Mother's Day Special: मांडल निवासी एक महिला के साथ हुआ, जो अपने नवजात शिशु के जन्म के बाद करीब तीन दिन तक अपना दुग्ध नहीं पिला पाई. रक्षा जैन ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उनके जीवन में ऐसा मोड़ भी कभी आयेगा. 7 माह में 54 लीटर दुग्धदान किया. दूसरी बार में 46 लीटर भीलवाड़ा सहित अन्य जगहों में जाकर 55 लीटर दुग्ध दान कर चुकी है.
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Mother's Day Special, Bhilwara News: खुद के बच्चे को तीन दिन मां का दुग्ध नहीं दे पाई तो आंचल मदर मिल्क का सहारा लिया, तब से निश्चय कर दुग्ध्दान करना शुरू किया. पहली बार में किराए के वाहन की मदद से मांडल से भीलवाड़ा आकर 7 माह में 54 लीटर दुग्धदान किया. जो की इंडियन अवार्ड बुक के 40 लीटर से भी अधिक था, दूसरी बार में 46 लीटर भीलवाड़ा सहित अन्य जगहों में जाकर 55 लीटर दुग्ध दान कर चुकी.
नवजात शिशु को अगर उसकी मां का दुग्ध नहीं मिल पाए और भूख से तड़पने से उसकी जान हलक में अटक जाए तो उस मां पर क्या गुजरती होगी ये दर्द एक मां ही समझ पाती है.ऐसे में अगर किसी को कोई मदद की राह मिले तो वो कारवां बनते देर नहीं लगता. ऐसा ही वाक्या क्षेत्र की मांडल निवासी एक महिला के साथ हुआ, जो अपने नवजात शिशु के जन्म के बाद करीब तीन दिन तक अपना दुग्ध नहीं पिला पाई और बच्चे को तड़पते देख मानो उसकी जान निकल जाने जैसा दृश्य देखना पड़ता था.
जब जानकारी मिली की आंचल मदर मिल्क बैंक से अन्य किसी मां द्वारा दान किया गया दुग्ध उसे मिल सकता है तो वहां से मदद लेकर नवजात शिशु की जान बचाई. इसके बाद ये मन में ठान ली की अब कोई बच्चा मां के दुग्ध के अभाव से बिलखेगा नहीं और मांडल के किशन लाल- शारदा देवी जैन की पुत्री रक्षा जैन ने एक ऐसे संकल्प को लेकर मन में ठान कर मिशन बना लिया.
जिस विषय समाज के पुरूष तो क्या हर वो महिला जो अपने आप को मां कहती है जिसमे हर वो पढ़ी लिखी महिलाएं भी शामिल हैं, ऐसे में रक्षा जैन अपने दुग्ध का दान पूर्व में प्रथम प्रसव के दौरान सात महीनों में चौवन लीटर और अब दूसरे प्रसव के दौरान 46 लीटर भीलवाड़ा और अन्य जगहों को मिलाकर 55 लीटर और कुल 109 लीटर दुग्ध दान कर चुकी है और ये करवा अब तक जारी हैं। और ये दान महज इसलिए किया ताकि उन अनाथ शिशुओं, व उन शिशुओं को जिनकी मां के दूध नहीं बन पाता, उनको पोषण के लिए दूध मिल सके और उनका जीवन बच सके।
मांडल जैसे कस्बे में 2 सितंबर 1990 को जन्मी रक्षा जैन ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उनके जीवन में ऐसा मोड़ भी कभी आयेगा मगर नियति को कुछ अलग ही मंजूर था. इनकी शादी के लगभग सवा बरस बाद 17 जून 2018 को महात्मा गांधी अस्पताल में पुत्र का जन्म दिया. मगर स्थिति यह हो गई थी कि प्रसव के तीन दिन तक इनके सीने में दूध नहीं उतरा. अब बच्चे का पोषण कैसे हो ? इन तीन दिनों तक रक्षा जैन के बेटे को अस्पताल की यशोदाओं द्वारा ''आँचल मदर मिल्क बैंक'' से उसको दूध दिया जाता था.
जब पहली बार इनके दूध बनना शुरू हुआ तो यशोदाओं ने बताया कि उन्हे भी संकल्प लेना चाहिए कि जिस किसी मां के दूध से आपका बच्चा जीवित रहा है, आपको भी ऐसे ही किन्ही बच्चों की रक्षा के लिए दुग्धदान करना चाहिए. इसके अगले दिन 20 जून 2018 से ही इन्होने आँचल मदर मिल्क बैंक में दुग्धदान शुरू कर दिया.
