DNA: जामा मस्जिद की फाइल कहां गई, राष्ट्रीय धरोहर घोषित क्यों नहीं किया गया?
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DNA: जामा मस्जिद की फाइल कहां गई, राष्ट्रीय धरोहर घोषित क्यों नहीं किया गया?

National Heritage: सच तो ये है कि जामा मस्जिद संरक्षित इमारत घोषित कर दी गई, तो कई लोगों की राजनीतिक दुकानें बंद हो जाएंगी. यही नहीं जामा मस्जिद को निजी संपत्ति समझने वाले शाही इमामों की दुकानें भी बंद हो जाएंगी. ASI के संरक्षण के बाद जामा मस्जिद एक धार्मिक इमारत बनकर रहेगी जहां प्राइवेट और राजनीति तकरीरें बंद हो जाएंगी.

DNA: जामा मस्जिद की फाइल कहां गई, राष्ट्रीय धरोहर घोषित क्यों नहीं किया गया?

Jama Masjid News: क्या आपने कभी सोचा है कि दिल्ली की जामा मस्जिद को राष्ट्रीय धरोहर घोषित क्यों नहीं किया गया? देखा जाए तो जामा मस्जिद को वर्ष 1656 में शाहजहां ने बनवाया था. ये मस्जिद करीब 368 वर्ष पुरानी है. ऐसे में ASI को उसे अपने संरक्षण में लेना चाहिए था. लेकिन जामा मस्जिद को ऐतिहासिक धरोहर बनने से रोकने के लिए एक बड़ी साजिश की गई थी. इस साजिश में देश के कुछ टॉप मोस्ट लोग शामिल थे. कुछ खास लोगों ने ASI पर दबाव बनाया, कि वो जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत ना बनाए. इसका नतीजा ये है कि आज जामा मस्जिद एक प्राइवेट प्रॉपर्टी के तौर पर इस्तेमाल की जाती है.

असल में इस मुद्दे को लेकर पिछले कई वर्षों से दिल्ली हाईकोर्ट में घमासान मचा हुआ है. आज इसको लेकर एक महत्वपूर्ण बात सामने आई. कोर्ट ने ASI से वो पत्र मांगा, जिसमें जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित ना करने के लिए कहा था. ASI का कहना है कि वो पत्र गायब हो गया है. दरअसल ये पत्र देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ASI को लिखा था.

एक बड़ा खेल रचा गया?

जामा मस्जिद को राष्ट्रीय धरोहर बनने से रोकने की साजिश में किसने, किसको क्या लिखा. इस इमारत को देश की सबसे बड़ी मस्जिद का तमगा हासिल है. ये है दिल्ली की जामा मस्जिद. मुगलकालीन इस इमारत को शाहजहां ने बनवाया था, लेकिन जब इसको राष्ट्रीय धरोहर बनाने का वक्त आया, तो एक बड़ा खेल रचा गया. इस खेल में मौलाना, पूर्व प्रधानमंत्री और ASI तीनों शामिल थे.

ये कोई नहीं जानता कि ऐसा क्यों किया गया. लेकिन आज स्थिति ये है कि ये मुगलकालीन इमारत शाही इमामों की प्राइवेट प्रॉपर्टी बन गई है. इसीलिए जामा मस्जिद को ऐतिहासिक धरोहर घोषित करने की कवायद, कई वर्षो से चल रही है.

दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले की याचिका पर ASI से सवाल जवाब किए गए, तो उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक पत्र का हवाला दिया. जामा मस्जिद को ऐतिहासिक धरोहर घोषित नहीं किया जा सकता. भले ही ASI के पास दस्तावेज ना हों, लेकिन जी न्यूज की पड़ताल में, हमें वो सारे पत्र मिल गए, जिसमें मौलाना सैयद अहमद शाह बुखारी और पीएम मनमोहन सिंह की बातचीत है. जामा मस्जिद को ASI संरक्षण से दूर रखने की साजिश की पहल मौलाना बुखारी ने ही की थी.

10 अगस्त 2004 को ये पत्र सैयद अहमद बुखारी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखा था. इसमें उन्होंने जामा मस्जिद के रखरखाव के लिए ASI को निर्देश देने की अपील की थी. इसके अलावा उन्होंने लगभग चेतावनी भरे लहजे में कहा था, कि अगर जामा मस्जिद को ASI के संरक्षण में दिया गया, तो देश में बवाल खड़ा हो जाएगा. इस पत्र के जरिए मौलाना बुखारी, देश के पूर्व प्रधानमंत्री को धमकी देते हुए नजर आए

बुखारी साहब ने, इस पत्र के जरिए ये भी कहा,कि जामा मस्जिद के रखरखाव का खर्चा वो सरकार से ही लेंगे, लेकिन जामा मस्जिद को राष्ट्रीय धरोहर नहीं बनने देंगे. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसको लेकर ASI को एक पत्र लिखा. जिसके बाद, उन्होंने बुखारी को उनके पत्र का जवाब दिया.

20 अक्टूबर 2004 को लिखे गए इस पत्र में मनमोहन सिंह ने बुखारी से कहा, कि उन्होंने ASI को जामा मस्जिद के रिपेयर वर्क के लिए कह दिया है. और ये भी तय कर दिया गया है कि जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित नहीं किया जाएगा. अब इसमें पेंच ये है कि जिस समय मनमोहन सिंह ने आदेश दिया था, उस वक्त मामला कोर्ट में विचाराधीन था. यही नहीं ASI के पास मनमोहन सिंह का वो पत्र भी नहीं है, जिसमें उन्होंने ASI को किसी तरह के निर्देश दिए हों. अगली सुनवाई में ASI को मनमोहन सिंह का वो पत्र कोर्ट में पेश करना है.

अरविंद सिंह के साथ शिवांक मिश्रा, जी मीडिया

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