New Delhi: नए कानून में मुख्य चुनाव आयुक्त और दुसरे इलेक्शन कमीश्नरों की नियुक्ति वाले पैनल से भारत के चीफ जस्टिस को बाहर रखा गया है. कांग्रेस लीडर जया ठाकुर ने अपनी याचिका में उच्चतम न्यायालय से नए कानून पर रोक लगाने की मांग की थी.
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New Delhi: सुप्रीम कोर्ट आज यानी 12 जनवरी को चीफ इलेक्शन कमीशन और दूसरे चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति वाले नए कानून को चनौती देने वाली पिटीशनों पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. हालांकि, जस्टिस संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने इलेक्शन कमिश्नरों की नियुक्ति वाले नए कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है.
पिटीशनर ने दी ये दलील
नए कानून में मुख्य चुनाव आयुक्त और दूसरे इलेक्शन कमीश्नरों की नियुक्ति वाले पैनल से भारत के चीफ जस्टिस को बाहर रखा गया है. कांग्रेस लीडर जया ठाकुर ने अपनी याचिका में उच्चतम न्यायालय से नए कानून पर रोक लगाने की मांग की थी. पीठ ने उनकी तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने पिटीशन की एक प्रति केंद्र के वकील को देने को कहा. पिटीशनर के वकील ने अपनी दलील में कहा, "यह कानून 'शक्तियों के विकेंद्रीकरण के विचार के खिलाफ' है."
पीठ ने क्या कहा?
पीठ ने कहा, "वह कानून पर रोक नहीं लगा सकती, और इस मामले में केंद्र को नोटिस जारी करेगी." जस्टिस खन्ना ने कहा, "हम वैधानिक संशोधन पर रोक नहीं लगा सकते. जारी नोटिस पर अप्रैल 2024 तक जवाब दिया जा सकता है." ज्ञात हो कि सीईसी और इलेक्शन कमीशनरों को चुनने वाले पैनल से भारत के मुख्य न्यायाधीस को बाहर रखने को लेकर उपजे विवाद के बीच उच्चतम न्यायालय में कई याचिकाएं दायर की गई हैं.
नए कानून के तहत ये हुआ बदलाव
नए कानून के मुताबिक, चीफ इलेक्शन कमीश्नर और दूसरे चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति के जरिए एक चयन समिति की सिफारिश पर की जाएगी. पीएम इस समिति के अध्यक्ष होंगे. इसके दूसरे सदस्यों में लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष और प्रधानमंत्री के जरिए नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे.
वहीं विपक्ष का केंद्र सरकार पर इल्जाम है कि इलेक्शन कमीश्नर की नियुक्ति वाले पैनल से भारत के मुख्य न्यायाधीस को हटाकर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की गई है. बीते साल मार्च 2023 के अपने आदेश में, उच्चतम न्यायालय ने कहा था, "पीएम, लोकसभा में विपक्ष के लीडर और सीजेआई का पैनल सीईसी और इलेक्शन कमीश्नर का चुनाव करेंगे." हालांकि, केंद्र सरकार ने हाल ही में पार्लियामेंट में एक बिल लाकर इस कानून में संशोधन कर दिया गया, जिसमें भारत के चीफ जस्टिस को पैनल से बाहर रखा गया है.