Budget 2025: बजट में आम आदमी की व‍ित्‍त मंत्री से 5 बड़ी उम्‍मीदें, सरकार क‍िस पर करेगी ज्‍यादा फोकस?
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Budget 2025: बजट में आम आदमी की व‍ित्‍त मंत्री से 5 बड़ी उम्‍मीदें, सरकार क‍िस पर करेगी ज्‍यादा फोकस?

FM Nirmala Sitharaman Budget Speech: व‍ित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमण आज 11 बजे लोकसभा में बजट पेश करेंगी. इस बार म‍िड‍िल क्‍लास व‍ित्‍त मंत्री से काफी उम्‍मीद लगातार बैठी है. सरकार की तरफ से इकोनॉमी को रफ्तार देने के लि‍ए बड़े ऐलान क‍िये जा सकते हैं. 

Budget 2025: बजट में आम आदमी की व‍ित्‍त मंत्री से 5 बड़ी उम्‍मीदें, सरकार क‍िस पर करेगी ज्‍यादा फोकस?

Budget 2025 Expectations: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (FM Nirmala Sitharaman) आज अपना लगातार आठवां बजट पेश करने की तैयारी में हैं. बढ़ती महंगाई और कम होती जीडीपी ग्रोथ के बीच उम्‍मीद है क‍ि सरकार की तरफ से इकोनॉमी को बूस्‍ट देने के लि‍ए इस बार बड़े ऐलान क‍िये जा सकते हैं. उम्‍मीद की जा रही है म‍िड‍िल क्‍लास के हाथ में पैसा बढ़ाने के ल‍िए सरकार इनकम टैक्‍स में राहत देने के अलावा और भी ऐलान कर सकती है. इस बार का बजट धीमी आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने वाला और म‍िड‍िल क्‍लास पर दबाव को कम करने वाला हो सकता है.

मोरारजी देसाई के र‍िकॉड के करीब पहुंचेंगी सीतारमण

आज बजट भाषण को पूरा करने के साथ ही सीतारमण पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की तरफ से पेश किए गए 10 बजट के रिकॉर्ड के करीब पहुंच जाएंगी. देसाई ने 1959 और 1964 के बीच वित्त मंत्री के रूप में छह बजट पेश किए. इसके अलावा उन्‍होंने 1967 से 1969 तक चार और बजट पेश किए. पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम और प्रणब मुखर्जी ने अलग-अलग प्रधानमंत्री के कार्यकाल में क्रमश: नौ और आठ बजट पेश किए. हालांक‍ि, सीतारमण पीएम मोदी के कार्यकाल के तहत लगातार आठ बार बजट पेश करने का रिकॉर्ड बनाए रखेंगी. आइए जानते हैं व‍ित्‍त मंत्री की म‍िड‍िल क्‍लास की पांच बड़ी उम्‍मीदों के बारे में-

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1. महंगाई से राहत
देश के पर‍िवार रोजमर्रा की जरूरी चीजों पर ज्‍यादा खर्च कर रहे हैं, क्योंकि सब्‍जी, तेल और दूध के दाम बढ़ गए हैं. सब्‍ज‍ियों की कीमत खराब मौसम और लागत की वजह से बढ़ गई है. दूसरी तरफ तेल के दाम सरकार के टैक्स बढ़ाने के बाद बढ़े. दूध के दाम में भी लागत बढ़ने से इजाफा हुआ. हालांक‍ि, 25 जनवरी को अमूल जैसी सहकारी समितियों ने दूध की कीमत 1 रुपया प्रति लीटर घटाने के फैसले से आम आदमी को थोड़ी राहत म‍िली है. इसके अलावा घरों के बजट पर बिस्कुट और टॉयलेट्रीज जैसी पैक्ड फूड के बढ़ते दाम का भी असर पड़ा है, जिनमें से कई में पाम ऑयल का यूज होता है. कंपनियों ने पहले ही बढ़ती लागत के कारण दाम बढ़ाने की चेतावनी दी है. खाने के तेल पर इम्पोर्ट ड्यूटी कम करने से MRP कम करने में मदद म‍िलेगी और FMCG कंपनियों की लागत कम हो सकती है.

