पैदा करना नहीं
सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता की मांग करने वाली अर्जियों में दखल की मांग करते हुए जमीयत ने हिंदू परंपराओं का हवाला दिया है. संगठन ने कहा है कि हिंदुओं के बीच शादी का मकसद केवल जिस्मानी सुख या बच्चे पैदा करना नहीं बल्कि रूहानी तरक्की है. जमीयत ने कहा कि यह हिंदूओं के सोलह संस्कारों में से एक है.
समलैंगिक शादी परिवार पर हमला है
जमीयत ने कहा कि समान-सेक्स शादी का यह ख्याल इस अमल के जरिए परिवार बनाने के बजाय परिवार पर हमला करती है. सुप्रीम कोर्ट ने 13 मार्च को समलैंगिंक शादी की कानूनी मान्यता की मांग करने वाली अर्जियों को पांच न्याधीशों की संविधान की पीठ के पास भेज दिया था. अदालत ने इसे मौलिक मुद्दा बताया था.
शादी का कांसेप्ट बदला नहीं जा सकता
जमीयत ने अपनी अर्जी में दलील दी है कि शादी दो लोगों के मिलने की समाजी-कानूनी मान्यता देने से कहीं ज्यादा है. इसकी मान्यता सामाजिक उसूलों के आधार पर है. यह एक अलग नए ख्याल की बुनियाद पर बदलती नहीं रह सकती है. अर्जी में कहा गया है कि हमारे पास अपोजिट सेक्स के बीच शादी करने वाले कई संवैधानिक प्रावधान हैं. जमीयत ने अपनी याचिका में कहा कि समान-लिंग की शादियों को मान्यता देने वाली अर्जियां शादी की धारणा की जरूरत को कमजोर कर रही हैं.
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