Allahabad High Court News: वैसे तो कलयुग ही चल रहा है लेकिन एक बुजुर्ग कपल की कानूनी लड़ाई के बारे में जानकर कोर्ट को कहना पड़ा कि साफ है कि कलयुग चल रहा है. इधर दिल्ली हाई कोर्ट ने पत्नी को 'परजीवी' कहने पर सख्त नाराजगी जताई है. पढ़िए दोनों मामले.
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Husband Wife Fight in High Court: 75 से 80 साल के एक बुजुर्ग कपल में कानूनी लड़ाई चल रही है. मामला गुजारा भत्ते को लेकर है. इलाहाबाद हाई कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई थी. एक समय ऐसा आया जब कोर्ट को कहना ड़ा कि इससे जाहिर होता है कि कलयुग आ चुका है.
दरअसल, फैमिली कोर्ट का फैसला पत्नी के पक्ष में आया था. इसके खिलाफ अलीगढ़ के रहने वाले मुनेश कुमार गुप्ता हाई कोर्ट पहुंच गए. कोर्ट ने कहा कि उसे उम्मीद है कि सुनवाई की अगली तारीख तक दंपति किसी समझौते पर पहुंच जाएंगे. न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने कहा कि कानूनी लड़ाई चिंता का विषय है. उन्होंने दंपति को सलाह देने का भी प्रयास किया.
मुनेश गुप्ता की पत्नी ने उनसे गुजारा भत्ता मांगा था और फैमिली कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया. पति ने आदेश को चुनौती दी और पत्नी को नोटिस जारी करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि उसे उम्मीद है कि वे सुनवाई की अगली तारीख तक एक समझौते पर पहुंच जाएंगे.
'पत्नी को 'परजीवी' कहना पूरी महिला जाति का अपमान है'
उधर, दिल्ली हाई कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में कहा है कि पत्नी के जीविकोपार्जन के लिए सक्षम होने की वजह से पति उसे भरण-पोषण राशि देने से मुक्त नहीं हो जाता. अदालत ने यह भी कहा कि पत्नी को 'परजीवी' कहना उसके साथ-साथ पूरी महिला जाति का अपमान है. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने निचली अदालत द्वारा पत्नी को भरण-पोषण देने के निर्देश के खिलाफ पति की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि भारतीय महिलाएं परिवार की देखभाल करने, अपने बच्चों की जरूरतों को पूरा करने और अपने पति तथा उसके माता-पिता की देखभाल करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ देती हैं.
दूसरी महिला के साथ रह रहा पति
याचिकाकर्ता पति के बारे में कहा जा रहा है कि उसने अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़ दिया है और वह दूसरी महिला के साथ रह रहा है. निचली अदालत ने याचिकाकर्ता पति को अपनी पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 30,000 रुपये प्रतिमाह देने का आदेश दिया था, साथ ही उसे मानसिक यातना, अवसाद और भावनात्मक पीड़ा आदि के लिए पांच लाख रुपये देने का आदेश दिया था. निचली अदालत ने उसे अपनी पत्नी को मुआवजे के तौर पर तीन लाख रुपये का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया था, जिसमें मुकदमेबाजी की लागत के रूप में 30,000 रुपये शामिल हैं.
पति की दलील
याचिकाकर्ता ने निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में दलील दी कि उसकी पत्नी एक सक्षम महिला है, जो एक बुटीक में काम करती है और इसलिए उसे कानून का दुरुपयोग करके ‘परजीवी’ बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती.
न्यायमूर्ति प्रसाद ने निचली अदालत के निर्देशों में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और कहा कि पत्नी के कमाने में सक्षम होने का तथ्य उसके (पत्नी के) लिए परेशानी का सबब नहीं हो सकता. उन्होंने हाल ही में दिए गए आदेश में कहा है कि याचिकाकर्ता की वित्तीय स्थिति और संपत्ति का ब्योरा ‘आरामदायक और समृद्ध जीवन शैली’ को दर्शाता है, इसलिए वह (याचिकाकर्ता) भरण-पोषण के रूप में 30,000 रुपये प्रतिमाह देने की स्थिति में है.
जज साहब ने सुनाया
न्यायमूर्ति प्रसाद ने आगे कहा, ‘प्रतिवादी (पत्नी) को अपना वैवाहिक घर छोड़ना पड़ा, क्योंकि वह इस तथ्य को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी कि उसका पति किसी दूसरी महिला के साथ रह रहा है.’ उन्होंने कहा, ‘कोई भी महिला यह बर्दाश्त नहीं कर सकती कि उसका पति किसी दूसरी महिला के साथ रह रहा हो और उस महिला से उसका बच्चा भी हो.' अदालत ने कहा, ‘ये सभी तथ्य प्रतिवादी/पत्नी को घरेलू हिंसा का शिकार बनाते हैं.’ (एजेंसी, फोटो- lexica AI)