Milkha Singh Bidathday: हिंदुस्तान के अज़ीम तरीन खिलाड़ियों में मिल्खा सिंह का शुमार किया जाता है. मिल्खा सिंह को आख़िर यूं ही तो फ्लाईंग सिख ऑफ़ इंडिया नहीं कहा जाता. आइए जानते हैं इस करिज़्माई खिलाड़ी की ज़िंदगी की रेस के बारे में. कहां हुई पैदाईश , कैसा था तमाम सफ़र.
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Milkha Singh Birthday: फ्लाईंग सिख ऑफ इंडिया के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह (Milkha Singh) ने दुनिया में भारत का नाम ऊंचा किया है. इन्होंने भारत के लिए कई रेस में हिस्सा लेकर कई तमगे जिताए. मिल्खा सिंह ने कई रिकॉर्ड क़ायम किए और कई अवॉर्डस भी अपने नाम किए हैं. मिल्खा सिंह के नाम एशियन गेम्स और कामनवेल्थ गेम्स में 400 मीटर रेस में गोल्ड जीतने का रिकार्ड है. अपने करियर के दौरान उन्होंने करीब 75 रेस जीतीं. ख़ास बात ये है कि आज मिल्खा सिंह का जन्मदिन है. इस मौके पर फ्लाईंग सिख मिल्खा सिंह जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें बताते हैं.
मिल्खा सिंह की पैदाईश 20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में हुई थी. भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान उनके माता-पिता, भाई और दो बहनों की मौत हो गई थी. आजादी के बाद भारत आने के बाद वो अपनी बहन के साथ रहते थे. मिल्खा सिंह कॉमनवेल्थ गेम्स में एथलेटिक्स में गोल्ड मेडल जीतने वाले वाहिद (एकमात्र) खिलाड़ी थे, हालांकि बाद में कृष्णा पूनिया ने कॉमनवेल्थ गेम्स में 2010 में डिस्कस थ्रो में गोल्ड मेडल हासिल किया था. इसके साथ ही मिल्खा सिंह ने 1958 और 1962 एशियन गेम्स को फ़तेह कर कॉन्टिनेंटल सतह पर अच्छी ख़ासी मक़बूलियत हासिल कर ली थी. लेकिन 1960 में ओलंपिक गेम्स की उस रेस को आज तक याद किया जाता है जिसमें वो ज़रा से फर्क की वजह से मेडल हासिल करने से चूक गए और चौथे मुक़ाम पर रहे.
मिल्खा सिंह ने 2 साल पहले ही 1958 में एशियन गेम्स में 400 मीटर रेस में गोल्ड मेडल जीत कर मुल्क की उम्मीदों को परवाज़ दे दी थी. लिहाज़ा 1960 के रोम ओलंपिक में पूरा मुल्क मिल्खा सिंह को ही देख रहा था. मिल्खा सिंह भी अपने मुल्क के लिए तारीख़ रक़म करने को बेक़रार थे और पूरे मुल्क में दुआओं का दौर जारी था लेकिन अफ़सोस कि महज़ 0.1 सेकंड के फ़र्क़ से मिल्खा सिंह मेडल हासिल करने से चूक गए जिसकी आज तक चर्चा की जाती है.
मिल्खा सिंह भले ही रोम ऑलंपिक्स में मेडल जीतने में नाकाम रहे हों लेकिन उन्होंने उस दिन लाखों लोगों का दिल जीत लिया था. साथ ही नेशनल रिकॉर्ड भी अपने नाम किया था, जो एक शानदार अचीवमेंट था. मिल्खा इस ओलंपिक में 400 मीटर की रेस में महज़ 0.1 सेकंड के फ़र्क़ से चौथे नंबर पर रहे. उन्हें 45.73 सेकेंड का वक्त लगा, जो 40 साल तक नेशनल रिकॉर्ड रहा. मिल्खा कई इंटरनेशनल टूर्नामेंट में भारत की नुमाईंदगी कर चुके हैं.
कॉमनवेल्थ खेलों में पहला गोल्ड 1958 में उड़न सिख मिल्खा सिंह ने ही कार्डिफ में दिलाया. मिल्खा सिंह को बेहतर प्रदर्शन के लिए 1959 में पद्म अवार्ड से सम्मानित किया गया है, और 2001 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड भी दिया गया, लेकिन उन्होंने इसे क़ुबूल नहीं किया. ओलंपिक गेम्स के अलावा मिल्खा सिंह ने कई मुक़ाबले अपने नाम किए. सच बात तो ये है कि मिल्खा सिंह ने ही भारतीय ट्रैक एंड फ़ील्ड का मुस्तक़बिल रौशन किया था. जून 2021 में 91 साल की उम्र में मुल्क़ के अज़ीम खिलाड़ी मिल्खा सिंह ज़िंदगी की रेस कोविड के सबब हार बैठे. इसी के साथ बारतीय खेल की दुनिया का एक बाब ख़त्म हो गया.
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