Jaipur: राजस्थान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सवाई मानसिंह अस्पताल में हाल ही में पहला स्टेम सेल ट्रांसप्लांट किया गया. इस ट्रांसप्लांट के बाद उन मरीजों के लिए एक उम्मीद की किरण दिखाई दी है. जो ब्लड कैंसर और थैलेसीमिया जैसी बीमारी से जूझ रहे हैं.
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Jaipur: राजस्थान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सवाई मानसिंह अस्पताल में हाल ही में पहला स्टेम सेल ट्रांसप्लांट किया गया. इस ट्रांसप्लांट के बाद उन मरीजों के लिए एक उम्मीद की किरण दिखाई दी है. जो ब्लड कैंसर और थैलेसीमिया जैसी बीमारी से जूझ रहे हैं. आमतौर पर इस बीमारी के इलाज में लाखों रुपए का खर्चा आता है लेकिन एसएमएस में यह ट्रांसप्लांट चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत किया गया. ऐसे में जो बच्चे ब्लड कैंसर या फिर थैलेसीमिया जैसी बीमारी से जूझ रहे हैं उनके रोग का निदान आसानी से हो सकेगा.
हाल ही में जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में एक बच्चे का स्टेम सेल ट्रांसप्लांट किया गया और यह सेल उसकी 11 वर्षीय बड़ी बहन द्वारा डोनेट किया गया. एसएमएस अस्पताल के डिपार्टमेंट ऑफ ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ अमित शर्मा का कहना है कि स्टेम सेल ट्रांसप्लांट इन मरीजों के लिए लाभदायक है जो थैलेसीमिया या फिर ब्लड कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रहे हैं.
यदि इन दोनों बीमारियों को प्रारंभिक स्टेज में ही पहचान लिया जाए तो उनका बोन मैरो या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के माध्यम से इलाज किया जा सकता है, ऐसे में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के बाद मरीज को अन्य किसी ट्रीटमेंट की आवश्यकता नहीं होती. डॉक्टर शर्मा का कहना है कि आमतौर पर ब्लड कैंसर में बोन मैरो से ब्लड का बनना बंद हो जाता है इसके बाद मरीज के स्वास्थ्य में लगातार गिरावट होने लगती है, ऐसे मे स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के माध्यम से इस तरह के मरीजों को ठीक किया जा सकता है और हाल ही में एसएमएस अस्पताल में पहला स्टेम सेल ट्रांसप्लांट किया गया है.
ब्लड कैंसर से जूझ रहे मरीज के स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के लिए सबसे पहले डोनर की आवश्यकता होती है, जिसके बाद दोनों को चिकित्सकों द्वारा लगभग 5 दिनों तक कुछ दवाइयां दी जाती है. जिसके बाद डोनर के बोन मैरो से मल्टीपल स्टेम सेल्स बनना शुरू हो जाती है जिसके बाद चिकित्सक उपयोगी स्टेम सेल्स को पहचान कर उसे रक्त से अलग करते हैं यह पूरी प्रक्रिया एक मशीन द्वारा की जाती है और डोनर को किसी तरह का कोई दर्द इस दौरान नहीं होता. इस पूरी प्रक्रिया को करने में करीब 3 से 4 घंटे का समय लगता है. डोनर द्वारा डोनेट द्वारा जो ब्लड एकत्रित किया जाता है उसमें से स्टेम सेल्स को अलग कर लिया जाता है. इसके बाद इन सेल्स को मरीज के शरीर में ट्रांसफ्यूज किया जाता है.मामले को लेकर डिपार्टमेंट ऑफ ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन की सहायक आचार्य डॉक्टर सरिता शर्मा का कहना है कि स्टेम सेल्स ट्रांसप्लांट के लिए ब्लड बैंक को लाइसेंस की आवश्यकता होती है और ट्रॉमा सेंटर में स्थित ब्लड बैंक को हाल ही में लाइसेंस जारी किया गया है.
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जिसके बाद स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया अब धीरे-धीरे शुरू हो सकेगी इसके अलावा जल्द ही कैंसर इंस्टीट्यूट और sms अस्पताल में स्थित ब्लड बैंक को भी लाइसेंस जारी कर दिया जाएगा.आमतौर पर स्टेम सेल ट्रांसप्लांट से पहले ब्लड कैंसर से पीड़ित मरीजों का इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए किया जाता था लेकिन अब पेरीफेरल स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के जरिए इस तरह के मरीजों का इलाज किया जाता है. डॉक्टर सरिता शर्मा का कहना है कि बोन मैरो और पेरिफेरल स्टेम सेल ट्रांसप्लांट में काफी अंतर है, हालांकि दोनों प्रोसेस में स्टेम सेल कलेक्ट की जाती है लेकिन बोन मैरो ट्रांसप्लांट के दौरान डोनर को एनेस्थीसिया दिया जाता है और यह प्रक्रिया काफी दर्दनाक होती है जबकि पेरिफेरल स्टेम सेल की प्रक्रिया दर्द रहित है.
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सवाई मानसिंह अस्पताल के डिपार्टमेंट ऑफ ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ दुर्गेश तिवाड़ी का कहना है कि स्टेम सेल्स आमतौर पर मूल कोशिकाएं होती है जो शरीर में कोशिकाओं के निर्माण में सहायक होती है, यह एक रीजेनरेटिव मेडिसिन का पार्ट है और इसके माध्यम से ऐसे अंगो को ठीक किया जा सकता है जो खराब हो चुके हैं. हाल ही में जो स्टेम सेल ट्रांसप्लांट sms अस्पताल में किया गया है. वह अपने आप में एक चमत्कार है आमतौर पर इस इलाज का खर्च लगभग 40 से 45 लाख रुपए के आस पास होता है लेकिन sms अस्पताल में इसे निशुल्क किया जा रहा है.
Reporter- Ashutosh Sharma