2. सैलरी हाइक की धीमी रफ्तार
नौकरीपेशा और खासकर जूनियर से मिड-लेवल अधिकारियों की तनख्वाह में धीमी बढ़ोत्तरी के कारण पिछले कुछ महीनों में खर्च करने की रफ्तार कम हुई है. ऐसे में उम्‍मीद की जा रही है क‍ि सरकार की तरफ से कुछ ऐसा कदम उठाया जा सकता है क‍ि ज‍िससे सैलरी हाइक में इजाफा हो. ब्रिटानिया की दूसरी तिमाही की कमाई के अनुसार शहरों में आधे से ज्‍यादा वर्कफोर्स वाले कर्मचारियों की तनख्वाह पिछले साल के 6.5% के मुकाबले महज 3.4% बढ़ी है. उद्योग संगठन फिक्की और स्टाफिंग कंपनी क्‍वेस कॉर्प की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 और 2023 के बीच, इंजीनियरिंग, मैन्युफैक्चरिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे सेक्टरों में सैलरी सालाना महज 0.8% बढ़ी, जबकि FMCG सेक्‍टर में सैलरी में 5.4% का हाइक आया. यह सब तब हुआ जब कंपनियों का मुनाफा बढ़ा ओर कम टैक्स और कोविड के बाद मांग में भी इजाफा हुआ.

3. इकोनॉम‍िक स्‍लोडाउन
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय का अनुमान है कि देश की इकोनॉमी 2024-25 में 6.4% की दर से बढ़ेगी, यह कोव‍िड महामारी के कारण हुई गिरावट के बाद सबसे धीमी गति होगी. धीमी वृद्धि का एक कारण वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्‍ट (कैप‍िटल एक्‍सपेंडीचर) पर सरकार का कम खर्च है. आमतौर पर, सरकारी खर्च बढ़ने से सीमेंट, स्टील और कंस्‍ट्रक्‍शन मशीनरी जैसे सामान की मांग बनती है, जिससे कारखानों की यूट‍िलाइजेशन कैप‍िस‍िटी बढ़ती है. जब ल‍िमि‍ट करीब 80% तक पहुंच जाती है तो कंपनियां आमतौर पर विस्तार करती हैं, जिससे मैन्युफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन में नौकरियां पैदा होती हैं. विकास और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से खर्च बढ़ाया जाना जरूरी है.

4. नौकर‍ियों के कम मौके
कोविड महामारी के दौरान, शहरों में नौकरियां छूटने के बाद लाखों लोग गांव वापस चले गए, जिससे खेती में काम करने वालों की संख्या बढ़ गई. हालांकि, ये पलायन पूरी तरह से वापस नहीं हुआ है, जिसका कारण शहरों में नौकरी के कम मौके और रहने का ज्‍यादा खर्च है. भले ही सरकारी आंकड़ों में औपचारिक क्षेत्र में रोजगार बढ़ने की बात कही गई है. लेकिन देश अभी भी workforce में शामिल होने वालों के लिए पर्याप्त नौकरियां पैदा करने के लिए संघर्ष कर रहा है. सरकारी इंफ्रास्ट्रक्चर खर्च बढ़ाने के अलावा, श्रम-प्रधान उद्योगों में प्राइवेट सेक्टर का निवेश जरूरी है.

5. टैक्‍स का बोझ कम करने की मांग
म‍िड‍िल क्‍लास के लोगों के लिए ज्‍यादा टैक्स का बोझ चुनौती बना हुआ है. केंद्र सरकार के पास अप्रत्यक्ष करों जैसे जीएसटी में बदलाव करने की सीमित क्षमता है, क्योंकि यह जीएसटी काउंस‍िल की तरफ से तय किया जाता है. फिर भी, जरूरी चीजों जैसे कि खाद्य तेल पर आयात शुल्क कम करके और पेट्रोलियम प्रोडक्‍ट पर टैक्स में कुछ राहत दी जा सकती है. म‍िड‍िल क्‍लास की इनकम टैक्स का बोझ कम करने की भी लंबे समय से मांग रही है, क्योंकि इससे उनके पास खर्च करने के लिए ज्‍यादा पैसे बचेंगे. 

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