Laxman Singh Tweet On Heeralal: कांग्रेस विधायक और आदिवासी नेता हीरालाल अलावा को रायपुर अधिवेशन में शामिल नहीं करने पर दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह ने सोशल मीडिया पर खुलेआम पार्टी को नसीहत दी है.
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प्रमोद शर्मा/भोपाल: रायपुर में कांग्रेस अधिवेशन (Congress session in Raipur) की तैयारियों में कांग्रेस पार्टी जुटी हुई है. कल आईसीसी ने रायपुर अधिवेशन के लिए मध्य प्रदेश के नेताओं की सूची जारी की है. बता दें कि सूची जारी होने के बाद भाजपा ने पहले कांग्रेस पर निशाना साधा है और अब दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह (Digvijay Singh 's Brother Laxman Singh) ने भी इसे लेकर सवाल खड़ा किया है और कहा है कि मेरी जगह हीरालाल अलावा को बुलाया जाए.
मेरे स्थान पर हीरा अलावा को आमंत्रित किया जाए
दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह ने कहा कि कांग्रेस ने अपने अधिवेशन से अलावा को अलग रखा. मेरी जगह हीरालाल अलावा को बुलाया जाय वो बड़े आदिवासी नेता हैं. कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर ट्वीट करते हुए लिखा, 'रायपुर में हो रहे अधिवेशन में मेरे स्थान पर हीरा अलावा को आमंत्रित किया जाए. वो एक बड़े आदिवासी नेता हैं,उनके सहयोग से पहले भी सरकार बनी थी और अभी भी बनेगी.' गौरतलब है कि हीरालाल अलावा को कांग्रेस ने अपने अधिवेशन में नहीं बुलाया है. जिसके बाद ये सवाल उठने लगे हैं कि क्या हीरालाल अलावा और कांग्रेस में बीच सब कुछ ठीक नहीं हैं? क्या हीरालाल का इंडिपेंडेंट चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद कांग्रेस और जयस में दरार आ गई है?
मप्र की राजनीति में अनुसूचित जनजाति क्यों है महत्वपूर्ण ?
बता दें कि कांग्रेस विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह ने पार्टी को सोशल मीडिया पर खुलेआम नसीहत देना बहुत ही महत्वपूर्ण है. गौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी के विधायक हीरालाल अलावा , एमपी के सबसे बड़े आदिवासी संगठन जयस के संरक्षक हैं और उनको कांग्रेस पार्टी द्वारा अपने रायपुर में हो रहे अधिवेशन से उनको पृथक करने का प्रभाव विधानसभा चुनाव में पड़ सकता है.
मध्यप्रदेश की बात करें तो प्रदेश में पूरे देश में सबसे ज्यादा आदिवासियों की संख्या (Population of tribals in Madhya Pradesh) है और इनका प्रतिशत प्रदेश में करीब 22% है. वर्तमान में विधानसभा में 47 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व (ST reserved seats in MP) हैं और पिछले कई चुनावों में ये चीज देखी गई है कि जिसने आदिवासी रिजर्व सीटों पर सबसे ज्यादा सीटें जीती हैं, उसी की सत्ता राज्य में बनी है. 2003 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी को 41 में से 37, 2008 में 47 में से 29 और 2013 में 47 में से 31 आदिवासी रिजर्व सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी. जिसके बाद तीनों विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी की सरकार बनी.हालांकि, 2018 में बीजेपी को मात्र 47 में से 16 सीटें जीत पाई थी. जिसके बाद वह राज्य की सत्ता से बाहर हो गई और कांग्रेस की कई सालों बाद राज्य में वापसी हुई थी. इसी के चलते आदिवासियों को कोई भी दल नाराज नहीं करना चाहता और दिग्विजय सिंह छोटे भाई लक्ष्मण सिंह पार्टी को यह सलाह दी है.