चौथे दिन जब रक्षा जैन के सीने पर मशीनें लगाई तो खुशी की बात कि अब पर्याप्त दूध बनने लग गया था. यह क्रम अब लगातार जारी रहने लगा. रक्षा अस्पताल से डिस्चार्ज होकर अपने घर मांडल आ गई मगर इन्हें दुग्धदान के लिए वापस रोजाना भीलवाड़ा आना पड़ता था. इनके पिता 7000 रूपये की साधारण प्राईवेट नौकरी करने वाले और भीलवाड़ा रोज आने जाने का टैक्सी भाड़ा रोजाना सात सौ रूपये भला कैसे वहन करते. घर में कार जैसा कोई चौपहिया वाहन भी नहीं कि उससे आकर दुग्धदान कर दे. मगर संकल्प की धनी रक्षा ने रोजाना सात सौ रूपये का किराया चुका कर भी लगातार पच्चीस दिन तक दुग्धदान को जारी रखा.
हालांकि टैक्सी का रोजाना सात सौ रूपये का भाड़ा इनके लिए बहुत भारी पड़ रहा था, मगर ऐसे में एक रोज घनघोर बरसात हो रही थी. इनके पिता ने बहुत से टैक्सी वालों को कहा जाने के लिए पर कोई भी भीलवाड़ा जाने को तैयार नहीं था. इधर, दुग्धदान नहीं होने के कारण रक्षा के सीने में भारीपन होने लगा, शरीर ऐंठने लगा, पीड़ा असहनीय होने लगी, पूरा शरीर कष्ट से तड़पने लगा.
आखिर ऐसे में मरता क्या न करता. रक्षा ने आव देखा ना ताव और अपनी स्कूटी निकाली और चल पड़ी भरी बरसात में मांडल से भीलवाड़ा दुग्धदान के लिए. एक तरफ असहनीय दर्द और उस पर इंद्र देव का कहर इस बीच बरसात में भीगी रक्षा को जब मिल्क बैंक में यशोदाओं ने देखा तो आश्चर्य में पड़ गई और डांटा भी कि ऐसे में यदि आप बीमार पड़ गयी तो परिवार और आपकी परेशानियां ओर बढ़ जाएगी.
अपने मां बाप के इकलौती संतान रक्षा के जज्बे के सामने माता पिता भी नतमसस्तक थे. उस दिन उन्होंने यशोदाओं से माफी मांगी कि भविष्य में वो बरसात और स्वयं के साथ बच्चे के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखेगी. इस रोजमर्रा की दिनचर्या की वजह से परिवार पर आर्थिक संकट मंडराने लगा और जब टैक्सी का किराया परिवार के लिए भारी पड़ने लगा तो इन्होंने अपने एक माह बच्चे के लिए केरिकोट खरीदा ताकि स्कूटी चलाते वक्त बेटे को सीने के बांधकर अपने साथ आँचल मदर मिल्क बैंक में दुग्धदान के लिए मांडल से आ जा सके.
जब लगा कि इस कार्य का विस्तार करना चाहिए तो विभिन्न समाज से मिलकर एक संस्था लाइफ वेलफेयर सोसायटी पिंक स्क्वेड के नाम से एक संस्था बनाई.
शुरुआत में महिलाओं को जुड़ने में काफी संकोच हुआ करता था लेकिन कहते है ना कि हम चलते गए कारवां बनता गया और इस सफर में सहयोगी बने रक्षा धर्म भाई राहुल सोनी की मदद से प्रदीप सिंह लूणावत, कमल हेमनानी, मीरा मखीजा, शिखा नवल जागेटिया, जहान्वी तनवानी, मधुबाला यादव पूजा खोतानी जैसे लोग साथ जुड़े ओर देखते ही देखते 20 महिलाओं का एक कारवां बन गया.
हालांकि इस मिशन के लिए पुरस्कार कोई मायने नहीं रखते. ये जो मशाल हाथ में थाम चली है वो कईं सम्मान के ऊपर है. मगर फिर भी इनके अतुल्य सहयोग के लिए अनेक संस्थाएं इनका सम्मान कर चुकी है. रक्षा जैन के इस अदम्य साहस और पहल के लिए उसी वर्ष जिला कलक्टर राजेन्द्र जी भट्ट द्वारा सम्मानित किया गया था.
