Mughal History: मुगल शासकों की जिंदगी के बारे में अक्सर छपने वाली खबरें/कहानियों को लोग बहुत दिलचस्पी से पढ़ते हैं. हाल ही में एक बार फिर मुगल शासक सुर्खियों में है. इस मौके पर हम आपको बहादुर शाह जफर से जुड़ी कुछ जानकारी देने जा रहे हैं.
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last mughal emperor Bahadur Shah Zafar family photo: इन दिनों मुगल शासक सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बने हुए हैं. NCERT की किताब से मुगलों के पाठ को हटाए जाने की बहस के बीच आखिरी मुगल शासक बहादुर शाह जफर (Bahadur Shah Zafar) के बेटों (जवान बख्त और मिर्जा शाह अब्बास) की तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहे हैं. इन तस्वीरों का इस्तेमाल अक्सर ऐसे मौके पर किया जाता है जहां पर मुगलों के आखिरी दौर या फिर उनकी दयनीय हालत को दिखाना होता है.
इन दोनों के आखिरी वक्त को बहुत याद किया जाता है. कहा जाता है कि इनकी मौत बेहद दर्दनाक और भयावह थी. कहा जाता है कि बहादुर शाह जफर ने जब अंग्रेजों को सरेंडर कर दिया था तो उसको रंगून (अब म्यामार) भेज दिया गया था. इस दौरान उसके साथ उसके दोनों बेटे भी थे.
एक खबर के मुताबिक जब बहादुर शाह जफर ने हुमायुं के मकबरे में पनाह ली हुई थी तो अंग्रेजों ने उनको चारों तरफ से घेर लिया था. जिसके बाद 20 सितंबर 1857 को जफर ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. यह ऑपरेशन मेडर विलियम हडसन के नेतृत्व में अंजाम दिया जा रहा था. इसी ऑपरेशन में जफर के परिवार के अन्य 16 लोगों को भी गिरफ्तार किया गया था. कुछ जानकारों का मानना है कि इन लोगों में बख्त और अब्बास भी शामिल थे.
हालांकि अंग्रेज यहीं नहीं रुके. उन्होंने फिर तीन शहजादों मिर्जा मुगल, मिर्जा खिज्र सुल्तान और जफर के पोते मिर्जा अबू बख्त के आत्मसमर्पण की मांग भी कर डाली. इन सभी को गिरफ्तार कर बैलगाड़ी के ज़रिए सख्त सिक्योरिटी के बीच दिल्ली गेट ले जाया गया. यहां हडसन ने उन तीनों को बैलगाड़ी से उतरने के लिए कहा. इसके बाद उसने उनके कपड़े उतारकर गोलियों से भून डाला. इतना ही नहीं उन्हें चांदनी चौक के एक कोतवाली के सामने कई दिनों तक लटकाए रखा. ताकि बाकी लोगों उनके खिलाफ आवाज़ ना उठाएं.
अपने वक्त में लोगों पर हुकूमत करने वाले मुगल शासकों की मौजूदा हालत जानने की कई कोशिशें की गई हैं. एक रिपोर्ट में पता भी चला था कि मुगले के वंशज बेहद गरीबी में झुग्गी झोपड़ी में अपनी जिंदगी गुजारने को मजबूर हो गए थे. रिपोर्ट में दावा किया गया था कि वो रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए पेंशन पर आधारित थे. उनको सरकारी नौकरी के बाद जो पेंशन मिलती थी सिर्फ उसी के साथ उनका गुजर बसर होता था.
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