jhunjhunu News: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार राजस्थान के हर पुलिस थाने में प्रवेश और निकासी के स्थान मुख्य द्वार, हवालात, सभी गलियारों, स्वागत कक्ष और हवालात कक्ष के बाहर के क्षेत्रों थाने का पिछले हिस्से में सीसीटीवी लगाने थे, लेकिन नहीं लगाए गए.
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jhunjhunu: कहने को तो पुलिस आमजन से अपील करती है कि अधिक से अधिक सीसीटीवी कैमरे लगाए. ताकि अपराधों की रोकथाम और घटनाओं के राजफाश में मदद मिले. पुलिस की मानें तो अपराधियों को सीसीटीवी कैमरों से डर लगता है. लेकिन पुलिस को भी सीसीटीवी कैमरों से डर लगता है. जी, हां यह हम नहीं. बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश और आदेशों की पालना में पुलिस थानों में लगाए सीसीटीवी कैमरे यही कहते है. पेश है एक रिपोर्ट.
पुलिस को भी सीसीटीवी कैमरे से डर लगता है. यह एक सवाल है. जिसका जवाब या तो सरकार दे सकती है या फिर राजस्थान पुलिस. जी, हां करीब दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न याचिकाओं पर आदेश दिया था कि थानों के कोने-कोने में सीसीटीवी कैमरे लगे होने चाहिए. जो केवल शो पीस नहीं होंगे. बल्कि उनमें 18 महीने और कम से कम 12 महीने की रिकॉर्डिंग उपलब्ध होनी चाहिए. ओडिया और वीडियो, दोनों सीसीटीवी कैमरे में उपलब्ध होने चाहिए. इसके लिए बजट का बहाना भी नहीं चलेगा. बाकायदा राज्य सरकारों से ना केवल इनके बजट, बल्कि इनकी मेंटिनेंस तक के लिए गाइडलाइन तय की थी. पर, राजस्थान पुलिस दो साल बाद भी इस आदेश की पालना कराने में विफल रही है.
झुंझुनूं के आरटीआई कार्यकर्ता दिलीप सिंह ने जब इस आदेशों की पालना को लेकर झुंझुनूं जिले में पड़ताल शुरू की तो हकीकत सामने आई. जो बेहद चौंकाने वाली भी थी. झुंझुनूं में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की पालना नहीं हो रही. वहीं सीसीटीवी कैमरों का हाल बेहाल है. जनता से सीसीटीवी लगाने की अपील करने वाली पुलिस खुद ही सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को हवा में उड़ा रही है. आरटीआई कार्यकर्ता दिलीप सिंह ने झुंझुनूं जिले के 20 थानों में लगे सीसीटीवी कैमरों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के मुताबिक सूचना मांगी तो 15 थानाधिकारियों ने इसकी सूचना दी. जिसमें से छह थानों में एक भी कैमरा लगा होना नहीं बताया गया. चार थानों में कैमरे लगे थे. लेकिन खराब थे. तो वहीं पांच थानों में कैमरे लगे और काम करने की जानकारी आई. लेकिन केवल कोतवाली को छोड़ दें तो हर थाने में नाम मात्र के कैमरे लगाए हुए थे. जिनका बैकअप भी 15 दिन से ज्यादा नहीं था. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने हर थाने में प्रवेश और निकासी के स्थान मुख्य द्वार, हवालात, सभी गलियारों, स्वागत कक्ष और हवालात कक्ष के बाहर के क्षेत्रों थाने का पिछला हिस्सा, ड्यूटी ऑफिसर का कमरा में कैमरे अनिवार्य रूप से लगाने का आदेश दिया है.
आरटीआई में जिले के थानों में लगे कैमरों की स्थिति
(यह सूचना नवंबर 2021 महीने में विभिन्न तारीखों में दी गई आरटीआई सूचना के आधार पर है)
यहां भी फेल हुई राजस्थान पुलिस
सुप्रीम कोर्ट का यह है आदेश
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक प्रत्येक पुलिस थाने में प्रवेश और निकासी के स्थान मुख्य द्वार, हवालात, सभी गलियारों, स्वागत कक्ष और हवालात कक्ष के बाहर के क्षेत्रों थाने का पिछला हिस्सा, ड्यूटी ऑफिसर का कमरा में कैमरे अनिवार्य रूप से लगे. सीसीटीवी प्रणाली में नाइट विजन सुविधा के साथ ही ऑडियो व विडियों की फुटेज रिकॉर्ड करने की व्यवस्था होनी चाहिए. इसके लिए ऐसी प्रणाली स्थापित करना अनिवार्य होगा. जिसमें कम से कम एक साल और इससे ज्यादा समय तक सी सी टीवी कैमरा के आकड़ो के संग्रहित रखने की सुविधा हो. सीसीटीवी कैमरे ऐसे सभी कार्यालयों में लगाए जाएंगे जहा आरोपियो से पूछताछ या गिरफ्तारी के अधिकार या हवालात में रखा जाता है. इन सीसीटीवी फुटेज का 18 माह तक का रिकॉर्ड रखना होगा.
थाने का हर कोना कैमरे की नजर में हो
जस्टिस आरएफ नरिमन की अध्यक्षता वाली बेंच जस्टिस केएम जोसफ और अनिरुद्ध बोस ने कहा कि राज्यों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर एक पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं. इन्हें एंट्री, एग्जिट, मेन गेट, सभी लॉकअप और गलियारों, रिसेप्शन और बाहरी एरिया में लगाया जाना चाहिए. ऐसी कोई जगह न हो, जो कैमरे की रेंज से बाहर हो.
नाइट विजन से लैस हो कैमरे
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सीसीटीवी सिस्टम को नाइट विजन से लैस किया जाना चाहिए. इसमें ऑडियो के साथ वीडियो फुटेज का सिस्टम भी होना चाहिए. कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी साफ किया कि ये कैमरे 24 घंटे चालू रहेंगे. वहीं बिजली कटौती के दौरान जो भी व्यकिल्प व्यवस्था हो वो कमेटी या थाना प्रभारी अपने स्तर पर करें. लेकिन सीसीटीवी कैमरे किसी भी हाल में बंद या खराब न हो. सरकारें ऐसा सिस्टम खरीदें जिससे ज्यादा से ज्यादा समय के लिए डेटा स्टोरेज किया जा सके. स्टोरेज हर हाल में एक साल से कम नहीं होना चाहिए. केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए ऐसा करना अनिवार्य होगा.
प्रदेश और जिला स्तर पर कमेटी
कोर्ट ने इस फैसले की पालना के लिए दो कमेटियों को गठन करने व उनकी जिम्मेदारी तय की. जिसमें एक राज्य स्तरीय निगरानी समिति (एसएलओसी) गठन करने को कहा. जिसमें गृहविभाग, वित्त विभाग के सचिव या अतिरिक्त सचिव, पुलिस महानिदेशक व राज्य महिला आयोग के अध्यक्ष या सदस्य को शामील करने के निर्देश दिए. वहीं जिला स्तर पर डीएलओसी का गठन कर उसमें डिविलन कमिश्नर, जिला कलेक्टर, एसपी, ग्रामीण इलाके में जिला पंचायत का प्रमुख को शामील करने के निर्देश दिए. वहीं दोनों कमेटियों की जिम्मेदारी भी तय की गई. जिसमें हर पुलिस थाने पर सीसीटीवी कमैरे लगाने के लिए बजट व उनके सार संभाल करना होगा.
Reporter- Alok Sharma