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मेडिकल कॉलेज प्रिंसिपल राजन नंदा ओर पीएमओ अरुण गोड ने जब विश्व स्तनपान सप्ताह पर जब महात्मा गांधी चिकित्सालय में जब सम्मानित कर रहे थे, तब रक्षा जैन ने कहा कि एक ही रक्षा का कब तक सम्मान करोगे. मुझे लगता है अब और रक्षा सामने आनी चाहिए तो उसी दिन अधिकारियों से अनुमति लेकर 10 जनवरी 2020 को श्री स्व.ओमप्रकाश छतवानी की पुण्यतिथि पर एक विशाल यशोदा सम्मान समारोह का आयोजन किया गया.
जिसमें 22 दुग्ध्दान दाता महिलाओं का सम्मान किया गया. इस कार्यक्रम के साक्षी बने मदर मिल्क बैंक के नोडल ऑफिसर डॉ राजा चांवला जयपुर ओर हर समाज व संगठन की महिलाएं व पुरुष जिन्होंने इस कार्यक्रम का हिस्सा बन कर इस कार्यक्रम को विशाल रूप दिया.
जिस तरह जीवन में ब्लड का महत्व होता है ठीक उसी तरह नवजात शिशुओं के लिए मां के दूध का होता है। एक मां दूध में वह संपूर्ण पोषण होता है जो बच्चे के लिए आवश्यक हो. मगर यह भी होता है कि यदि किसी नवजात की मां की मृत्यु हो जाए या किसी मां के दूध ही नहीं बने या कोई बच्चा लावारिश हो, उन शिशुओं की पोषण के अभाव में मृत्यु हो सकती है.
ऐसे मेे ब्लड की तरह ही एक स्तनपान कराने वाली मां यदि अपने अतिरिक्त दुग्ध को दान कर दे तो वह दुग्ध किसी न किसी शिशु की जान बचा सकता है.
एक शिशु को लगभग 30 मिली० दुग्ध की आवश्यकता होती है. एक मां अपना अतिरिक्त दूध यदि इस प्रकार मदरमिल्क बैंक में जाकर दान कर दे तो उस दूध में बैंक में -20 डिग्री तापमान पर रखा जाता है जो छ: माह तक सुरक्षित रहता है पोषण के लिए.
बेटे श्रेष्ठ को भी सारा श्रेय जाता है
सभी झंझटों को पार करके अपनी डगर बढ़ते रहने का श्रेय अपने उस बेटे श्रेष्ठ को देती है जिसके कारण वो दुग्धदान जैसे विषय को जी पा रही हैं. स्वयं रक्षा जैन के अपने शब्दों यह पंक्ति बार बार कहती हैं, "लोग कहते है बेटा बड़ा होकर नाम करेगा लेकिन मेरे श्रेष्ठ ने तो जन्म के साथ ही माता पिता का नाम रोशन कर दिया."
दुग्धदान भले ही महिला से संबधित है पर बिना पुरूषों और पारिवारिक सहयोग और सकारात्मक भाव के यह काम संभव नहीं हैं. रक्षा जैन बताती है कि इसमें ससुराल पक्ष का सहयोग अहम रहता है क्योंकि दुग्धदान शादी के बाद ही होता है इस कारण परिवार के सदस्य यथा सास, ननद, देवरानी, बुआ,जेठानी का सहयोग और मानसिक संबल होना बहुत जरूरी है.
रक्षा जैन बताती है कि यह काम कोई कठिन नहीं है और स्वास्थ्य के लिए भी कोई प्रतिकूल असर डालने वाला नहीं है. सिर्फ समाज को अपना नजरिया बदलना है थोड़ा जागरूक रहना है. रक्तदान की तरह ही यह दान ही है जो किसी शिशु के लिए जीवन का काम करता है। हमें महिलाओं की सोच में सकारात्मकता लानी है.
यद्यपि हर बदलाव का शुरू शुरू में विरोध होता है मगर हमारे इरादे मजबूत हों तो राहें आसान हो जाती है. ऐसे मिशन में परिवार के अन्य सदस्यों का सकारात्मक और मानसिक सहयोग बहुत आवश्यक है. साथ ही इसमें पुरूषों के बिना सहयोग के इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सकता.
रक्षा जैन ने बताया कि उनके पति सुनील जैन के सहयोग के बिना वह लगातार नौ माह तक लगातार दुग्धदान करना संभव ही नहीं था. चाहे अस्पताल लाना ले जाना हो चाहे घरेलू काम में हाथ बटाना हो बिना पुरूषों के आसान नहीं है. पुरूषों का दायित्व है कि दुग्धदान के लिए महिलाओं को बताएं, उनको प्रेरित तो करें ही साथ ही औरतों का मनोबल भी बढ़ाएं.