EWS Quota Case Hearing: आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) को आरक्षण देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि आर्थिक रूप से पिछड़ापन कोई अस्थायी चीज नहीं है.
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Supreme Court on EWS Reservation: सुप्रीम कोर्ट ने गरीबी को 'अस्थायी' करार देते हुए बड़ी टिप्पणी की है. कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि उच्च जातियों के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण देने के बजाय 'शुरुआती स्तर' पर ही छात्रवृत्ति जैसे विभिन्न सकारात्मक उपायों के जरिए बढ़ावा दिया जा सकता है. शीर्ष अदालत ने कहा कि आरक्षण शब्द के सामाजिक और वित्तीय सशक्तीकरण के संबंध में भिन्न-भिन्न निहितार्थ हैं और यह (आरक्षण) उन वर्गों के लिए होता है जो सदियों से दबे-कुचले होते हैं.
कोर्ट ने छात्रवृत्ति और मुफ्त शिक्षा का दिया सुझाव
चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित (CJI UU Lalit) की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि सदियों से जाति और आजीविका के कारण प्रताड़ित लोगों को आरक्षण दिया जाता रहा है और सरकार ‘आरक्षण (Reservation)’ के मसले में फंसे बिना अगड़ी जातियों में ईडब्ल्यूएस समुदाय को छात्रवृत्ति और मुफ्त शिक्षा जैसी सुविधाएं दे सकती थी.
पीठ ने कहा, 'जब यह अन्य आरक्षणों से संबंधित है, तो यह वंश परंपरा से जुड़ा हुआ है. यह पिछड़ापन कोई अस्थायी चीज नहीं है. बल्कि, यह सदियों और पीढ़ियों तक चलता रहता है, लेकिन आर्थिक पिछड़ापन अस्थायी हो सकता है.' संविधान पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला भी शामिल थे. संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई 27 सितंबर को जारी रखेगी.
सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने दिया जवाब
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (SG Tushar Mehta) ने 103वें संविधान संशोधन का बचाव करते हुए कहा कि सामान्य वर्ग के ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत कोटा एससी, एसटी और ओबीसी के लिए उपलब्ध 50 प्रतिशत आरक्षण से छेड़छाड़ किए बिना दिया गया है. उन्होंने आगे कहा कि संवैधानिक संशोधन के निर्णय की संसदीय बुद्धिमता को रद्द नहीं किया जा सकता, बशर्ते यह स्थापित किया जाए कि संबंधित निर्णय संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है.
संविधान एक स्थिर सूत्र नहीं: सॉलिसिटर जनरल
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जब किसी वैधानिक प्रावधान को चुनौती दी जाती है, तो अक्सर कहा जाता है कि यह संविधान के एक विशेष अनुच्छेद का उल्लंघन करता है. लेकिन, यहां संसद ने संविधान में एक प्रावधान शामिल किया है और इसलिए इसकी वैधता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि संविधान एक स्थिर सूत्र नहीं है और संसद हमेशा राष्ट्र की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निर्णय ले सकती है और अगर एससी, एसटी और ओबीसी के लिए कोटे में खलल डाले बिना कुछ कार्रवाई की गई है, तो इसे निरस्त नहीं किया जा सकता है.
ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत आरक्षण के लिए आय
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (SG Tushar Mehta) ने सुनवाई के शुरू में कहा कि संसद द्वारा अपनी शक्तियों का प्रयोग करके किए गए संवैधानिक संशोधन ने उन लोगों का काम मुश्किल बना दिया है, जो इसे किसी अन्य कानून की तरह चुनौती दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि विस्तृत अध्ययन के बाद ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत आरक्षण के अधिकार के लिए सालाना आठ लाख रुपये की आय का आंकड़ा निकाला गया है.
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